हिन्दी

निर्जला एकादशी

Published On : July 1, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

निर्जला एकादशी या भीमसेनी

यह हमारे व्रत पर्वों का एक अति विशिष्ट तथा अनूठा सोपान है। जो हमारे धार्मिक व्रत, त्यौहार, पूजा, जप और अनुष्ठान की कड़ी से जुड़ा हुआ है। जिसमें यह निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी का व्रत और भी उपयोगी होता है। मानव जीवन पथ पर चलते हुये जब काम, क्रोध, मोह, लोभ के कारण वास्तविक लक्ष्य से विमुख होकर नाना प्रकार के दुःख संकटो से घिर जाता है। तो उसे ईश्वर की तरफ ध्यान देने के सोपानों पर चढ़ना होता है। क्योंकि इस संदर्भ में पद्म पुराण एवं नारद पुराण तथा गरूड़ और वराह पुराणों में कहा है कि कष्टों से घिरे हुये मानव को एकादशी व्रत करना चाहिये जिससे उसके समस्त पापों का विनाश हो जाता है। क्योंकि इस बात को भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठर जी से भी बताया था। कि जो हजारों व्रत यज्ञ आदि का फल है वह एकादशी व्रत को विधि पूर्वक करने से प्राप्त हो जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों में तीन प्रकार के व्रतों का उल्लेख प्राप्त होता है। जिसमें नित्य, नैमित्तिक तथा काम्य प्रमुख है। महर्षि वेद व्यास एकादशियों के बारे में बताते हुये कहते हैं यह नित्य व्रत है यदि इसे न किया जाय तो पाप होता है। अतः सभी धर्मपरायण लोगों को तथा अपने हित साधक स्त्री पुरूषों को एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिये। जिससे उसके पाप समूहों का नाश हो सके और वह पुण्य व सद्गती का भागीदार बन सकें।

निर्जला एकादशी को भीमसेनी क्यों कहते हैं

निर्जला एकादशी के बारे में ऐसा प्रसंग प्राप्त होता है। कि महिर्षि वेद व्यास जब पाण्डवों को एकादशी व्रत पालन के महत्व को सुना रहे थे, तभी युधिष्ठिर, अर्जुन आदि पाण्ड़वों तथा माता कुन्ती ने व्रत के पालन करने की अपनी बात को बताया कि हम सभी पूरी भक्ति के साथ एकादशी जो प्रत्येक माह मे दो बार आती है। तथा अधिक मास होने पर इनकी संख्या 26 हो जाती है को विधि पूर्वक करते हैं। किन्तु भीम नहीं करते हैं। तब भीम ने कहा कि पितामह व्यास जी प्रति माह में दोनों पक्षों की एकादशियों में मुझसे भूखा नही रहा जाता यह मेरे लिये बड़ा ही कष्टपूर्ण है। क्योंकि पितामह आप भी जानते हैं। कि मेरे अन्दर वृकोदर नाम की अग्नि विद्यमान है। जिसे बिना भोजन के शांत करना बड़ा ही जटिल है। अतः बिना अन्न ग्रहण किये पितामह मै एक टाइम भी नहीं रह सकता तो पूरा दिन और इसी प्रकार प्रत्येक माह में आने वाली एकादशियों में यह मेरे लिये अति कष्टप्रद है। अतः मेरे लिये कोई ऐसा व्रत या उपाय कहे जिससे मुझे इतना भूखा नहीं रहना पडे़। इस पर महिर्षि वेद व्यास ने कहा कि हे! भीम ज्येष्ठ माह की शुक्ल एकादशी का व्रत करो। इस प्रसंग को भगवान व्यास से भीम के द्वारा पूछने के कारण इसे भीमसेनी एकादशी कहा जाता है। तभी से यह भीमसेनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी है।

निर्जला एकादशी में क्यों नहीं जल पीते हैं

जैसा कि इसके कथानक में भगवान वेद व्यास भीम को एकादशी नित्य व्रत होने के कारण जो एकादशियों के व्रत का पालन नहीं करता और इन व्रतों में अन्न का सेवन करता है। उसे महा पातक होता है। और उसे स्त्री हो पुरूष नरक लोक की यातना सहनी पड़ती यानी नर्कगामी होना पड़ता है। इस प्रकार की प्रकार नरक यातनाओं व महापातक लगने के भय से, भीम महान भय से चिंतित होने लगे और वर्ष में किसी एक दिन भूखे प्यासे रहकर व्रत को करने को राजी होते है। इस प्रकार भगवान वेद व्यास प्रति माह दोनों पक्षों की एकादिशयों को रखने का महत्व बताते हैं। किन्तु वह अपनी भूखे नहीं रह पाने की असमर्थतता को व्यक्त करते हैं। जिससे वेद व्यास जी ने उन्हें वर्ष पर्यन्त की एकादिशों के फल को प्राप्त करने के लिये ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को बिना जल और अन्य ग्रहण किये हुये व्रत रखने के लिये आदेशित किया था। इस व्रत को निराहार एवं निर्जल बिना पानी पिये भीम के करने के कारण इसका नाम निर्जला एकादशी पड़ा। यह एकादशी अपने नाम से निर्जला है। जिसका अर्थ बिना जल ग्रहण किये हुये व्रत रखने से हैं। इस व्रत में जो एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय में यानी एकादशी के बाद द्वादशी तिथि को जल पीने का विधान है। यानी सिर्फ आचमन के लिये जल जितना लिया जाता है, उतना ही आचमन करना चाहिये, उससे अधिक पीने में वह मदिरा के समान हो जाता है। तब से निर्जला एकादशी के दिन बिना जल ग्रहण किये व्रत करने का विधान लगातार चल रहा है।

निर्जला एकादशी में कैसे करें दान एवं स्नान

भगवान वेद व्यास जी भीम को ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में बताते हुये कहते है। कि इस व्रत हेतु दशमी तिथि को सांयकाल में ही संयमित होकर रहे। और दूसरे दिन यानी एकादशी को ब्रह्म मुहुर्त में उठकर शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर किसी तीर्थ या गंगा आदि पवित्र जल व नदियों में स्नान करें। तथा व्रत का संकल्प लें। और भगवान श्री हरि विष्णू का ध्यान व पूजन करें। तथा ब्रह्मणों व पुरोहितों को जल से पूर्ण कलश एवं वस्त्राभूषण मिठाई एवं फल तथा मेवे आदि अपनी दान शक्ति के अनुसार दें। किन्तु व्रती होने पर किसी का दान व जल आदि खुद नहीं स्वीकार करें। इससे आपका व्रत भंग हो सकता है। इस दिन किये जाने वाले दान से दिव्य फलों की प्राप्ति होती है।

निर्जला एकादशी पूजन एवं व्रत की विधि

इस व्रत को रखने वाले को दशमी के दिन से ही संयमित होकर ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। तथा मदिरा एवं अन्य तामसिक आहार जैसे लहसुन, प्याज आदि को छोड़ देना चाहिये। एक दिन पहले से ही गाजर, मसूर की दाल आदि का सेवन नहीं करना चाहिये। झूठी बात तथा चोर उचक्के एवं व्यभिचारियों की संगत से दूर रहते हुये श्री हरि विष्णू से प्रार्थना करें। भगवान की मूर्ति का ध्यान करते हुये व्रत का संकल्प लें कि हे। जगताधार प्रभु! मुझे इतनी ताकत दों, कि मै इस व्रत को भक्ति पूर्वक बिना जल ग्रहण किये हुये कर सकूँ। इसके बाद श्री हरि की पूजा षोड़शोपचार विधि से करें या करवायें तथा उनके नाम का जप कीर्तन तथा जागरण पूरी रात श्रद्धा भक्ति के साथ करें। तथा उन्हें श्रद्धा के साथ दिव्य मिष्ठानों आदि का भोग तुलसी दल के साथ अर्पित करें और उन्हें नाना प्रकार से अलंकरणों से सुसज्जित करें। अपने व्रत को फलित करने के लिये अन्याय, क्रोध, अपवित्रता, हिंसा, दिन में सोना, मैथुन, बुरी संगति से दूर रहे। तथा ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः या ऊँ नमो नारायणाय नमः का जाप करें। किसी के ऊपर किसी प्रकार का गुस्सा आदि न करें। तथा किसी प्रकार की जीव हिंसा न होने पायें। तथा दूसरे दिन द्वादशी तिथि में शौचादि स्नान क्रियाओं को सम्पन्न करके तथा संध्या वंदन करके जलादि ग्रहण करें। तथा भगवान श्री हरि विष्णु के निमित्त विशुद्ध रूप से तैयार की गई रसोई में भोग लगाकर ब्राहमणों को भोजन करावें एवं दक्षिणा आदि दें। तथा फिर  पारण करें। और अपने किसी भी भूल के लिये भक्ति भाव से क्षमा मांगे।

निर्जला एकादशी का महत्व

भगवान व्यास इस एकादशी व्रत के महत्व को भीम से बताते हुये कहते हैं कि यदि तुम प्रति मास आने वाले वर्ष में 24 तथा अधिक मास की दो अतिरिक्त एकादशियों के व्रत का पालन करने में अक्षम हो तो ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की ग्यारहवी तिथि जो वृष एवं मिथुन सक्रांति के आस-पास पड़ती है। उसके व्रत का पालन करो। जिससे तुम्हे वर्ष की सभी एकादशियों के बराबर पुण्यफल प्राप्त होगा। और यह व्रत तुम्हें स्वर्ग देने वाला है। अर्थात् इसके पुण्य प्रभाव से तुम्हें नरक की यातना नहीं भोगनी पड़ेगी। क्योंकि एकादशी का व्रत तीर्थ एवं हजारों यज्ञों से बढ़कर फल देने वाला होता है। जिसके पुण्य प्रभाव से जाने अनजाने मे उत्पन्न एवं किये गये पाप कर्म गुरू निंदा, ब्रह्म, गो हत्या, मिथ्या बातें हो आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसा पुराणों का कथन है। इस निर्जला एकादशी का इतना बड़ा प्रभाव है कि यह सभी एकादिशों के पुण्य को देने वाली है

निर्जला एकादशी की कथा

इस व्रत की संक्षिप्त कथा इस प्रकार है भगवान वेद व्यास पाण्डवों को चर्तुविधि पुरूषार्थ देने वाली एकादशी व्रत के महात्म्य को बताते हुये कहते हैं कि एक माह की दोनों कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि में अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिये। नही तो इससे महापातक होता है। इस बात पर भीमसेन ने कहा हे! धर्मज्ञ पितामह मेरे परिवार के सभी लोग व्रत का पालन करते है किन्तु मेरे पेट में वृक अग्नि होने से मै एक भी समय बिना अन्न के नहीं रह पाता तो वेद व्यास जी ने कहा कि यह श्री हरि ने मुझे खुद बताया है कि जो व्यक्ति एकादशी के दिन स्त्री हो या पुरूष अन्न को ग्रहण करता है। उसे नरक की यातना सहनी पड़ती है। इन कई तथ्यों को सुनकर भीमसेन ने कहा प्रभु कोई ऐसा उपाय या व्रत बतलाइयें जिससे मुझे वर्ष पर्यन्त एकादशी का व्रत न करना पड़े मै किसी एक दिन व्रत करके ही उन सभी के व्रत के फल को प्राप्त करूँ और मेरा उद्धार होवें। इस पर वेद व्यास जी बोले हे कुन्तीनन्दन! आप यदि पापों से भयभीत हो रहें और वर्ष में एक दिन ही व्रत करने की इच्छा रखते हैं। तो आप ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत जितेन्द्रिय होकर यानी बिना जल ग्रहण किये करों। जिससे तुम्हें सभी एकादिशों का फल प्राप्त होगा।

यह भी पढ़ना न भूलें: सत्यनारायण व्रत और देवशयनी एकादशी

Blog Category

Trending Blog

Recent Blog


TRUSTED SINCE 2000

Trusted Since 2000

MILLIONS OF HAPPY CUSTOMERS

Millions Of Happy Customers

USERS FROM WORLDWIDE

Users From Worldwide

EFFECTIVE SOLUTIONS

Effective Solutions

PRIVACY GURANTEED

Privacy Guaranteed

SAFE SECURE

Safe Secure

© Copyright of PavitraJyotish.com (PHS Pvt. Ltd.) 2025