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Learn Astrology Lesson Two Hindi

Published On : May 25, 2020  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

ज्योतिष सीखिए पाठ 2 – प्रारंभिक ज्योतिष ज्ञान

प्रिय विद्यार्थियों पिछले ज्योतिष पाठ मे हमने संक्षिप्त रूप मे ज्योतिष की महत्ता एवं हमारे ऋषियों के बारे मे बताया, ताकि ज्योतिष के सम्बन्ध मे फैले अनावश्यक भ्रम एवं संशय पर पूर्ण विराम लग सके। क्यूंकि जब भी आप किसी भी विषय के अध्ययन-अध्यापन को शुरू करते है तो मन मे व्याप्त भ्रम, भ्रांतिया एवं संशय को दूर करना नितांत आवश्यक है। अब हम अपने विषय पर आगे बढ़ते है। ज्योतिष की प्रारंभिक शिक्षा मे अब ग्रह, ग्रहो का सम्बन्ध, नक्षत्र, ऋतुएँ, मास, पक्ष, तिथि, तिथियों के स्वामी, करण, राशि, कारकत्व आदि समस्त जानकारियाँ जानेगे। कृपया इन्हे ध्यान से पढ़े एवं याद कर ले। ज्योतिष  की प्रारम्भिक जानकारियों को आपको कंठस्थ करना ही होगा तभी आप ज्योतिष के क्षेत्र मे सहजता पूर्वक कार्य कर पाएंगे ।

आत्मा का संबंध स्थूलकाय से है और जीर्ण वस्त्र के समान वह शरीर को छोड़ती है। पर दूसरे शरीर के लिये लिंग व पिछले संस्कारों का संबंध उससे नहीं रहता है। ज्योतिष इसी को तो स्पष्ट करता है कि आत्मा वर्तमान स्थूल शरीर में रहते हुये भी जन्म जन्मान्तरों के संबंध से संबंधित रहती है।

प्राणी जब जन्म लेता है, माता-पिता, भाई-बहन , बंधु-बान्धव, आदि से मिलकर उसका अपना अलग एक छोटा-मोटा संसार बन जाता है। परन्तु बालक जन्म से ही क्रियाशील नहीं होता है। सम्भवतः 12 वर्ष की आयु तक, प्रायः वह पराश्रित रहता है। अतः 12 वर्ष की अवस्था तक ज्योतिष प्रभावी नहीं माना जाता है।

मनोवैज्ञानिकों ने क्रियाशीलता के आधार पर मानवीय व्यक्तित्व को दो भागों में विभक्त किया है-

(i) वाह्य व्यक्तित्व – इसके अनुसार मानव जन्म से लेकर अपने पूर्व जन्म के विचार, भाव व क्रियाओं के अनुसार अपने को ढ़ालने का प्रयाास करता है। धीरे-धीरे वह व्यक्त्वि का विकास करता जाता है।

(ii) आन्तरिक व्यक्तित्व – यह वह है जो बाह्य जगत के संचित एवं क्रियामाण कार्यों, अनुभवों एवं विचारों को संजोकर रखता है।

ज्योतिष के आधार पर ब्राह्य व्यक्तित्व के तीन रूप है। भाव, विचार, क्रिया तथा आन्तरिक व्यक्तित्व के रूप।

स्मृति- अनुभव एवं प्रवृत्ति को अन्तःकरण एक रूप मे संगठित करता है। यही प्रतीक सौर मण्डल के सात ग्रह है।

यहाँ संक्षेप रूप मे हम बताने का प्रयास कर रहे है।

ब्राह्य व्यक्तित्व

रूप             –   ग्रह         –  प्रभाव

प्रथम रूप    –  बृहस्पति  –  शरीर, धर्म, सौंदर्य, प्रेम, शक्ति ।

द्वितीय रूप   –  मंगल   –  इन्द्रिय ज्ञान, आनन्द, इच्छा, आत्मविश्वास, दृढ़ता ।

तृतीय रूप    –  चन्द्रमा  –  शरीर व मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तन संवेदना, भावना, कल्पना -लाभेच्छा ।

आन्तरिक व्यक्तित्व

प्रथम रूप   – शुक्र   –  कला, प्रेम, सौंदर्य, आकर्षण, निः स्वार्थ प्रेम, कार्यदक्षता, परख, बुद्धि आदि का प्रतीक।

द्वितीय रूप  – बुध    – आध्यात्मिक शक्ति, निर्णय, बुद्धि स्मरण शक्ति आदि।

तृतीय रूप   – सूर्य    – देवत्व, सदाचार, इच्छाशक्ति, प्रभुता, ऐश्वर्य, आत्मविश्वास, दयालुता आदि का प्रतीक है।

अंतः करण

तृतीय रूप –  शनि  –  तात्विक ज्ञान, नायकत्व, मननशीलता धैर्य, दृढ़ता, गम्भीरता, सतर्कता कार्य क्षमता आदि के प्रतीक के रूप में।

वराहमिहिर ने उक्त सातों ग्रहों का बारह राशियों का स्थान अपने शरीर में निम्न प्रकार सेबताया है– 

1      मस्तक   –      मेष         2    मुख           – वृष   

3      हृदय      –    मिथुन      4     वक्षः स्थल  – कर्क

5      उदर      –     सिंह         6     कटि     –   कन्या

7      वस्ति      –    तुला        8     लिंग     –  वृश्चिक

9      कंधा      –     धनु         10   घुटना    –   मकर

11     पिंडली   –    कुम्भ       12    पैर           –  मीन

उपर्युक्त बाहर राशियों में भ्रमण करने वाले ग्रहों में सूर्य-आत्मा, चन्द्रमा-मन, मंगल-धैर्य बुध– वाणी, गुरूज्ञान, शुक्र-सुख, वीर्य, शनि-संवेदना का प्रतीक है।

सौर मण्डल की एक सदस्य है- पृथ्वी। निरन्तर अबाध गति से, अनवरत पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती रहती है। अन्यान्य ग्रहों में जिस प्रकार का आकर्षण शक्ति है, ठीक उसी प्रकार पृथ्वी में भी आकर्षण शक्ति हैं। स्वयं सूर्य भी उससे प्रभावित होकर अपनी ओर खींचने का सतत् प्रयास करता है। फलस्वरूप पृथ्वी तल पर ताप, शक्ति, ओज व प्रकाश का प्रादुर्भाव होता है। जीवधारियों में प्राण शक्ति का संचरण होता है। सूर्य के समान अन्य ग्रहों का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है। जो परस्पर ओज प्रदान करते हैं।

चन्द्र ग्रह निकटतम ग्रह है, और इसका प्रभाव जल तत्त्व पर विशेष रूप से पड़ता है। प्रत्येक पूर्णमासी को ज्वार आना ही इसका प्रमाण है। जल, चल तत्व है वह स्थिर नहीं रह सकता है। इसी प्रकार मन के चल तत्व होने के कारण चन्द्रमा का भी मन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। चन्द्रमा के समान मन द्रुतगामी है। ” चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो सूर्यो अजायतः” चन्द्रमा मन का स्वामी है । सूर्य दिनपति है, प्रकाश का कारक अतः इसका प्रभाव नेत्रों पर विशेष है और अन्तः करण का ज्ञान भी इसी से करते है। किसी भी जातक की जन्म कुण्डली को देखने में हम चन्द्रमा को बहुत प्राथमिकता देते हैं।

सौर मण्डल में जितने भी ग्रह है। उनका भ्रमण एक निश्चित मार्ग से होता है। और जब-जब जिन-जिन ग्रहों का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है, उसी गति से उनका फल भी दृष्टिगोचर होता है। जिस मार्ग से पृथ्वी सूर्य का परिभ्रमण मार्ग का नाक्षात्रिक वृत्त का उसी मार्ग से सभी ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते है। उसी मार्ग के आस-पास नक्षत्र गोल में समस्त ग्रहों का भी मार्ग है जो क्रांतिवृत्त से 7 अंश का कोण बनाते हुये चक्कर लगाते है।

राशियों का आकार पृथ्वी तल पर रहने वाले जीव-जन्तुओं के समान होने के कारण उनके वैसे ही नाम पड़े । इसी प्रकार 12 राशिया है।  जो की इस प्रकार है।  प्रत्येक राशि का एक अंक निर्धारित है, जिसे की हम नीचे चार्ट मे दिखा रहे है।

1       –       मेष                         2     –     वृष

3       –      मिथुन                     4     –     कर्क

5       –       सिंह                        6     –     कन्या

7       –      तुला                        8     –     वृश्चिक

9      –        धनु                         10   –     मकर

11      –      कुम्भ                       12    –    मीन

विद्यार्थियों आप इन राशि के सम्मुख लिखे अंक को याद कर ले कि कौन सा अंक कौन सी राशि को इंगित कर रहा है। आने वाले अध्याय मे हम इसका उपयोग करेंगे एवं जब भी आप जन्मकुंडली का अध्ययन करेंगे तो बार बार इसकी आवश्यकता होगी। अतः इसकी उपयोगिता को समझे। आने वाले आगे के पाठ मे हम प्रारंभिक ज्योतिष ज्ञान के अगले विषय पर चर्चा करेंगे।

यह भी पढ़ें: ज्योतिष सीखिए पाठ – 1


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