माँ सिद्धिदात्री – नवदुर्गा की नवीं शक्ति
Published On : April 4, 2017 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
नवंम देवी सिद्धिदात्री की उत्पत्ति
धरा पर दैत्यों के अत्याचारों को नष्ट करने के लिए तथा मानव के कल्याण व धर्म की रक्षा हेतु माँ भगवती दुर्गा नवरात्रि के नवें दिन सिद्धि दात्री के रूप में उत्पन्न होती है। यह माँ का विग्रह सम्पूर्णता व समृद्धि का प्रतीक है। जो सभी प्रकार के दैत्यों का दमन करके प्रत्येक भक्त को वांछित परिणाम देने वाली हैं। प्रतिपदा से लेकर नवमी तक सम्पूर्ण अभिमानी दैत्यों का माँ भवगती दुर्गा द्वारा वध कर दिया जाता है। जिससे देवता व मनुष्यों के सभी कार्य सिद्धि हो जाते है और इस दिन के देवी के रूप को सिद्धि दात्री के रूप में जगत में ख्याति प्राप्त होती है। अर्थात् देवताओं सहित सभी भक्तों की वांछित कामना सिद्धि करने के लिए देवी साक्षात् सिद्धि दात्री माँ का अवतरण होता है। यह परम कल्याणी और मोक्ष को देने वाली है। अर्थात् मानव के परम लक्ष्य मोक्ष कामना को देने के कारण इन्हें सिद्धि दात्री के रूप में जाना और पूजा जाता है। यह प्रसन्न होकर भक्तों को सभी सिद्धियों को देने वाली हैं। माँ चतुर्भुजी हैं जिनके उपर के दाहिने हाथ में चक्र नीचे वाले में गदा तथा ऊपर के बाएं हाथ में शंख तथा नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प को धारण किए हुए है। गले में दिव्य माला शोभित हो रही है। यह कमलासन पर विराजित हो रही है। तथा अपनी सवारी के रूप में परम वीर सिंह को स्वीकार किया है। भक्तों को अभीष्ट फल देने वाली और उनके कष्ट, रोग, शोक, भय को समाप्त करके सर्वविधि कल्याण करने वाली हैं।
माँ सिद्धि दात्री की पूजा का विधान
श्री माँ आदि शक्ति दुर्गा के इस नवें विग्रह को सिद्धि दात्री के नाम से इस संसार में पूजा व जाना जाता है। इनकी माँ सिद्धि दात्री की स्तुति व अर्चना नवरात्रि के नवें दिन करने का नियम होता है। इनकी पूजा अर्चना न केवल मानव बल्कि देव, दानव, गंधर्व द्वारा सम्पूर्ण ब्रहाण्ड़ में होती है। इनकी पूजा से अष्ट सिद्धि और नव निधियों की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। अर्थात् श्रद्धालुओं की इनकी पूजा अर्चना बड़े विधान से श्रद्धा के साथ अपने व परिवार के कल्याण हेतु करना चाहिए। पूजा के नियम पहले की ही भांति रहेंगे। जिसमें पूरी पवित्रता का ध्यान रखते हुए संयम व ब्रह्मचर्य का भी पालन का महत्व है। पूजन की सामाग्री पूर्व की तरह ही रहेगी। सुगन्धित पुष्प नैवेद्य में खीर व हलुवे का प्रसाद तथा श्रीफल चढ़ाने का विशेष विधान है। तथा विधि-विधान से पूजा करने के बाद हवन भी किया जाता है। इसके बाद प्रत्येक देवी के निमित्य एक कन्या इस प्रकार नौ कन्याओं का और एक बालक का पूजन करें, उन्हें भोजन खिलाएं और जो बन सके दान दक्षिणा करें। इस प्रकार करके श्रद्धा सहित पूजन को सम्पन्न करें। जिससे वांछित फल प्राप्त होते हैं। माँ की कृपा से इस संसार में भक्तों को जीवन मे सुख-शांति प्राप्ति होती है।
माँ सिद्धि दात्री की कथा
माँ सिद्धि दात्री के बारे अनेक कथा प्रसंग प्राप्त होते हैं। जिसमें दुर्गा सप्तशती के कुछ प्रसंग माँ सिद्धि दात्री के विषय में है। क्योंकि इन्हीं के द्वारा ही व्यक्ति को सिद्धि, बुद्धि व सुख-शांति की प्राप्ति होगी। और घर का क्लेश दूर होता है। पारिवार में प्रेम भाव का उदय होता है। अर्थात् यह देवी ही सर्वमय हैं, जिसे एक कथानक में देवी स्वतः ही स्वीकार किया है कि -इस संसार में मेरे सिवा दूसरी कौन है? देख, ये मेरी ही विभूतियाँ हैं, अतः मुझमें ही प्रवेश कर रही हैं। तदनन्तर ब्रह्माणी आदि समस्त देवियाँ अम्बिका देवी के शरीर में लीन हो गयीं। उस समय केवल अम्बिका देवी ही रह गयीं। देवी बोली- मैं अपनी ऐश्वर्य शक्ति से अनेक रूपों में यहाँ उपस्थित हुई थी। उन सब रूपों को मैंने समेट लिया। अब अकेली ही युद्ध में खड़ी हूँ। तुम भी स्थिर हो जाओ। तदनन्तर देवी और शुम्भ दोनों में सब देवताओं तथा दानवों के देखते-देखते भयंकर युद्ध छिड़ गया।। ऋषि कहते हैं – तब समस्त दैत्यों के राजा शुम्भ को अपनी ओर आते देख देवी ने त्रिशूल से उसकी छाती छेदकर उसे पृथ्वी पर गिरा दिया। देवी के शूल की धार से घायल होने पर उसके प्राण-पखेरू उड़ गये और वह समुद्रों, द्वीपों तथा पर्वतों सहित समूची पृथ्वी को कॅपाता हुआ भूमि पर गिर पड़ा।। तदनन्तर उस दुरात्मा के मारे जाने पर सम्पूर्ण जगत् प्रसन्न एवं पूर्ण स्वस्थ हो गया तथा आकाश स्वच्छ दिखायी देने लगा। पहले जो उत्पात सूचक मेघ और उल्कापात होते थे, वे सब शान्त हो गये तथा उस दैत्य के मारे जाने पर नदियां भी ठीक मार्ग से बहने लगीं।
सिद्धिदात्री के मंत्र
माँ सिद्धि दात्री के अनेक मंत्र हैं, जिसमें कुछ प्रमुख मंत्र है, जिससे भक्तों को वांछित परिणाम प्राप्त होते हैं। तथा माँ की परम कृपा से भक्तों को मोक्ष भी प्राप्त होता है। कुछ उपयोगी मंत्र इस प्रकार हैं –
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी । त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ।।
सिद्धिदात्री का महात्म्य
माँ सिद्धि दात्री की पूजा अत्यंत कल्याण कारी हैं। जिसके प्रभाव से भक्तों को वांछित वस्तुओं की प्राप्ति होती है। यह माँ सभी सिद्धियों को भी देने वाली तो है ही साथ ही कई प्रकार के भय व रोग को भी दूर करती है और जीवन को सुखद बनाने के रास्ते प्रदान करती है। अतः भक्तों को इनकी पूजा करनी चाहिए। इनकी भक्ति व पूजा देव, दनुज, मनुज, गंधर्व आदि सदैव कर रहे है। अतः सुख समृद्धि के लिए इनकी पूजा का बड़ा ही महात्म्य है। देवी के महात्म्य को बताते हुए देवता कहते हैं। देवता बोले- शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवि। हम पर प्रसन्न होओ सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि। विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचरा जगत् की अधीश्वरी हो। तुम इस जगत् का एकमात्र आधार हो, क्योंकि पृथ्वी के रूप में तुम्हारी ही स्थिति है। तुम्हारा पराक्रम अलंघनीय है। तुम्हीं जल रूप में स्थित होकर सम्पूर्ण जगत् को तृप्त करती हो। तुम अनन्त बलसम्पन्न वैष्णवी शक्ति शक्ति हो। इस विश्व की कारण भूता परा माया तुम हो। देवि! तुमने इस समस्त जगत् को मोहित कर रखा है। तुम्हीं प्रसन्न होने पर इस पृथ्वी पर मोक्ष की प्राप्ति कराती हो।
शुभ नवरात्री
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