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श्री ऋषि पंचमी व्रत

Published On : July 14, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

ऋषि पंचमी व्रत एवं उसका महत्व

यह व्रत ऋषियों की प्रसन्नता प्राप्त करने तथा जीवन में सुचिता को बढ़ाने तथा नियम संयम के पालन की श्रृंखलाओं से जुड़ा हुआ है। जिसके प्रभाव से अशुद्धता से उत्पन्न पाप एवं रोगों का विनाश हो जाता है। धर्म शास्त्रों मे वर्णन है। कि व्यक्ति इस जीवन में जाने अनजाने जितने भी पाप या पुण्य करता है। उन्हें उसे भोगना ही पड़ता है। स्वभावतः हर किसी से कोई पुण्य एवं पाप होते ही रहते हैं। जिसके प्रभाव से उत्पन्न पुण्य एवं पाप व्यक्ति को स्वर्ग एवं नर्क का गामी बना देता है। तथा उसे नाना प्रकार की योनियों में भटकना पड़ता है। इस संदर्भ में ऋषि पंचमी का व्रत आता है। जो दाम्पत्य जीवन में पति एवं पत्नी के सहचर काल में यदि कोई भूल हो जाय जो कि प्रयाश्चित करने के लायक हो और उसका प्रयाश्चित न किया जाय तो नाना प्रकार की परेशानियों से गुजरना पड़ता है। अतः किसी भी जातक एवं जातिका जो अपने जीवन सहचरी एवं जीवन सहचर के मध्य कोई ऐसी भूल कर बैठते हैं या फिर अनजाने में महिलायें अपने मासिक धर्म के समय घर गृहस्थी के कामों को करते हुये किसी ऐसी वस्तु एवं देव प्रतिमा को छू लेती है। या फिर कोई साधू सन्यासी एवं ब्राह्मण आदि को खाने पीने की वस्तुयें दे देती हैं। या फिर उन्हें छू लेती हैं। ऐसे में महान पातक होता है। जिससे व्यक्ति मनुष्य योनि से पतित होकर बैल एवं कुत्ते की योनि में जा पहुंचते हैं। अतः ऐसे महाभयानक पापों से छुटकारा पाने के लिये प्रतिवर्ष ऋषि पंचमी का व्रत बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। जो प्रतिवर्ष भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी मे होता है। जो इस वर्ष 23.08.2020 दिन रविवार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा। अतः इस व्रत का पालन प्रत्येक महिलाओं से जाने अनजाने में हुई भूल के पापों से बचने के लिये करने की जरूरत होती है। इसमें सप्तऋषि मण्डलों की पूजा अर्चना एवं वन्दना की जाती है। जिससे मासिक धर्म के समय हुये पापों से छुटकारा मिलता है। तथा मासिक धर्म के समय पति के साथ गमन करने से दोनों को ही महापातक होता है। जिससे छुटकारा पाने के लिये हमारे धर्म शास्त्रों में इस व्रत का विधान किया गया है। अतः स्त्रियां भाव भक्ति के साथ ऋषियों सहित अरून्धती की पूजा अर्चना करती हैं। जिससे उत्पन्न पुण्य उन्हें समस्त वांछितों को देने वाला होता है।

ऋषि पंचमी पूजा एवं व्रत

इस व्रत के पालन में आचार विचार एवं नियम संयम तथा पवित्रता का विशेष महत्व होता है। तथा व्रत से एक दिन पहले ही पवित्रता का ध्यान रखते हुये व्रत एवं पूजन की सम्पूर्ण सामाग्री जैसे-माला, फूल, धूप दीप नैवेद्य आदि तथा ऋषि पंचमी कथा की सात पुस्तकें तथा सात माला एवं सात आसान एवं ऋषियों के निमित्त वस्त्रादि तथा उनके कमण्डल आदि को एकत्रित करके ब्रह्मणों को दान देने का विधान होता है। इसकी पूजा हेतु किसी कर्मकाण्ड में निपुण ब्रह्मण को बुलाकर उनसे प्रत्येक ऋषि एवं अरून्धती का ध्यान उन्हें आसान एवं फिर मंत्रों के द्वारा उनकी प्रतिष्ठा करवाकर विधि विधान से पूजा अर्चना करें। जिससे वर्ष पर्यन्त होने वाले ऐसे पापों से छुटकारा मिल जाता है। ऐसे व्रती जो पूजा अर्चना नहीं करवा सकते हैं वह श्रद्धा के साथ किसी मन्दिर आदि में जहाँ इस व्रत एवं पूजा का आयोजन किया जाता है। जाकर अपनी पूजा करे करवायें। इस पूजा कर्म को ऋषियों को अर्पित कर दें। ब्रह्मणों को दानादि देकर समस्त ऋषियों से अपने भूल की क्षमा प्रार्थना करें।

ऋषि पंचमी व्रत एवं कथा

वैदिक काल यानी सतयुग की कथा है। कि विदर्भ नगरी में श्येनजित नाम के बड़े ही प्रतापी एवं धर्मशील राजा थे। जिनके राज्य में सुमित्र नाम का साधारण खेतिहर व्यक्ति था तथा उसकी पत्नी बड़ी ही पतिव्रता एवं धर्मज्ञ थी। एक दिन उनकी पत्नी मासिक धर्म के समय अपने गृहस्थी के समस्त कामों को तो किया किन्तु निज वस्तुओं का स्पर्श वर्जित होता है। उन्हें स्पर्श किया तथा पति के साथ सहचर धर्म को भी निभाया जिससे जैसे ही उनका मानव जन्म पूर्ण हुआ और वह मृत्यु के गामी बने तो उनकी इस भूल के कारण उसके पति को बैल की योनि तथा पत्नी को कुतियां की योनि प्राप्त हुई। संयोग से कुतियां अपने बच्चों के घर में ही रहने लगी तथा बैल योनि मे जन्मे पिता को भी उसके पुत्र ने खेती के काम हेतु क्रय किया था। जिससे वह रात दिन बड़ी मेहनत के साथ खेती बाड़ी के काम में उन्हें सहयोग देता रहता था। ऐसे ही जब श्राद्ध का समय आया तो उनके पुत्र ने श्राद्ध हेतु ब्रह्मणों को निमंत्रित किया और विधि विधान से श्राद्ध करने लगा। किन्तु तभी उस भोजन को सर्प ने सूंघ लिया जिससे वह विषाक्त हो गया। इस घटना को कुतिया ने देख लिया किन्तु उसकी वहू नहीं देख पायी। जिससे कुतियां की योनि में पड़ी हुई उसकी माता ने रसोई मे घुसकर उस भोजन को अपवित्र कर दिया जिससे उसकी बहू ने देख लिया और गुस्से मे उसे खूब मारा पीटा तथा उसे भोजन भी नहीं दिया। इधर पुनः शुद्धता के साथ भोजन तैयार करके श्राद्ध कर्म को पूरा किया गया। तथा रात्रि काल में कुतिया बैल बने अपने पति के पास जा पहुंचती और अपना सारा दुखड़ा उसे बताया इसी प्रकार बैल ने भी अपनी मेहनत एवं भूखादि की पीड़ा को कुतिया से बताया। इस वार्ता को उसका पुत्र सुन लिया और समझ गया क्योंकि वह पशुओं की भाषा को समझता था। जिससे वह उन्हें भरपेट भोजन देने के बाद उनके उद्धार का उपाय खोजने लगा। इस हेतु उसे किसी पहुंचे हुये ऋषि ने ऋषि पंचमी व्रत के पालन को कहा और बताया कि पशु योनि में पड़े हुये अपने माता-पिता को ऋषि पंचमी के व्रत का फल अर्पण कर दो, जिससे उनकी पशु योनि छूट जायेगी। उसने भाद्रपद की शुक्ल पंचमी आने पर ऋषि पंचमी के व्रत का पालन किया और उसे अपने पशु योनि मे पडे़ हुये माता-पिता को अर्पित कर दिया जिसके पुण्य प्रभाव से वह पशु योनि से छूट गये। अतः इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के पुण्यों का उदय होता है। और उसे स्वर्ण लोक की प्राप्ति होती है। तथा वह दुःखों से बच जाता है।

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