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मौनी अमावस्या

Published On : March 25, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

मौनी अमावस्या क्या है?

यह हमारे धार्मिक कृत्यों एवं स्नान दानादि का विशेष पर्व है। ज्योतिष शास्त्र एवं हिन्दूरीति रिवाजों के अनुसार प्रत्येक तिथि का महत्व उसके साथ विशेष कथानक से जुड़ा हुआ होता है। उसके साथ जहाँ लोक मान्यतायें जुड़ी हुई होती है। वहीं धार्मिकता की भावनाये भी जुड़ी हुई होती है। संस्कृति के माध्यम से पेड़ पौधों जलायशों के संरक्षण व उनके महत्व को लोग आसानी से समझ सकें और उनका इस धरती पर क्या दायित्व है। वह कैसे अपने जल, जंगल तथा वायु आदि को शुद्ध रखें। इसी कारण ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष के महीने में पड़ने वाले तीसवीं तिथि जिसे अमावस्या कहा जाता है। बहुत ही खास हो जाती है। इस दिन मौन व्रत का पालन करते हुये स्नानादि कार्य सम्पन्न होते हैं। इसी से इसका नाम मौनी अमावस रखा गया है। वार एवं योग विशेष के कारण इसका नाम एवं महत्व आदि और खास हो जाते हैं।

मौनी अमावस्या का महत्व

इसका महत्त्व जहां धार्मिक दृष्टि से है वहीं स्वास्थ्य व सौभाग्य की दृष्टि से भी है। यह जहाँ देवत्व की तरफ पुण्यात्माओं को उन्मुख करती है। वहीं पूर्वजों व पितरों के लिये भी अति पुण्यकारी होती है इस दिन देव व पितरों के निमत्त जो भी स्नान दान व पूजन अर्जन किया जाता है वह कई गुना फल देने वाला हाता है। जिससे मनुष्यों के कई पापों का शमन होता है। उनके ग्रह जनित अरिष्ट व पाप भी नष्ट होते है। इस दिन मौन होकर स्नान व दान शान्त मन से किया जाना अत्यंत पुण्य देने वाला होता। इस दिन स्त्रिी एवं पुरूष अपने सुख एवं सौभाग्य की रक्षा हेतु जहाँ गंगा, यमुना आदि तीर्थ में स्नान करते है। वहीं सौभाग्य की रक्षा हेतु सौभाग्यवती स्त्रियां स्नानादि से निवृत्त होकर पीपल या बरगद के पेड़ के समीप जाकर उसकी पूजा अर्चना करती है। मौनी अमावस के स्नान का महत्व युगों से है जिसे द्वापर युग में भीष्म ने युधिष्ठिर को बताया कि इस पर्व में जो स्त्री पुरूष पवित्र नदियों के जलाशयों में स्नान करते है उनके चर्मादि रोग पीड़ायें जहाँ दूर होती हैं। वही तमाम सांसारिक दुःखों से छुटकारा प्राप्त होता है और अच्छे स्वास्थ्य को प्राप्त करते है।

मौनी अमावस्या में मौन व्रत का महत्व

इस पर्व में बिना किसी से बाले हुये बात-चीत किये हुये स्नान करने का विशेष विधान होता है। यदि कोई बात-चीत करते हुये या बोलते हुये स्नान करते हैं, तो उनका मौनव्रत खण्डित हो जाता है। और मौन रहकर जो आत्मशान्ति मिलती है। वह बोलने वालों को नहीं प्राप्त होती है। अतः मौन व्रत पालन करने और वांछित कामनों की सिद्धि के कारण ही यह व्रत मौनी अमावस के नाम से प्रसिद्ध है। इसी मौन व्रत के सावधानी पूर्वक पालन के कारण जहाँ मनुष्य को जीवन में सुख शान्ति प्राप्त होती है। वहीं उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है। अतः यह मौन एकाग्रता की शक्ति प्रदान करता है। जिससे जीवन के बड़े से बडे़ लक्ष्य आसानी से हासिल होते हैं। यह मौन व्रत का क्रम सनातन काल से चल रहा है। इस पर्व में पीपल एवं वरगद की 108 प्रदीक्षणायें मौन होकर करके स्त्रियां अपने सौभाग्य की रक्षा हेतु करती है।

मौनी अमावस्या एवं तीर्थ स्नान

प्राचीन ग्रन्थों व पुराणों में वर्णन आता है। कि वार, तिथि, नक्षत्र, योग एवं करण तथा ग्रहों के गोचर के कारण अमावस्या के दिन गंगादि पवित्र तीर्थ के जलों में बड़ी ही सकारात्मक ऊर्जा स्थित होती है। जो अमृत के समान तथा पुण्य देने वाली होती है। इसलिये अन्य दिनों की अपेक्षा मौनी अमावस्या के दिन स्नान, दान, पूजा, जप, तप बेहद पवित्र होता है और श्री हरि के स्मरण का कई हजार गुनाफल प्राप्त होता है। जिससे श्री हरि प्रसन्न होकर अपने सभी भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। इसी संदर्भ में श्री पद्म पुराण में कहा गया है कि मौनी अमावस्या के स्नान से जितना भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। वह किसी दूसरे स्नान से नहीं होते है। गंगा, यमुना, सरस्वती का जहाँ मिलन होता उसे संगम कहते हैं। जिसे तीर्थो का राजा यानी तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। यहाँ मौनी अमावस्या के दिन संगम, गंगा, कावेरी, नर्वदा, सिन्धु आदि तीर्थां के तट पर स्नान दान और मौन व्रत, तन, मन एवं जीवन को समृद्ध करने वाले होते हैं। इस पर्व में पवित्र तीर्थ गंगादि नदियों में स्नान करने से दारिद्र, दुःख पाप, रोग दूर होते हैं तथा जीवन में सफलता के द्वार खुलते हैं।

मौनी अमावस्या पितृ यज्ञ व तर्पण हेतु अत्यंत शुभप्रद

इस पर्व में गंगा, यमुना, सिन्धु, कावेदी, नर्वदा आदि पवत्रि नदियों के तीर्थों में अत्यंत प्रभावशाली योगों का निर्माण होता है। जिसके कारण वहाँ देव व पितृ गणों को आना पड़ता है। और वह जल बेहद पवित्र एवं कल्याणप्रद होता है। जिससे पितरों के निमित्त जो दानादि तर्पण कर्म किये जाते हैं वह अत्यंत शुभफल देने वाले व जन्मान्तरों के पापो को नष्ट करके पितरों को जहाँ मोक्ष देने वाले होते है। वहीं कर्ता को मनवांछित फल देने वाले हैं।

मौनी अमावस्या एवं कल्याणप्रद उपाय

इस पर्व के आने पर स्त्रियों को अपने सौभाग्य रक्षा हेतु पीपल व वरगद की 108 प्रदीक्षणायें करनी चाहियें। मौन व्रत रख करके पवित्र नदियों के तीर्थ में स्नान करना चाहिये। पितरों के निमत्त उनका नाम मन में स्मरण करके तर्पण करना चाहिये। यह तर्पण दक्षिणाभिमुख होकर करें। पितृ संबंधी मंत्रों का जाप करे या करवायें। श्री सूर्यनारायण को लाल पुष्प, लाल चंदन आदि को ताँबे के लोटे में लेकर अर्घ्य प्रदान करें। तथा गंगादि तीर्थ की पवित्र नदियों को शुद्ध गाय का दूध अर्पित करें और चंदन, पुष्प धूप दीप से उनकी पूजा करें। यथा सम्भव गरीबों को दान देना चाहिये। रोगों एवं ग्रहीय बाधाओं को दूर करने हेतु गुड सूर्य के लिये, मिश्री, चिनी, चावल आदि चन्द्रमा तथा शुक्र के दोषों को दूर करने हेतु किसी विद्वान पण्डित व पुरोहितों को दान दें। अधिक ऋण होने पर ऋण हरता श्री गणेश का पाठ किसी योग्य ब्राह्मण से करवायें। मीठे भोजन करें और संयमित रहकर व्रत का पालन करें।

मौनी अमावस्या एवं पौराणिक मान्यतायें

मौनी अमावस्या के बारें कई पौराणिक मान्यतायें एवं कथायें जुड़ी हुई है। जिसमें समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न अमृत कुम्भ की कथा प्रमुख है। जिसके कारण प्रयाग, उज्जैन, हरिद्वार, नासिक में महाकुम्भ का पर्व होता है। यदि सोमवार का दिन हो तो यह और योग कारक एवं बेहद शुभ हो जाता है। क्योंकि इसी दिन के स्वामी ने यहाँ कशल को सुरक्षित किया था जिसकी कुछ बूंदे गंगा के इन तटों पर गिरी और उन योगों में वही अमृत वहाँ बहने लगता है। इसी प्रकार एक कथा श्री ब्रह्मा जी केस्वयंभू पुत्र मनु जी से जुड़ी है। इन्होंने मौनव्रत लेकर यहाँ चिरकाल तक तपस्या की थी। जिससे मौनी अमावस्या का और महत्व बढ़ा जाता है। इस मौनी अमावस्या के पर्व पर जहाँ जन सामान्य का ताँता लगा हुआ रहता है। वहीं विभिन्न आखाड़ों, मठ, मन्दिरों एवं सम्प्रदायों के साधू संतों का शाही स्नान संगम आदि तट में बढ़ा ही मनोरम दिखता है।

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