भगवान परशुराम जयन्ती
Published On : April 5, 2024 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
भगवान परशुराम जयन्ती और उसका महत्व
भगवान परशुराम जयन्ती: हिन्दू धर्म में श्री हरि विष्णू के प्रसिद्ध अवतारों में भगवान परशुराम जी का अवतार धर्म की रक्षा एवं धरती के अत्यारों को मिटाने के लिये इस धर्म धुरी धरा पर त्रेतायुग में हुआ था। भगवान राम एवं परशुराम संवाद आज भी रामलीला के मंचन में बडे़ ही रोचक ढंग से किया जाता है। जिससे प्रतिवर्ष रामलीला के समय मे लक्ष्मण एवं परशुराम का संवाद उन्हें जनसमूह के सामने ला देता है। वैदिक धर्म ग्रन्थों के अनुसार परशुराम चिंरजीवी है। जिससे उनका नाम आज भी लंबी आयु एवं योग्यता आदि के लिये जपा जाता है। यह भगवान विष्णू के छठे अवतार के रूप में जाने एवं पहचाने जाते हैं। इनका जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ के द्वारा पिता भृगु एवं माता रेणुका के गर्भ से हुआ था। इनके जन्म के लिये उनके माता पिता को देवराज इन्द्र से वरदान प्राप्त हुआ था। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया में इनका जन्म हुआ था। माता पिता ने इन्हें बड़े ही लाड़ प्यार से पाल पोषा था। भगवान शिव जी द्वारा इन्हें परशु नाम एक दिव्य अस्त्र यानी फरसा दिया गया था। जिससे इनके नाम से पहले और बाद में राम शब्द जुड़ा जिससे इनका नाम परशुराम हुआ। और इसी नाम से कालान्तर मे सम्पूर्ण जगत में विख्यात हुये। इनकी शिक्षा दीक्षा महर्षि विश्वामित्र और ऋचीक के देख रेख में हुई थी। ऋचीक ने इन्हें दिव्य वैष्णव धनुष दिया था। जो अमोघ था। तथा महर्षि कश्यप से इन्होंने वैष्णव मंत्र की दीक्षा ग्रहण की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न देव एवं ऋषियों ने उन्हे कई तरह के वरदान दिये थे। भगवान शिव ने उन्हें त्रैलोक्य विजय नाम कवच दिया था। जिससे वह किसी भी प्रहार से सदैव सुरक्षित रहते थे। वहीं भगवान विष्णू के अपने इस अवतारी अंश को कल्पान्त तक धरती में रहने का वरदान दिया था। भगवान परशुराम का जन्म धरती पर बढ़ते अत्याचारों को मिटाने के लिये ही हुआ था। वह धर्म एवं वेद शास्त्रों के सर्वोत्कृष्ट ज्ञाता एवं प्रचारक थे। तथा बहु नारी प्रथा के प्रचलन को समाज से हटाने में उनकी बड़ी भूमिका थी। इसलिये वह प्रचलित पुरूष बहु विवाह के विपरीत थे। और एक पत्नी को धर्म एवं कुल की रक्षा के लिये ही वरण करना चाहिये इस पक्ष मे थे। उन्होंने अनेकों शिष्यों को शिक्षित भी किया था तथा उन्हें दीक्षा दान दिया था। जिसमें कर्ण, भीष्म एवं गुरूद्रोणाचार्य प्रमुख थे। जिन्हें उन्होनें युद्ध कौशल एवं धनु विद्या में निपुण किया था।
भगवान परशुराम एवं पौराणिक कथानक
इनके संबंध में कई पुराणों में स्थान-स्थान पर संदर्भ प्राप्त होते है। श्रीमद्भागवत पुराण, श्रीकल्कि पुराण तथा श्रीरामचरित्र मानस एवं रामायण और महाभारत में इनके संदर्भ में अनेकों प्रसंग एवं बड़े ही रोचक संवाद प्राप्त होते हैं। कहते है भगवान अहंकार का भक्षण करते हैं। इसी क्रम में उन्होंने अहंकार के मद में चूर हुये तथा धरती पर अत्याचारों को बढ़ाने वाले हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार किया था। क्योंकि धरती में वेद एवं शास्त्रों का प्रचार एवं धर्म स्थापना उनका मूल उद्देश्य था। इसी क्रम में उन्होंने भारत में कई गाँवों को बसाने का काम किया था। इस संदर्भ में कथा प्राप्त होती है। कि समुद्र का अहंकार नष्ट करने के लिये भगवान परशुराम ने अपना धनुष वाण चलकर गुजरात से लेकर केरला तक के समुद्र का जल सोख लिया था। और उसमें लोगों को गाँव के रूप में बसा दिया था। जिससे आज भी केरला एवं गुजरात आदि के क्षेत्रों में भगवान परशुराम की पूजा अर्चना विशेष रूप से होती है। वह अपने बचपन से माता-पिता एवं गुरूजनों की सेवा में संलग्न थे। बड़ों की आज्ञा के पालन में सदैव ही तत्पर रहते थे। वह भार्गव गोत्र के सबसे पराक्रमी एवं दिव्य पुरूष थे। जिनके समान न कोई हुआ है। शायद न ही हो सकता है। वह उस समय की राज्य व्यवस्था को सुधारते हुये कहते हैं। कि राजा का कार्य धर्म एवं देश की रक्षा सुरक्षा तथा वातावरण की शुचिता को बनाये रखना है। न कि प्रजा पर किसी अनुचित आज्ञा के पालन का दवाब बनाना है। वह इतने बड़े ज्ञानी एवं प्राकृति के पे्रमी थे कि सभी पशु एवं पक्षियों की भाषा को समझते थे। तथा उन्हें प्रेम करते थे। कोई भी हिसंक एवं क्रूर जीव हो उसके समीप पहुंच वह हाथ फेरते तो उसी क्षण वह उनका मित्र हो जाता था। हालांकि कई बार उनकी वीरता एवं पराक्रम के कारण कुछ लोग इन्हें क्षत्रिय के कर्म करने वाला ब्राह्मण कहते हैं। क्योंकि तत्कालिन समाज में ब्रह्मण का कर्म शिक्षा एवं ज्ञान का प्रचार तथा वैदिक कर्म एवं यज्ञादि थे। हालांकि इस संदर्भ में कुछ पौराणिक कथानक प्राप्त होते है। जिसमें प्रसाद के बदलने के कारण ब्राह्मण एवं क्षत्रिय गुणों का उदय हुआ था। भगवान परशुराम पाँच भाई थे। जिनके नाम रूक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस तथा परशुराम है।
भगवान परशुराम एवं अन्य तथ्य
भगवान परशुराम के संदर्भ में ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान परशुराम के संदर्भ में भी कथानक हैं। जिसमें उन्होनें श्री गणेश की अनुमति के बिना जब शिवपुरी में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं। तो श्री गणेश उन्हें अचेत कर देते है। किन्तु चेतना आने पर वह शिव के अस्त्र परशु का प्रयोग श्री गणेश जी पर करते हैं। जिससे उनका एक दंत उस आघात से टूट गया जिससे वह एक दंत कहलाये। इसी प्रकार रामायण में भी शिव धनुष तोड़ने पर तथा अन्य घटनों के समय भगवान परशुराम के संदर्भ में बड़े रोचक संवाद मिलते है। कहते है कि पिता के आज्ञा से इन्होंने अपनी माता का वध कर दिया था। किन्तु पुनः पिता के वरदान द्वारा उन्हें जीवित भी कर लिया और यह वरदान मांगा कि मेरे द्वारा मारी गयी माता एंव परिवार के भाइयों को यह घटना जीवन में कभी भी याद नहीं आयें। और हे पिता! आप मेरी सेवा से प्रसन्न है। तो ऐसा वरदान दें। पिता ने तथास्तु कहा। भगवान परशुराम की जन्म जयंती की धूम प्रति वर्ष रहती है। तथा यह हिन्दू धर्म में सभी प्रकार से उपयोगी एवं शिक्षाप्रद है।
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