मत्स्य जयन्ती
Published On : March 30, 2024 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
मत्स्य जयन्ती और उसका महत्व
मत्स्य जयन्ती: यह हिन्दू धर्म के प्रमुख अवतारों की जयन्ती का पर्व है। धरती पर बढ़ते अत्याचार के विनाश के लिये श्री हरि ने अनेकों को रूपों को धारण किया था। जिसमें में धरती के पालन और उसकी रक्षा तथा धर्म को सुरक्षित करने के लिये भगवान विष्णू ने 24 अवतारों को धारण किया, जिसमें यह अवतार उसी क्रम में सबसे महत्वपूर्ण एवं खास है। यह प्रति वर्ष बड़े ही हर्षोल्लास के साथ सम्पूर्ण भारत में मनाई जाती है। इसमे में भगवान विष्णू की पूजा एवं व्रत का बड़ा महत्व होता है। यह प्रतिवर्ष चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इसमें भगवान विष्णू के मत्स्य अवतार की पूजा षोड़शोपचार विधि से की जाती है। तथा उनके लिये पुरूष सूक्त एवं श्रीसूक्त का वाचन किया जाता है। श्री हरि विष्णू ने पुष्पभद्रा तट पर मत्स्यावतार के रूप में अवतरित होकर जगत के जीवों एवं प्रलय काल की वेला में सम्पूर्ण बीजों की रक्षा की थी। मत्स्य पुराण एवं अन्य पुराणों में भगवान के इन अवतारों की बड़ी रोचक कथायें उपलब्ध होती है। इस जयंती के अवसर पर जो भी भक्त शुद्ध चित्त एवं भक्ति से युक्त होकर उनकी विधि विधान से पूजा अर्चना करता है। तथा वैदिक मंत्रों के द्वारा उनकी पूजा करता या फिर किसी वैदिक पूजा पाठ में पारंगत ब्रह्मण द्वारा इनकी आराधना करवाता है। भवगान उसे सभी वांछित फल देते हैं। तथा उसके जीवन से रोग, शोक, भय, पीड़ा आदि समाप्त हो जाते हैं। क्योंकि यह अवतार सम्पूर्ण जगत के जीवों की रक्षा एवं सुरक्षा हेतु हुआ था। जब प्रलयकाल की बेला में सम्पूर्ण संसार यानी नील गगन सहित नष्ट हो रहा था, तब भगवान ने इस रूप् को धारण किया क्योंकि चहुओर जल ही जल दिख रहा था इसलिये भगवान को यह अवतार जगत के बीजों की रक्षा हेतु धारण करना पड़ा। ऐसी प्रबल काल की बेला में जब सारे आश्रय जलमग्न हो रहे थे, यानी आकाश तक अपनी सत्ता नहीं बचा सकता है। तब धरती की क्या बात है। तो भगवान श्री हरि ने इस अवतार को धारण किया था। भगवान का यह रूप बड़ा दिब्य एवं आलौकिक है।
मत्स्य जयंती एवं पूजा विधि
इस जयंती में भक्ति पूर्वक भगवान का स्मरण करते हुये अपने व्रत एवं पूजन की सम्पूर्ण सामाग्री को एकत्रित करके पूजा स्थल पर रख लें। और श्री हरि के नामों का स्मरण करते हुये आचमन एवं आत्मशुद्धि की क्रिया को करे। तथा किसी भी प्रकार के गुस्से से बचे ध्यान रहे इस व्रत एवं पूजा में पवित्रता का बड़ा ही महत्व होता है। अतः किसी भी प्रकार के तामसिक आहारों का सेवन बिल्कुल न करें। चाहे वह लहसुन हो या फिर प्याज या फिर मांस, मछली, मदिरा आदि हो उसे बिल्कुल त्याग दें। व्रत से पूर्व सप्ताह पहले अपने पूरे शरीर को शुद्ध कर लें। और फिर भगवान की विधि विधान से षोड़षोपचार विधि से पूजा अर्चना करें। तथा अपनी पूजा एवं प्रार्थना दान आदि जो भी दें उसे भगवान को अर्पित कर दें।
मत्स्य जयन्ती की पौराणिक कथा
भगवान के इस अवतार के बारे में पूरा मत्स्य पुराण ही है। जिसमें अनेकों कथा प्रसंग भरे पड़े हुये है। जिसमें कुछ प्रचलित एवं प्रमुख संदर्भो को दिया जा रहा है। कल्पांत के पहले किसी दैत्य ने परम पिता ब्रह्मजी को चमका देकर सम्पूर्ण वेद एवं वेदांगों को चुरा लिया जिससे धरती सहित त्रिलोकी में अंधकार और अज्ञानता ने अपना रौद्ररूप धारण कर लिया। जिससे आहत होकर देव समूहों ने भगवान विष्णू से पुनः सम्पूर्ण वेदों एवं वेदांगों को लाने का आग्रह किया जिससे भगवान ने उसे मारकर पुनः वेदों को प्रकाशित करवा जिससे धर्म की रक्षा हुई और अज्ञानता के तिमिर का नाश होने लगा। इसी प्रकार दूसरी और एक कथा है कि जब धरती में जल प्रबल के सिर्फ सात दिन ही बचे। तो भगवान ने संध्याकर्म कर रहे सत्यव्रत राजा जो कि अत्यंत धर्मात्मा एवं पुण्यात्मा थे। वह किसी नदी के तट पर देव एवं पितरों के निमित्त जलांजलि दे रहे थे। तभी उनके अंजलि में एक छोटी से मछली आ गयी जिसे राजा ने पुनः उसी जल में छोड़ दिया जिससे वह मछली कहने लगी कि मुझे इस जल के बड़े जीव खा जायेगे। अतः आप मेरी रक्षा करें। जिससे राजा ने उन्हें अपने कमण्डल में रख लिया और उसका शरीर इतना बढ़ गया किया कमण्डल छोटा पड़ गया। और वह राजा से फिर उपयुक्त स्थान की मांग करती है। इस प्रकार राजा चाहे जहाँ जिस जलाशय में उसे डलवाता वह छोटा पड़ जाता था। इस प्रकार समुद्र भी उस मछली के लिये छोटा पड़ा गया जिससे राजा को आश्चर्य हुआ कि ऐसी मछली न देखी न सुनी यह जरूर ही मत्स्य भेषधारी श्री हरि विष्णू ही हैं। जिससे उसने उस मछली से बड़ी विन्रमता पूर्वक कहा कि हे प्रभु! मछली वाले रूप में आप कौन है मुझे अपना परिचय दें। तब भगवान ने बताया कि राजन इस धरती में जल प्रलय आने वाला है। कहीं भी कुछ नहीं बचेगा सम्पूर्ण संसार डूब जायेगा। जिससे सभी अनाजों एवं औषधियों के बीजों को तुम एक नाव में सुरक्षित रख लो और में उस समय जलमग्न हुये संसार में तुम्हारी एवं संसार के सम्पूर्ण बीजों की रक्षा के लिये फिर इसी अवतार में दिखूगा। तब से आज तक भगवान के इस रूप की पूजा अर्चना बड़े विधान के साथ की जाती है। शतपथब्राह्मण में मनु की कथा का संदर्भ प्राप्त होता है। महाभारत में मत्स्य अवतार को जगत के रचाइता ब्रह्मा को माना गया है। इस प्रकार भगवान का यह अवतार परम कल्याणकारी एवं जीवन का रक्षक है।
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