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चंद्र ग्रहण से जुड़ी महत्‍वपूर्ण जानकारी एवं तथ्‍य

Published On : February 10, 2017  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

चंद्रग्रहण एवं धरती – 10/11 फरवरी 2017

मानव मात्र ऐसा प्राणी है, जो धरा सहित आकाशीय घटनाओं के बारे में अनूठी जानकारी हासिल करके आज उनके प्रभाव से भली  प्रकार न केवल परिचित है, बल्कि इस तथ्य को भली प्रकार से जानता भी है, कि सूर्यादि नवग्रहों का प्रभाव धरती पर रहने वाले प्रत्येक प्राणियों पर पड़ता है। चंद्र जहाँ पृथ्वी के आश्रित रहने वाले विभिन्न प्रकार के प्राणियों चाहे वह किसी योनि व जाति के हो उन्हें प्रभावति करता है। वहीं विविध प्रकार के पेड़ पौधो को भी दिवा रात्रि में पोषित करता रहता है। चंद्र के प्रभाव को भला धरती में कैसे अनदेखा किया जा सकता है। चंद्र जहाँ सुन्दरता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। वही किसी मनुष्य के रूप लावण्य को संजाने के लिए बड़ी ही सूक्ष्मता से कार्य करता है। चंद्र इस धरती पर कवि की कविताओं का न केवल विषय है,  बल्कि उनके मन की उत्सुकता व सकारात्मक को भी पुष्ट करता है। जिससे कि कवि व लेखकों की लेखनी चंद्र की सौंदर्यता को उकेरने लगती है। यदि किसी की सुन्दरता को बताना हो, तो लोग चंद्रमुखी का संबोधन किसी नायक व नायिका के लिए अक्सर करते हुए देखें जाते हैं। इसी प्रकार कई ऐसे खुशबू युक्त सुन्दर पुष्प हैं, जिनके विषय मे कहा जाता है कि जब चंद्रमा रात्रि को अपनी किरणों द्वारा उन्हें पोषित करता हैं, तभी वह खिलतें हैं। इसी प्रकार धरती पर मानव मन को भी चंद्रमा अपनी प्रभावशाली किरणों के द्वारा प्रभावित करता है। इन सब प्रभावों को देखते हुए चंद्रमा के संदर्भ में कई ग्रंथ लिखे जा चुके हैं। संक्षेप में यह कहना है कि चंद्रमा पर जब ग्रहण होता है तो उसका शुभाशुभ प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर अवश्व ही पड़ता हैं। चाहे वह कोई भी व्यक्ति क्यों न हो।

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चंद्र ग्रहण एक परिचय

चंद्र ग्रहण के विषय में हमारे वेद, पुराणों मे जहाँ-तहाँ कई स्थानों पर उल्लेख प्राप्त होता है।  वहीं आज विज्ञान व ज्योतिष भी इसकी पुष्टि करते हैं और यह बताते हैं कि चंद्र ग्रहण का प्रभाव अवश्य ही होता है। यदि हम वेदों की बात करें तो, ऋग्वेद के अनुसार ग्रहण संबंधी ज्ञान अत्रिमुनि ने पहले ही अर्जित कर लिया था। इसी प्रकार मत्स्य आदि पुराणों में भी चंद्र ग्रहण के विषय में उल्लेख प्राप्त होता है। ग्रहण काल में तीर्थ के जलों में स्नान तथा दान देने व मंत्रों का जाप करने का विधान प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, चंद्र ग्रहण के समय में जहां खान-पान सहित अनेक क्रिया-कलापों का बड़ा ही सारगर्भित ढंग से उल्लेख मिलता है, वहीं महिला व पुरूषों सहित बच्चों व रोगियों को क्या करना चाहिए? क्या नहीं? इसका वर्णन किया गया है। अर्थात् रोगी व बच्चों को ग्रहण काल में खाने जल पीने का दोष नहीं है। इसके अतिरिक्त सभी को ग्रहण व सूतक काल में भोजन व अन्य मैथुन क्रिया कलापों को नहीं करना चाहिए।

चंद्र ग्रहण तभी घटता हैं, जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में रहता है। या फिर चंद्र ग्रहण की स्थिति तब आकाश में घटित होती है जब सूर्य, पृथ्वी, चंद्र क्रमशः एक सीधी रेखा में हो। चंद्र ग्रहण पूर्णिमा तिथि को घटित होता है। चंद्र ग्रहण कुछ घण्टों के लिए होता है। जिसका शुभ व अशुभ प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर रहता है। शुभ प्रभाव तो अच्छा हैं, जिसमें स्वेच्छा के अनुसार स्नान व दान पर रोक नहीं है। किन्तु अशुभ प्रभाव से बचने के लिए तीर्थ जलों में स्नान, दान, जप के लिए प्रतिबद्धता पर विशेष जोर दिया गया है। जिससे संबंधित व्यक्तियों का कल्याण हो सके और वह विविधि प्रकार के रोग, शोक व दुःखों से बच सकें। चंद्र ग्रहण के अशुभ प्रभाव से बचने हेतु चंद्र के मंत्रों जैसे – “ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः” का जाप करना चाहिए तथा दान भी देना चाहिए। चंद्र ग्रहण शुरू होने के 09 घंटे पहले ही सूतक शुरू हो जाते हैं, अतः सूतक काल में अन्न व जल को ग्रहण करने से यथासम्भव बचना चाहिए। ग्रहण के दूषण से बचने के लिए जलादि में खाने-पीने की वस्तुओं में कुशा या फिर गंगा जल डाल देने का विधान रहता है। जिससे वह बेकार नहीं होती है। पुराणाओं के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु जब देव व दैत्यों को अलग-अलग कतार में बैठालकर अमृत को परोस रहे थे तभी राहु (स्वरभानु) नामक एक राक्षस देवताओं की कतार में चुपके से अमृत पीने लगा, इस घटना को चंद्र ने देख लिया और भगवान को इस घटना को बता दिया। परिणामतः इसकी सजा देने व संसार की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर और धड़ अलग कर दिया। इसी बैर के कारण वह चंद्रमा को ग्रसता है।

चन्द्र ग्रहण एवं भारत मे इसका प्रभाव

यद्यपि चंद्रग्रहण का प्रत्येक राशि पर अलग-अलग शुभ-अशुभ प्रभाव रहता है। किन्तु इस वर्ष 10/11 फरवरी 2017 को होने वाले उपछाया ग्रहण का भारतवर्ष में आंशिक होने से इसका प्रभाव भारतवर्ष मे इसका असर नगण्य प्रभाव रहेगा। जिससे राशि के अनुसार इसका विचार व फल कथन नहीं किया जा रहा है। क्योंकि ज्योतिष के सर्वमान्य ग्रंथों में इस बात को पुष्ट किया गया है। कि पूर्णग्रहण व खण्ड ग्रहण की तरह यह मान्य नहीं है। क्योंकि धरती पर उपच्छाया ग्रहण की काली छाया नहीं पड़ती है। केवल चंद्रमा की आकृति में उसका प्रकाश हल्का धुंध जैसा रहता है। 10 से 11 फरवरी शुक्रवार की रात्रि व शनिवार के शुरूआत से ही शुरू होने वाले ग्रहण का यद्यपि कोई भी विशेष प्रभाव एवं महत्व नहीं है। किन्तु फिर भी जानकारी हेतु ग्रहण सम्बन्धी तथ्य यहा प्रस्तुत हैं:

अर्थात् स्पर्श काल          04-04  घं. मि. तक रहेगा।

इसके बाद मध्य काल    06-13 घं. मि. तक होगा

तथा मोक्ष काल          08-23 घं. मि. अतः इसमें स्नानादि कृत्य नहीं होगे।

समयावधि  4 घंटे 19 मिनट

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