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वराह जयंती

Published On : April 30, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

वराह जयंती एवं उसका महत्व

इस धर्माधार धरा पर काल चक्र के अनुसार अनेकों बार कई ऐसी घटनायें घटित होती है। जो सम्पूर्ण धरती एवं उसके वायुमण्डल सहित देव लोकों के लिये भी नुकसान देह हो जाती है। दैत्यों की पुरानी फितरत रही है कि भगवान की वन्दना करके सम्पूर्ण देव लोक एवं धरती पर सज्जन एवं साधू लोग भी यज्ञ अनुष्ठान एवं वैदिक कर्मो को करने ही नही पाते चहुओर आसुरी सम्राज्य का बोलबाला हो जाता है। ऐसे में भगवान श्री हरि विष्णू पुराणों के अनुसार 24 प्रमुख अवतारों को धारण किया था। जिसमें उनका यह तीसरा वराह अवतार है। भगवान वराह जयंती मे प्रतिवर्ष भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की तृतीया को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ सम्पूर्ण भारत एवं विश्व में मनाई जाती है। भगवान वराह का यह रूप अत्यंत कल्याणप्रद एवं भक्तों के लिए हितकारी है। यह अपने भक्तों को वांछित फलों के दाता है। तथा धरती एवं उसके जीवन साहित सम्पूर्ण जीवन के पालनकर्ता है। सभी पृथ्वी के वासियों के लिये ही नहीं बल्कि देवताओं के लिये महान उत्सव का पर्व है। जिसका वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में प्राप्त होता है। इस अवतार को धारण करके वराह रूपी भगवान विष्णू यानी नारायण ने हरिण्याक्ष रूपी महान दैत्य का वध किया था। जिससे धरती में पुनः जीवन का संचार हो पाया था। यह अवतार धरती को हर प्रकार से सुरक्षित रखने का संदेश देता है। जिससे वराह जयंती का धार्मिक दृष्टि से महत्व है। वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्व है। 

वराह अवतार श्री हरि विष्णू की पूजा

भगवान विष्णू जो कि वराह रूपी में अवतरित है। वराह जयंती पर इनकी विधि विधान से षोड़शोपचार विधि से पूजा अर्चना करनी चाहिये। इस अवसर पर भक्त जनों को पवित्रता एवं शुचिता का ध्यान देते अपने नित्य शौचादि क्रियाओं को सम्पन्न करने के बाद साफ एवं नये कपड़े धारण करना चाहिये। और सम्पूर्ण पूजन एवं व्रत की समाग्री को संग्रहित करके पूर्वाभिमुख एवं उत्तराभिमुख होकर आसन में बैठकर भगवान विष्णू का स्मरण करते हुये आचमन करना चाहियें। फिर आत्मशुद्धि कि क्रिया को करना चाहिये। और भगवान का ध्यान करते हुये अपने सकाम पूजा का संकल्प लेना चाहिये। तथा भगवान की पूजा विधि विधान पूर्वक करना चाहिये। यदि आप पूजा नहीं कर सकते हैं। तो किसी कर्मकाण्ड में निपुण ब्राह्ण की सहायता से पूजा करवायें और दानादि दें। तथा अपने पूजा कर्म को भगवान को अर्पित करकें क्षमा प्रार्थना करके प्रणाम करें।

वराह अवतार की कथा

भगवान के इस अवतार के संदर्भ में अनेकों कथा संवाद प्राप्त होते हैं। किन्तु प्रचलित कथाओ को संक्षिप्त रूप में यहा दिया जा रहा है। प्राचीन समय की बात जब जब हरिण्याक्ष ने वरदानों की शक्ति में चूर होकर धरती का हरण कर लिया था। जिसे वह कही पाताल लोक में छिपा कर रखा था। जिससे धरती चहुओर हाहाकार का माहौल था। जिससे परेशान देवता गणों ने परम पिता ब्रह्म जी से अस्तुति की कि हे प्रभु आप जगत के स्वामी है। धरती को पुनः स्थापित करने के लिये कृपा करें। ऐसे में ब्रह्म जी ने ध्यान लगाकर देखा कि हरिण्याक्ष धरती को लेकर कहीं समुद्र तल में जा छिपा है। और वहा एक अजीब सी गंदगी फैला रखी है। जिसकी वजह से किसी भी देवी एवं देवता का वहा पहुंच पाना बड़ा असम्भव है। ऐसे में परम पिता ब्रह्मा जी अपने नाक से वराह रूपी श्री विष्णू को अवतरित किया और आज्ञा दिया कि आप धरती को पुनः स्थापित करें। ऐसे में वराह रूपी नारायण धूढ़ते हुये वहीं जा पहुंचे जहाॅ वह दैत्य राज धरती को छिपा रखा था। उसने भगवान को देखकर उन्हें युद्ध के लिये ललकारा जिससे दोनों में बड़ा ही भंयकर युद्ध हुआ किन्तु अंत में भगवान ने उसका संहार कर दिया और अपने थुथुन में धरती को लेकर पुनः सही स्थान पर स्थापित किया जिससे लोगों वराह रूप् की पूजा अर्चना शुरू की तथा श्री नारायण एवं परम पिता ब्रह्मा जी के पूजा आदि में लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ लगे हुये हैं। तथा कई स्थानों में मेले एवं समाराहों का आयोजन भी होता है। जिससे इस वराह जयंती की रौनकता अधिक बड़ जाती है।

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