सती अनुसूया जयन्ती
Published On : April 2, 2024 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
सती अनुसूया जयन्ती एवं उसका महत्व
यह जयन्ती भारतभूमि में नारी धर्म और उसके सहचर की पवित्रता का एक सर्वोत्कृष्ट पर्व है। ऐसी पवित्रता एवं शुचिता कहीं भी खोजने से नहीं प्राप्त हो सकती है। हिमालय की तरह अड़िग रहने वाली भारत की नारियों में पति एवं पत्नी के रिश्तों की कसौटी में ठीक उसी प्रकार खरा है। जैसे कि प्रकाश में अंधकार की कोई सत्ता नहीं होती है। जो इस सनातन धर्म की परम्परा का परम वाहक एवं संरक्षक है। वंश एवं कुल की पवित्रता एवं ऐसी सुचिता की परम आदर्श माँ सती अनुसूया देवी हैं। जो युगों से पति एवं पत्नी के पवित्र रिश्तों के लिये अत्यंत उपयोगी एवं शिक्षाप्रद है। जिससे उत्साहित होकर प्रति वर्ष भारत वर्ष में उनकी जयन्ती मनाई जाती है। सती अनुसूया के बारे सुनकर ऐसे सभी लोगों को जो कि अपने रिश्तों के अंधकार में भटक गये हैं। उन्हें प्रकाश की तरह यह जयन्ती है। सती अनुसूया धरती ही नहीं बल्कि त्रिलोक में पतिव्रत धर्म की पताखा को फहराया था। उनके समान कोई भी सती एवं पतिव्रता नारी आज तक नहीं हुई। यह दक्ष प्रजापति की कन्या थी। इतनी शुचिता एवं पवित्रता के बाद भी इनमें किसी प्रकार का अहंकार नहीं था। जो इस धर्म के लिये घातक बने। इनका विवाह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र महर्षि अत्रि के साथ हुआ था। यह अपने पति के साथ भारतवर्ष के चित्रकूट जिले के आश्रम में रहती थी। ऐसी शांति एवं पतिधर्म की प्रतिमूर्ति माँ सती अनुसूया जयन्ती अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनके दर्शन एवं पूजन से स्त्रियों को पतिव्रत धर्म के पालन की शक्ति हासिल होती है। तथा जिस पर इनकी कृपा होती है। वह स्त्री एवं पुरूष अपने कुल एवं धर्म को धन्य बना लेता है। जिससे वैवाहिक जीवन की पवित्रता बनी हुई रहती है। इस अवसर पर कई स्थानों में मेलों एवं भण्डारों का आयोजन भी किया जाता है। भगवान राम एवं माता जानकी जब चित्रकूट आये थे तो राम लक्ष्मण एवं माँ जानकी इनके आश्रम जाते थे। और जानकी इनके पतिव्रत धर्म की अत्यंत प्रशंसा करती थी। उनका पतिव्रत धर्म एवं सतीत्व इतना प्रभावशाली था। कि सभी देवी और देवताओं को उनके इस प्रखर सतीत्व का अपने आप ही एहसास होने लगता था। इससे उनकी गणना सबसे अग्रणी सतियों में होने लगी।
सती अनुसूया जयंती कथा
माँ सती अनुसूया के संदर्भ में बड़ी ही रोचक एवं उत्कृष्ट कथायें प्राप्त होती है। सती अनुसूया के संदर्भ में कई पौराणिक एवं प्रमाणिक संदर्भ प्राप्त होते हैं। जिसमें श्रीमद्भागवत् पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा महाभारत में भी वर्णन है। भक्त वत्सल भगवान जब अपने भक्तों को मान और बड़ाई देने की इच्छा करते हैं। तो उसके कठिन व्रत एवं निमयों की परीक्षा लेने के लिये किसी न किसी रूप में आ जाते हैं। इसी क्रम में सती अनुसूया के इस पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर त्रिकोली के रचाइता एवं पालनहार तथा संहारकर्ता एक अद्भुत माया रचते हैं। और उमा, रमा, ब्रह्मणी में अहंकार का अंकुरण होता है। जिससे यह तीनों देवियां त्रिदेव समूहों से यह याचना करती है। कि आप धरती में जाकर सती अनुसूइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लीजिये। क्या धरती में ऐसी सती नारी हो सकती है। या फिर यह मात्र प्रचारभर है। यदि सती अनुसूया मे सतीत्व का अंकुरण होगा तो वह जरूर ही अपके प्रश्नों का उत्तर देगी। तथा पतिव्रत धर्म एवं सद्गृहस्थी के धर्म का पालन जरूर करेगी। और इस प्रकार त्रिदेव एवं त्रिदेवियों में आपसी सामंजस्य स्थापित हो जाता है। तथा सती अनुसूइया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिये ब्रह्म, विष्णू, और महेश चल देते है। इधर हिमालय की तरह अड़िग एवं अपने पति की परम सेविका और पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली सती अनुसूया प्रतिदिन की तरह अपने कार्य में व्यस्त थी। और उनके पति अत्रिमुनि कहीं गये हुये थे। तभी त्रिदेव वहा पहुंचकर साधू वेष धरकर भिक्षा की याचना करते हैं। जिससे मा भिक्षा देने के लिये बाहर आती है। किन्तु परीक्षा लेने आये देवों ने भिक्षा लेने से पहले कुछ अजीबों-गरीब शर्त रख देते है। जो कि एक सामान्य गृहस्थी एवं लोक जीवन से बड़ा असम्भव एवं विस्मयकारी होता है। किन्तु पतिव्रत धर्म, गृहस्थ धर्म की रक्षा में निपुण देवी ने जब अपने पति का स्मरण करते हुये अपने सतीत्व को परखा तो उन्हें वह तीनों देवों को छः माह का बच्चा बना दिया और उनकी शर्त को पूरा कर दिया। इधर तीनों देवियों में व्याकुलता बढ़ गयी और वह देवताओं को ढूढ़ते हुये सती अनुसूया के आश्रम जा पहुंची और अपने पतियों की याचना करने लगी। ऐसे मा ने कहा कि यह तो मेरे बालक है। आपके पति कैसे हो सकते है। किन्तु बाद में देवियों ने उनसे प्रार्थना किया जिससे वह पुनः उसी रूप में प्रकट कर दिया। और वह सती अनुसूया धन्य हो गई। देवलोक से पुष्पवर्षा होने लगी। तथा देवियों का अहंकार समाप्त हुआ। और अनुसूया सभी परीक्षा में सर्वोत्कृष्ट स्थान पाकर आज भी लोगों के लिये प्रेरणा स्रोत हैं। जिससे सती अनुसूया जयंती हमारे के लिये उपयोगी है। जिससे प्रति वर्ष इसका उत्सव धूम-धाम के साथ होता है।
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