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माघी पूर्णिमा

Published On : March 27, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

माघी पूर्णिमा क्या है?

यह पर्व मानव जीवन के धार्मिक सोपानों का विशालतम पर्व है। जहाँ सहर्ष हिन्दू ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों से लोग अपने जीवन को धन्य बनाने के लिये खिचें चले आते हैं। इस जीवन पथ पर चलते हुये जो तरह-तरह की ग्रह जनित पीड़ायें और दुःख तथा मनुष्य के कर्म के द्वारा उत्पन्न नाना तरह के कायिक, वाचिक, मानसिक अपराध हैं, उनके प्रयाश्चित व शमन का अभूतपूर्व पर्व है। देव नदी माँ गंगा माघ मास में सुधारूपी जल से कष्टों को शान्त करने हेतु अनेक देवी व देवताओं एवं पितरों को सहज ही आकृष्ट कर लेती है। जिससे इस धरती के सभी तीर्थ प्रयागराज गंगा तट और संगम में माघ के महीने में आ जाते हैं। इस संदर्भ में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैः माघ मकर गत जब रवि होई। तीरथ पतिंहि आंव तहाँ सोई।। यानी माघ मास की पूर्णिमा अपने आप में बेहद पवित्र और पुण्य देने वाली है। जिससे इस माह की पूर्णिमा में गंगा आदि नदियों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ रहता है।

माघी पूर्णिमा और स्नान दान

माघ पूर्णिमा के अवसर पर स्नान दान, जप, यज्ञ, तप, हवन एवं तर्पण का विशेष महत्व होता है। माघ मास में चन्द्रमा मघा नक्षत्र में विद्यामान होता है, इसी कारण इसे माघ कहा जाता है। इस दिन माघ पूर्णिमा के अवसर पर किये जाने वाले पुण्य कर्मो से जहाँ दुर्लभ गति मनुष्य को प्राप्त होती है। वहीं देवी एवं देवताओं के आराधना एवं पूजा के द्वारा नाना प्रकार के कष्टों से छुटकारा प्राप्त होता है। एवं पितरों के निमित्त जो भी तर्पण एवं दानादि किये जातें है, वह उनके मोक्ष एवं सद्गति के द्वार खोलता है। अर्थात् माघ पूर्णिमा के अवसर पर गंगा के तट यानी संगम में स्नान दान का बड़ा ही महत्व होता है। जिससे विविध प्रकार के रोग व कष्ट दूर होते हैं। तथा पुण्य कार्य सफल एवं फलदायी होते हैं। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पन्द्रहवीं तिथि को माघ पूर्णिमा होती है। इसी से माघ स्नान का एक महीने से चल रहा क्रम सम्पन्न हो जाता है।

माघी पूर्णिमा व्रत कथा

माघ पूर्णिमा के बारे में पौराणिक कथा है कि एक शुभव्रत नाम के ब्राह्मण थे जो कि विद्वान होते हुये भी सम्पूर्ण जीवन धन कमाने और उसे प्राप्त करने मे लगा दिया। किन्तु जैसे ही बुढ़ापा अपने साथ बीमारियों को लेकर आया और उन्हें नाना प्रकार के कष्टों ने घेरा तो उन्हें एहसास हुआ कि वह अपने जीवन में कोई पुण्य काम नहीं किये, ऐसे में उन्हें माघ मास की याद आई और वह नर्वदा के पवित्र तट पर जप, तप, दान करने लगे ऐसा करते कुछ ही दिन बीते थे कि उनकी हालत और बिगड़ गयी और बैकुण्ठ को चले गये। किन्तु जब बैकुण्ठ पहुंचकर वह श्री हरि से पूछने लगे कि प्रभु मैने अपने जीवन मे कोई शुभ कार्य नहीं किये किन्तु मै कैसे यहाँ आने का पात्र हुआ। इस पर श्री हरि बोले कि तुमने पुण्य नहीं किया मगर किसी पाप कर्म में शामिल नहीं थे। इसके अतिरिक्त तुमने माघ मास की पूर्णिमा को स्नान, दानादि किया है। उसी का परिणाम है कि तुम्हे बैकुण्ठ एवं सद्गति प्राप्त हुई है। माघ पूर्णिमा का व्रत करने वाले को दूसरे दिन पारण करना चाहिये।

माघी पूर्णिमा और कल्पवास

माघ मास से कुछ दिन पहले यहाँ देश और देशान्तर से गंगा तट पर कल्पवासियों का आना शुरू हो जाता है। कल्पवासियों में गृहस्थ लोग और साधू संत एवं विरक्त आदि शामिल होते हैं। यह गंगा किनारे अपनी कुटियों एवं तम्बुओं आदि में रहते हुये एवं नियम संयम का पालन करते हुये एक माह के इस महापर्व को सम्पन्न करके स्नान, दान, पूजा, जप, तप यज्ञ आदि करते एवं कराते है तथा श्री हरि नाम संकीर्तन एवं सतसंगत का लाभ लेते हैं। तथा माँ गंगा की पूजा कर लोक भावना से जहाँ अपने व अपने परिवार के लोगों के कल्याण की कामना करते हैं। वहीं विश्व कल्याण की प्रार्थना करते है। किन्तु माघ पूर्णिमा के दिन ही सभी कल्पवासियों और तीर्थ यात्री जो यहाँ एक मास से माघ स्नान के लिये आये थे उनका यह व्रत पर्व इसी माघी पूर्णिमा को सम्पन्न हो जाता है। इस पूर्णिमा के पर्व में स्नान से निवृत्त होकर कल्पवासी और स्नान के निमित्त पहुंचे हुये भक्त श्रद्धालु जो उनकी श्रद्धा होती है अन्न, वस्त्र, भोजन, तिल आदि का दान गुरू, साधु सन्यासियों, गरीबों आदि को देकर अपने गनतब्यों को पुनः लौट जाते हैं।

माघी पूर्णिमा एक योग विशेष

इस माघी पूर्णिमा के पर्व पर वार, तिथि, नक्षत्र, योग, करण तथा ग्रहों के कारण (तीर्थाराज प्रयाग, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन में) कुम्भ जैसे महायोगों का निर्माण होता है। जिनका अलग-अलग महत्व होता है। जिसके कारण देश एवं विदेश से भी लोग तीर्थराज प्रयागराज में स्नान एवं दान हेतु एकत्रित होते है। जो लोग किसी कारण से माघ में नहीं स्नान कर पायें हैं, वह इस माघ पूर्णिमा के महायोग में स्नान करके अपने जीवन को धन्य बनाते हैं। माघी पूर्णिमा में यदि श्री सूर्य श्रवण नक्षत्र एवं चन्द्र तथा वृहस्पति सिंह राशि में हो और शनि मेष राशि में हो तो महायोग का निर्माण होता है। जिससे इसे योग विशेष कहा जाता है और इसमें स्नान दान से श्रद्धालु अपने पापों की श्रृंखालों को नष्ट कर जीवन में खुशहाल होते हैं। इस स्नान में लाखों करोड़ो श्रद्धालुओं का आगमन होता है। जिससे वर्ष पर्यन्त सभी पूर्णिमाओं में यह विशेष है।

माघी पूर्णिमा एवं कल्याणकारी उपाय

ब्रह्म मुहुर्त यानी सूर्योदय से पहले शौचादि क्रियाओं को सम्पन्न करें। फिर गंगा स्नान और गंगाजल पान करके विधि पूर्वक श्री हरि विष्णू की पूजा अर्चना करें। ध्यान योग की क्रियाओं को भी करें, और मन में भगवान शिव व विष्णू जी का ध्यान करें। माघ पूर्णिमा पर पितरों के निमित्त जो भी बन पड़े दान दें। ब्रह्मणों, तपस्यिों एवं साधु संतों को भी भोजन व अन्न, धन का दान देना कल्याणकारी है। क्योंकि इस मौके पर किया गया दान पुण्य पितरों के लिये मोक्ष देने वाला व दानकर्ता का कल्याण करने वाला होता है। क्योंकि अनेक देवी देवताओं की शक्तियां यहाँ कई रूपों में मौजूद रहती हैं। इस पूर्णिमा पर श्रीसत्यनारायण की कथा व्रत विधि विधान पूर्वक श्रवण करना कल्याणप्रद होता है।

माघी पूर्णिमा और मान्यतायें

माघ मास की पूर्णिमा में माघ मास की तरह ही पूरे संयम के साथ ब्रह्मचर्य का पालन करते हुये स्नान, पूजा, यज्ञ, दान तथा भगवान विष्णू की पूजा करनी चाहिये। क्योंकि भगवान विष्णू इस माघी पूर्णिमा में गंगा के जल में निवास करते हैं। ऐसा ब्रह्मवैवर्त पुराण में संदर्भ भी प्राप्त होता है। इस दिन प्रयाग में गंगा स्नान जो विधि पूर्वक सम्पन्न करता है उसको वांछित फलों की प्राप्ति होती है। इसी दिन से कल्पवासियों का कल्पवास भी समाप्त हो जाता है। माघी पूर्णिमा में गंगा स्नान रोगों को दूर करने वाला होता है। माँ गंगा की पूजा करें तथा अपराधों को क्षमा करने की प्रार्थना करने की मान्यतायें हैं। तथा जब तक जीवन रहे तब तक माँ इसी प्रकार हमें शुभ कर्म करने के मौके प्राप्त हो और गंगा तट पर हम स्नान कर सकें ऐसी भी मान्यतायें हैं। इस दिन साधू संतो, गरीब, अनाथों आदि को गरम कपड़े एवं कम्बल, तिल, चावल, आटा आदि देने की मान्यतायें भी है। जिससे लोगों को नरक की यातनायें नहीं सहनी पड़ती है। और शरीर में आरोग्यता की स्थिति प्राप्त होती है। माघ पूर्णिमा में बनारस, हरिद्वार एवं प्रयागराज तथा गंगासागर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। कुछ लोग अति कठोर नियम व संयमों का पालन करते हुये स्नान दान एवं पूजन करते हैं। इस दिन गोदान तथा अन्न दान का भी बड़ा महत्व है। इसी दिन लोग गंगा जल एवं गंगा की मिट्टी जिसे रेणुका कहा जाता है। तथा प्रसाद आदि लेकर माँ गंगा से पुनः आने की प्रार्थना करते हैं।

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