रामानुजाचार्य जयंती
Published On : April 8, 2024 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
रामानुजाचार्य जयंती एवं उसका महत्व
रामानुजाचार्य जयंती: इस धरती को पुनीत बनाने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाने वाले तथा एक महान वैष्णव तथा उत्कृष्ट कोटि के ऐसे अनूठे महान पुरूष महा संत का जन्म धरती में भटक रहे मानवों के ज्ञान के आलोक से सीचने के लिये हुआ था। ऐसे महापुरूषों का जन्म भी महान तपस्यिों के तप के फलीभूत होने पर तथा ईश्वर की परम कृपा के कारण ही होता है। जो इस धरती के मानव जीवन के लिये परम कल्याणकारी है। अन्यथा संसार के भंवर में भटकते हुये व्यक्ति अपना जन्म बेकार की बातों एवं ईष्र्या दोष में गंवा देते हैं। ब्रह्मलीन रामानुजाचार्य जी का जन्म 1017 ई. दक्षिण भारत के तमिलनाडू में हुआ था। अपने बाल्य काल्य से ही वह बड़े ही तेजस्वी एवं ओजस्वी विचारों तथा ईश्वर के भक्त थे। तथा अपनी नन्हीं सी उम्र में ही उन्होनें में अपने गुरू प्रकाश यादव से वेदों तथा वेदांगों की शिक्षा ली थी। वह आलवार संत यमुनाचार्य के प्रमुख शिष्यों की श्रेणी में थे। तथा अपने गुरू के आदेश के अनुसार धर्म तथा वेदो का बड़ी ही निष्ठा के साथ प्रचार प्रसार किया था। वह अपने जीवन के अधिकांश समय को लोगों के कल्याण एवं धर्म के प्रचार तथा ईश्वर भक्ति को समर्पित कर दिया था। तथा अपने गुरू की आज्ञा के अनुसार प्रमुख रूप से ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबंधनम की टीका को लिखा था। इन्होनें गृहस्थ जीवन से मुंह मोड़कर श्री रंगम के यतिराज से संन्यास की दीक्षा ग्रहण की थी। मैसूर के श्रीरंगम से चलकर रामानुजाचार्य जी शालग्राम नामक पर अपने जीवन के अधिकांश समय को बिताया। तथा इसी स्थान में लगातार बारह वर्षो तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया तथा इसके अतिरिक्त देश के अनेक हिस्सों में वैष्णव धर्म का प्रचार किया था। रामानुजाचार्य के शिष्यों में ही रामानंद थे। तथा रामानन्द के शिष्य कवीर और सूरदास जी थे। रामानुजाचार्य ने वेदान्त दर्शन को आधार बनाते हुये विशिष्ठ द्ववैतवाद की रचना की थी। इनकी मृत्यु 1137 ई. में हुई थी। रामानुजाचार्य जयंती: धार्मिक दार्शनिक के जन्मदिन पर अभिनंदन।
श्री रामाजुजाचार्य एवं तथ्य
यह हिन्दू धर्म के महान पुरोधा एवं परम वैष्णव संत थे। जो भक्ति की धारा से अत्यंत प्रभावित थे। इन्हें अनेकों सम्मानों एवं पुरूकारों से नवाजा गया था। यह द्वैव एवं अद्वैत की धाराओं के प्रमुख थे। यह वेदान्त दर्शन के अतिरिक्त भक्तिमार्गी दर्शन तथा दक्षिण के पंचरात्र परम्परा को अपने विचारों में प्रमुखता से स्थान दिया था। उन्होंने ब्रह्म को ही ईश्वर माना तथा चित् को ही आत्म तत्व और अचित को प्रकृति तत्व माना है। तथा इन्हें सब ईश्वर प्रदत्त ही माना है। जिस प्रकार जल कमल के पत्ते पर जल नहीं ठहरता है। किन्तु उसके बिना रह भी नही सकता है। उसी प्रकार ब्रह्म के बिना ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। यह सारा व्यापार ईश्वर को प्राप्त करने के लिये है। इस प्रकार श्री रामानुजाचार्य जी ने अनेकों तथ्य पेश किये थे। जो अत्यंत उपयोगी तथा जीवन के पथ प्रदर्शक है। अतः ऐसे महापुरूषों की जयंती एवं शिक्षायें प्रत्येक भटकते हुये मनुष्य के लिये अचूक अमृत की तरह ही हैं । यदि ईश्वर भक्ति इनसे प्रभावित होकर कोई अपने तन एवं मन में जाग्रति कर लेता हैं। तो उसका कल्याण निश्चित रूप से होगा। रामानुजाचार्य जयंती: आत्मा, ज्ञान, और प्रेम के सन्देश।
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