हिन्दी

माँ कालरात्रि – नवदुर्गा की सातवीं शक्ति

Published On : April 3, 2017  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

सप्तम देवी कालरात्रि की उत्पत्ति

इस जगत में धर्म की रक्षा तथा दैत्यों के विनाश के लिए  ऋषि-मुनियों ने जब-जब ईश्वर से प्रार्थना की तब-तब उस ईश्वर ने किसी शक्ति को धरा के कल्याण के लिए दैवीय शक्ति को उत्पन्न किया। ऐसे ही परम शक्ति माँ आदि शक्ति दुर्गा भवानी की उत्पत्ति ईश्वरीय इच्छा से हुई जिसमें अनेक देवी देवताओं की शक्ति समाहित है। माँ श्री दुर्गा की सांतवी मूर्ति देवी माँ कालरात्रि की उत्पत्ति नवरात्रि के सातवें दिन होती है। जो कि देवता सहित इस संसार के मानव का कल्याण करती है। क्योंकि पौराणिक कथानक इस बात का गवाह है कि इस धरा सहित देव समूह को जब आदि काल में वरदान पाकर महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ जैसे महाभयानक राक्षस तरह-तरह के अत्याचारों से पीड़ित करते है तो धर्म इस धरा से गायब होने लगा। धरती में रहने वाले मानव के आचार-विचार भ्रष्ट हो गए सर्वत्र राक्षसी प्रतृत्तियों का बोल बाला होने लगा। यज्ञ, दान, परोपकार, धर्म, दया, क्षमा जैसे यशस्वी गुणों का कहीं ठिकाना न रहा। देव पूजन, माता-पिता, गुरू, ब्राह्मणों को भी तिरष्कृत किया जाने लगा। ऐसे महाभयानक अंधकार मे सतत डूबता हुआ समाज तथा दैत्यों के अत्याचार से बचाने के लिए कालरात्रि की प्रतिमा संसार के सामने प्रकट होती है। जो सर्वविधि कल्याण करने वाली और दैत्य समूहों का संहार करके इस धरा के मानव की रक्षा करती हैं तथा देव समुदाय को अभय प्रदान करती हैं। काली माँ का नाम उनके शक्ति के कारण पड़ा है। जो सबको मारने वाले काल की भी रात्रि है अर्थात् काल को भी समाप्त कर देती है उनके सम्मुख वह भी नहीं ठहर सकता है। काल की विनाशिका होने से उनका काल रात्रि नाम पड़ा। काल का अर्थ समय से है और समय को भी काल के रूप में जाना जाता है। जिसका अर्थ मृत्यु से है। काल जो सभी को एक दिन मार देता है। उससे भी महाभयानक शक्ति का स्रोत माँ काली हैं। जिनके सम्मुख दैत्य क्या? साक्षात् काल! भी नहीं बच सकता है। वह माँ काली इस संसार की रक्षा करती है। और अपने श्रद्धालु भक्तों को भूत, प्रेत, राक्षस, बाधा, डर, दुःख, दरिद्रता, रोग, पीड़ाओं से बचाकर भक्त को अभय देने वाली हैं। जिससे भक्त को सुख समृद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा के इस सातवें रूप को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है जो इस संसार में आदि काल से सुप्रसिद्ध है। इन माँ की मूर्ति यद्यपि बड़ी ही विकराल प्रतीत होती है, जो परम तेज से युक्त है जो भक्तों के हितार्थ अति भयानक कालिरात्रि के रूप मे प्रकट होती हैं। माँ की चार भुजाएं जिसमे दाहिने हाथ में ऊपर वाला हाथ वर मुद्रा धारण किए हुए जो संसार में भक्त लोगों को उनकी इच्छा के अनुसार वरदान देता है तथा नीचे वाला अभय मुद्रा धारण किए हुए लोगों को निर्भय बना रहा है। बांये हांथ में ऊपर वाले हाथ में कटार और नीचे वाले में लोहे का काटा नुमा अस्त्र धारण किए है। इनके बाल घने काले और बिखरे हुए रौद्र रूप में दिखाई देते हैं। और तीन आंखें हैं, जो अत्यंत भयंकर व अतिउग्र और ब्रह्माण्ड की तरह ही गोलाकार है जिसमें बादल की विजली की तरह ही चमक हैं, यह घने काले अंधकार की तरह प्रतिभासित हो रही है। इनकी नासिकाओं सांस से अग्नि की अति भयंकर ज्वालाएं निकल रही है। कालि रात्रि के गले में दिव्य तेज की माला शोभित हो रही है और यह गर्दभारूढ़ है। इनकी अर्चना से सभी प्रकार के कष्ट रोग दूर होते है जीवन में सुख शांति की लहर होती है।

कालरात्रि की पूजा का विधान

श्री माँ आदि शक्ति दुर्गा के इस सातवें विग्रह को कालरात्रि के नाम से संसार में ख्याति प्राप्त है। इनकी कालि रात्रि की पूजा अस्तुति नवरात्रि के सातवें दिन करने का विधान होता है। यह अपने भक्तों को संकट से बचाने तथा स्मरण मात्र से अनेक प्रकार के भय को दूर करने वाली प्रेतिक बाधा को हरने वाली है तथा हर प्रकार से भक्त जनों का कल्याण करती है। यद्यपि इनका रूप बड़ा ही भयानक दिखाई देता है। किन्तु यह परम कल्याण प्रद है। अतः किसी को डरने की जरूरत नहीं हैं। भक्त को माँ इच्छित फल देने वाली है। अर्थात् माँ की कृपा को प्राप्त करने हेतु श्रद्धालु भक्तों को पहले के दिनों की तरह नित्यादि शुचि कर्मों को करते हुए। पूजन की जरूरी समाग्री एकत्रित करके तथा सुवासित जल, तीर्थ जल गंगा जल आदि सहित पंचमेवा व पंचामृत, पुष्प, गंध, अक्षत आदि से विविध प्रकार से पूजन करने का विधान है। इनकी पूजा से व्यक्ति के जीवन से प्रेतिक भय, दुःख, रोग, शोक आदि दूर रहते हैं। इस संसार में उसे कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता है। प्रत्यक्ष व परोक्ष शत्रुओं का नाश होता है। इनकी पूजा में पवित्रता, शुद्धता, संयम, ब्रह्मचर्य का पालन तथा सत्य मार्ग का अनुसरण करने का विधान होता। पूजा में श्रद्धा, विश्वास, शुद्ध भावना होना चाहिए अहंकार, लोभ, झूठ, क्रोध, मोह का त्याग करने का विधान है। जो व्यक्ति अन्याय व गलत करता है, उसे माँ दण्ड भी देने से परहेज नहीं करती है। क्योंकि यह प्रत्यक्ष रूप में आज कलियुग में भी मुखर हैं। इनकी साधना यदि शास्त्रीय विधि से की जाए तो तत्काल फल प्राप्त होता है। इसमे तनिक भी संदेह नहीं हैं। काली कलकत्ते वाली का नाम कौन है जो नहीं जानता? माँ काली की पूजा व अर्चना यद्यपि सम्पूर्ण भारत व विश्व के अन्य देशों में होती है। किन्तु बंगाल व असम में उनकी पूजा बड़े ही धूम-धाम से होती है।

माँ कालरात्रि की कथा

माँ काल रात्रि  प्रत्येक भक्त का कल्याण करने वाली है। माँ के विषय में पुराणों कई कथानक मिलते हैं। जिसमें सबसे प्रमाणिक दुर्गा सप्तशती है, जो दुर्गा के नवरूपों की उत्पत्ति के विषय को बड़े ही सार गर्भित रूप से जानकारी देती है। इसके अतिरिक्त देवी भागवत तथा अन्य पुराणों में भी माँ की कथा व महिमा के अंश प्राप्त होते है। काल रात्रि को काली का ही रूप माना जाता है। काली माँ इस कलियुग मे प्रत्यक्ष फल देने वाली है। क्योंकि काली, भैरव तथा हनुमान जी ही ऐसे देवता व देवी हैं, जो शीघ्र ही जागृत होकर भक्त को मनोवांछित फल देते हैं। काली के नाम व रूप अनेक हैं। किन्तु लोगों की सुविधा व जानकारी के लिए इन्हें भद्रकाली, दक्षिण काली, मातृ काली व महाकाली भी कहा जाता है। इनका यह प्रत्येक रूप नाम समान रूप से शुभ फल देने वाला है, जिससे इन्हें शुभंकारी भी कहते हैं। अर्थात् भक्तों का सदा शुभ करने वाली हैं। दुर्गा सप्तशती में महिषासुर के बध के समय माँ भद्रकाली की कथा वर्णन मिलता है। कि युद्ध के समय महाभयानक दैत्य समूह देवी को रण भूमि में आते देखकर उनके ऊपर ऐसे बाणों की वर्षा करने लगा, जैसे बादल मेरूगिरि के शिखर पर पानी की धार की बरसा रहा हो। तब देवी ने अपने बाणों से उस बाण समूह को अनायास ही काटकर उसके घोड़े और सारथियों को भी मार डाला। साथ ही उसके धनुष तथा अत्यंत ऊॅची ध्वजा को भी तत्काल काट गिराया। धनुष कट जाने पर उसके अंगों को अपने बाणों से बींध डाला। और भद्रकाली ने शूल का प्रहार किया। उससे राक्षस के शूल के सैकड़ों टुकड़े हो गये, वह महादैत्य प्राणों से हाथ धो बैठा।

इसी प्रकार चण्ड और मुण्ड के वध के लिए माँ विकराल मुखी काली प्रकट हुई। जिसकी कथा के कुछ अंश इस प्रकार हैं ऋषि कहते हैं – तदन्तर शुम्भ की आज्ञा पाकर वे चण्ड -मुण्ड आदि दैत्य चतुरंगिणी सेना के साथ अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित हो चल दिये। फिर गिरिराज हिमालय के सुवर्णमय ऊॅचे शिखर पर पहॅंचकर उन्होंने सिंह पर बैठी देवी को देखा। उन्हें देखकर दैत्य लोग तत्परता से पकड़ने का उद्योग करने लगे। तब अम्बिका ने  उन शत्रुओं के प्रति बड़ा क्रोध किया। उस समय क्रोध के कारण उनका मुख काला पड़ गया। ललाट में भौंहें टेढ़ी हो गयीं और वहाँ  से तुरंत विकराल मुखी काली प्रकट हुई, जो तलवार और पाश लिये हुए थी। वे विचित्र खट्वांग धारण किये और चीते के चर्म की साड़ी पहने नर-मुण्डों की माला से विभूषित थीं। उनके शरीर का मांस सूख गया था। केवल हड्यिों का ढ़ाचा था, जिससे वे अत्यंत भंयकर जान पड़ती थी। उनका मुख बहुत विशाल था, जीभ लपलपाने के कारण वै और भी डरावनी प्रतीत होती थीं। उनकी आंखें भीतर को धॅसी हुई और कुछ लाल थीं, वे अपनी भयंकर गर्जना से सम्पूर्ण दिशाओं को गुंजा रही थी। बड़े-बड़े दैत्यों का वध करती हुई वे कालिका देवी बड़े बेग से दैत्यों की उस सेना पर टूट पड़ीं और उन सबको भक्षण करने लगीं। आदि कथानक है।

काल रात्रि के मंत्र

माँ काल रात्रि माता के अनेकों उपयोगी मंत्र यथा स्थान संबंधित ग्रथों में उपलब्ध होते हैं। जिसमें प्रत्येक मंत्र का अपना महत्व है। जिसमें विभिन्न प्रकार के भय, शत्रु भय, जल भय, रोग भय आदि को दूर करने के मंत्र है। माँ अपने श्रद्धालु भक्तों को सभी वांछित वस्तुएं प्रदान करने वाली हैं। यहाँ  काल रात्रि के आराधना के मंत्रों को दिया जा रहा है।

दंष्ट्राकरालवदने   शिरोमालाविभूषणे ।  चामुण्डे मुण्डमथने  नारायणि नमोऽस्तु ते ।।

 या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।           

काल रात्रि महात्म्य

माता काल रात्रि के महात्म्य को दुर्गा सप्तशती में कई स्थानों पर वर्णित किया है। भक्तों को अभय देने व विभिन्न प्रकार के भयों से मुक्ति देने वाली कालिरात्रि का बड़ा ही महात्म्य है। अतः श्रद्धालुओं को वैदिक रीति द्वारा अनुष्ठान व व्रत का पालन करते हुए माँ कालरात्रि की पूजा बड़े ही निष्ठा से करना चाहिए।

शुभ नवरात्री 

अपनी व्यक्तिगत समस्या के निश्चित समाधान हेतु समय निर्धारित कर ज्योतिषी पंडित उमेश चंद्र पन्त से संपर्क करे | हम आपको निश्चित समाधान का आश्वासन देते है |

यह भी पढ़ना न भूलें: माँ महागौरी – नवदुर्गा की आठवीं शक्ति 

Blog Category

Trending Blog

Recent Blog


TRUSTED SINCE 2000

Trusted Since 2000

MILLIONS OF HAPPY CUSTOMERS

Millions Of Happy Customers

USERS FROM WORLDWIDE

Users From Worldwide

EFFECTIVE SOLUTIONS

Effective Solutions

PRIVACY GURANTEED

Privacy Guaranteed

SAFE SECURE

Safe Secure

© Copyright of PavitraJyotish.com (PHS Pvt. Ltd.) 2025