मास शिव रात्रि व्रत
Published On : March 28, 2024 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
मास शिव रात्रि व्रत क्या है?
यह व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने तथा वांछित कामनाओं की पूर्ति हेतु किया जाता है। वर्ष भर में वैसे 12 शिवरात्रि किन्तु अधिक मास को लेकर 13 शिवरात्रि हो जाती है। जिसमें विशेष रूप से फाल्गुन मास की शिवरात्रि बहुत ही जनमानस में प्रसिद्ध है। तथा इस शिवरात्रि के व्रत का पालन सभी लोग करते है। इसकी धूम भारत में होती ही है। किन्तु जो भगवान शिव के उपासक है। या फिर उन्हें मानने वाले है। विश्व के अन्य देशों में भी इस शिव रात्रि का व्रत बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके बाद श्रावण की शिवरात्रि भी बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है। इसमें भी लोग बढ़ चढ़कर भक्ति भाव के साथ भगवान की पूजा अर्चना करते है। तथा मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ रहता है। किन्तु प्रत्येक माह की शिव रात्रि के विषय में अधिकांश लोग नहीं जानते है। जिसका पुण्यफल उसी प्रकार होता है। जो अन्य शिवरात्रियों में होता। क्योंकि भगवान शिव बड़े ही भोले भाले और उपकारी है। इसलिये भक्तों के द्वारा यदि मास शिव रात्रि के व्रत का पालन किया जाता है तो व्रती साधक को भगवान उतना ही फल देते हैं। जितना कि फाल्गुन और श्रावण वाली शिव रात्रि में अतः प्रत्येक माह की शिवरात्रि में जो व्रत किया जाता है। उसे मास शिव रात्रि व्रत कहते हैं। अतः मास शिव रात्रि के व्रत एवं पूजन से व्यक्ति के बड़े से बड़े दुःख एवं दोषों का नाश हो जाता है। तथा पाप एवं रोगों की जो श्रृंखला है। वह व्यक्ति के जीवन से दूर चली जाती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिये कि वह दुःख एवं संकट से मुक्ति पाने के लिये आदि देव भगवान महादेव के कृपा हेतु मास शिवरात्रि के व्रत का पालन भी श्रद्धा पूर्वक करें। क्योंकि जैसे भगवान विष्णू यानी नारायण की कृपा हेतु जैसे प्रत्येक माह में दो बार एकादशी का व्रत किया जाता है। उसी प्रकार प्रत्येक चतुर्दशी शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की जो कि शिव की तिथि में व्रत किया जाना चाहिये। हालांकि मास शिवरात्रि हेतु प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी तिथि को ग्रहण किया जाता है। जो अत्यंत पुण्यफल दायक है। अतः धर्म लाभ एवं महादेव की कृपा हेतु मास शिवरात्रि का व्रत आवश्य करना चाहिये।
मास शिव रात्रि पूजन विधि
व्रती साधक को व्रत से एक दिन पहले ही संयम एवं नियम का पालन करना चाहिये। तथा तामसिक आहारों के सेवन से बचते हुये आत्म शुद्धि के नियम को अपनाना चाहिये और फिर व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठकर शौचादि क्रियाओं को सम्पन्न करते हुये स्नान एवं शुद्धि क्रियाओं का पालन करें, तथा भगवान शिव की प्रसन्नता हेतु उन्हें जो वस्तुये जैसे शुद्ध जल, गंगाजल, सुगन्धित पुष्प चावल, धूप, दीप, फल, मिष्ठान, भांग, धतूर तथा विल्वपत्र आदि को श्रद्धा भक्ति से एकत्रित कर लें और फिर प्रतिष्ठित शिवालय में भगवान शिव की पूजा अर्चना करें, यदि ईश्वर ने वैभव दिया हुआ हो तो ब्रह्मणों के द्वारा उनका विधि विधान से पूजन एवं अभिषेक करें। अन्यथा आत्म शुद्धि करने के पश्चात् आचमन आदि क्रियाओं को करते हुये भगवान का स्मरण करके स्वतः ही पूजा अर्चना करें। और क्षमा प्रार्थना करते हुये बड़े ही विनम्र भाव से इस पूजा को भगवान शिव को अर्पित कर दें।
मास शिव रात्रि व्रत कथा
इस व्रत में हिरण एवं एक शिकारी की कथा प्रचलित है। एवं शिव रात्रि के व्रत के पीछे भगवान शिव के लिंग का उत्पन्न होना और कुछ मान्यताओं को अनुसार भगवान शिव एवं आदि शक्ति पार्वती की शादी भी शिव रात्रि के दिन होने से मास शिव रात्रि के व्रत को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जिससे मास शिव रात्रि का व्रत और प्रचलित एवं लोक प्रिय होता जा रहा है।
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