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गंगा जयंती

Published On : April 10, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

श्री गंगा जयंती एवं उसका महत्व

हिन्दू धर्म की प्राण एवं मोक्ष दायनी माँ गंगा की  जयंती का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह जयंती मां गंगा के धरती पर अवतरण के संबंध में प्रतिवर्ष वैषाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि में मनाई जाती है। माँ गंगा के जन्म के पीछे एक तरफ देवताओं का परम पुनीत उद्देश्य था, तथा दूसरी तरफ धरती के मानव तथा भागीरथी के पुरखों को तारने का परम उद्देश्य छिपा हुआ है। इस संदर्भ में हमारे धर्म ग्रन्थों एवं वेद शास्त्रों में अनेकों कथानक प्राप्त होते है। जो मां गंगा के अवतरण एवं उसकी पतितों को पावन बनाने के शक्ति को उद्घाटित करते हैं। देवी भगवती माँ गंगा को धरती पर लाने का सर्वमान्य प्रयास भगीरथी जी का है। जिन्होंने कपिल मुनि की श्राप भस्म हुये अपने सभी पुरखो को तारने का अथक प्रयास किया और सही में पुत्र होने का धर्म बड़ी खूबी से निभाया हमारे शास्त्रों में पुत्र का अर्थ पुन्नग नाम के नर्क से तारने की क्षमता से किया जाता है। अर्थात् सही मायने में पुत्र वही है। जो अपने पुरखों का नर्म से उद्वार कर दें। ऐसे ही परम तपस्वी एवं सर्वोत्कृष्ट शिखर पर पहुंचे हुये महान पराक्रम एवं तपस्वी भागीरथी ने अपने पुरखों को नहीं बल्कि संसार के असंख्य मनुष्यों को मोक्ष का भागी बनाया जिससे देवताओं सहित उनका भी आज सम्पूर्ण जन मानस ऋणी है। नहीं तो ऐसा परम पुनीत पवित्र जल कैसे प्राप्त हो सकता था। माँ गंगा जयंती इसी उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती है। उनकी पूजा अर्चना विधि विधान के साथ की जाती है। इस दिन माँ गंगा की पूजा अर्चना पूरे वैदिक विधानों के साथ षोड़शोपचार विधि से किये जाने का विधान होता है। साथ की गंगा की निर्मल धारा की पवित्रता को बनाने का संकल्प एवं जन जागरण चलाने का भी यह अवसर होता है। क्योंकि बढ़ते हुये प्रदूषण से यह कहीं लुप्त न हो जायें। इसलिये उनकी जन्म जयंन्ती के अवसर पर प्रवाहित होने वाले जीवन जल को सुरक्षित रखने का भी यह परम पर्व है। गंगा जयंती: प्रकृति की शक्ति को नमन, पवित्र गंगा के जल में आत्मा को शुद्धि।

गंगा जयन्ती पर भगवती माँ गंगा की पूजा विधि

इस तिथि में श्रद्धालु भक्तों को अपने निज कल्याण हेतु प्रातःकाल ब्रह्म मुहुर्त में उठकर शौचादि क्रियाओं से फुरसत होकर स्नानादि सभी शुचि क्रियाओं को करना चाहिये। तथा नये या फिर धुले हुये वस्त्रों को धारण करके माँ गंगा की पूजन की सम्पूर्ण सामाग्री को एकत्रित करके गंगा नदी के समीप रख लें। या फिर अपने ही घर में देवी गंगा की प्रतिमा को स्थापित करके उनकी विविध प्रकार के उपचारों से पूजा अर्चना करें। तथा गंगा के स्त्रोत पढ़े और धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें। कलश की स्थापना भी करें और उनकी पूजा करने के बाद उस पूजा को माँ गंगा को अर्पित कर दें। तथा अपने किसी भी हुई भूल के लिये उनसे प्रार्थना करें। कि हे माँ गंगा यदि मेरे से कोई भूल हुई हो तो आप मुझे अज्ञानी समझकर कर माफ कर देना और मेरे इस पूजा कर्म को स्वीकार करें। तथा मेरा और मेरे परिवार का हर प्रकार से कल्याण करें। गंगा की आरती करें और उन्हें प्रणाम भी करें। यदि आप ऐसी किसी पूजा करने में अपने को समक्ष नहीं पाते हैं तो किसी कर्मकाण्ड़ी ब्राह्मण के सहयोग से इस पूजा को सम्पन्न करवा लें। गंगा जयंती: प्रकृति की अमृतधारा की प्रशंसा, जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण का समर्थन।

गंगा जयन्ती की कथा

मां गंगा की उत्पत्ति के संबंध में धर्म ग्रन्थों में अनेको कथानक भरे पड़े हुये हैं। जिससे एक प्रमुख कथानक है। जिसमें वैदिक एवं पौराणिक काल की बात है। वरदान की शक्तियों में चूर दैत्य समूह जब धरती पर अपने अत्याचारों को इस कदर बढ़ा देता है। कि देव समूह सहित त्रिकोली त्राहीमान करने लगती है। जिससे देवताओं एवं दैत्यों के मध्य इस धरती को बचाने के लिये महाभयानक युद्ध छिड़ जाता है। तथा देवताओं के द्वारा मारे गये राक्षस भगवान शिव की संजीवनी विद्या जिसे शुकाचार्य जी ने प्राप्त किया था। वह राक्षसों के चीख पुकार के कारण भावुक हो जाते थे। और मरे हुये महाभयानक दैत्यों को उस अमृत सरोवर में डुबों कर  पुनः जीवित कर लेते थे। जिससे वह निद्रा त्याकर जैसे कोई मनुष्य सामान्य तौर पर उठ बैठता है। उसी प्रकार उठ बैठते थे। मत्स्यपुराण में इसका वर्णन प्राप्त होता है। कि पुरा देवासुरे युद्धे हताश्च शतशः सुरैः। पुनः संजीवनीं विद्यां प्रयोज्य भृगुनन्दनः।। ऐसे में भगवती गंगा में अमृत की बूंदों को समुद्र मन्थन से प्राप्त कर घोल दिया गया। जिससे सम्पूर्ण संसार का एवं देवताओं के परम कल्याण हुआ और दैत्य समूह पुनः पराजित हो गये। इस जयंती के दिन ही माँ गंगा, भगवान शिव की जटाओं में से स्वर्ण से निकलकर प्रवेश किया था। तथा भागीरथी का तप पूरा होने पर भगवान शिव ने अपने जटाओं की एक लट को धरती की तरफ खोलकर प्रवाहित कर दिया था। तब से आज तक श्री गंगा का प्रवाह निरन्तर धरती में बना हुआ है। जिसे गंगा सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। यह सप्तमी देवी गंगा के अवतरण के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। इस दिन गंगा की पूजा अर्चना एवं दानादि का भी बड़ा महत्व होता है। तथा गंगादि नदियों के संरक्षण एवं पवित्री करण में जिनता हो सके सहयोग हरहाल में देना चाहिये। उसमें गंन्दगी नहीं होनी चाहिये। तभी गंगा का जल जीवन को धवल करने में सहयोगी रहेगा। अन्यथा गंगा जयन्ती पर माँ की पूजा अधूरी रह जायेगी। गंगा जयंती: प्रकृति की शक्ति को समर्पित, स्वच्छता और प्रेम के साथ योग करें।

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