कूर्म जयंती
Published On : April 16, 2024 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
कूर्म जयंती एवं उसका महत्व
भगवान श्री हरि विष्णू ने इस संसार के पालन एवं रक्षा हेतु सतत् लगे हुये रहते हैं। वरदानों की शक्ति में चूर जब दैत्य समूह अपने अत्याचार के द्वारा सम्पूर्ण संसार मे अनीत एवं अत्याचारों से डुबानें लगे तब देव समूहों में भगवान विूष्णू से प्रार्थना की कि हे जगत के पालन करने वाले विष्णू हम पर अनुग्रह करें। तो भगवान ने इस रूप को धारण करके समुद्र मंथन के समय मंदराचल पर्वत एवं नाग वासुकी सहित समुद्र मंथन में लगे सभी देव समूहों को सहयोग दिया था। तभी मंदराचल पर्वत वहां टिक सका और नाग वासुकी की रस्सी से जो समुद्र मंथन हुआ उसमें चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी। इसके संबंध में श्रीमदभागवत पुराण एवं नरसिंह पुराण महाभारत तथा पद्मपुराण लिंग पुराण आदि में वर्णित है। भगवान के इस अवतार के पीछे पृथ्वी की रक्षा एवं सुरक्षा का लक्ष्य तथा दुर्वासा ऋषि ने इन्द्र को श्राप दिया कि तुमने परिजात माला का अपमान किया है। इसलिये तुम्हारा वैभव समाप्त हो जायेगा। जिससे माँ लक्ष्मी समुद्र में कहीं विलीन हो गयी थी। जिससे सभी देव एवं देवता श्री हीन हो गये। और संसार में हाहाकार मच गया। जिससे देवताओं ने भगवान की आज्ञा से समुद्र मंथन किया जिसमें भगवान विष्णू को कूर्मावतार धारण करना पड़ा। जब समुद्र मंथन का कार्य प्रारम्भ हुआ तो मंदराचल पर्वत रसातल को जाने लगा जिसे भगवान ने कूर्म का रूप धारण करके नीचे से अपने पीठ पर धारण कर लिया तो पुनः सफलता पूर्व समुद्र मंथन हो पाया जिससे चौहद रत्नों की प्राप्ति हुई। और माँ लक्ष्मी का भी उद्भव उसी समुद्र से हुआ था। कूर्म जयंती के अवसर पर समूचे देश में हर्षोल्लास का महौल होता है। तथा भगवान विष्णू के मंदिरों को विशेष रूप से सजाया एवं संवारा जाता है। तथा कई स्थानों पर भण्डारों का आयोजन भी किया जाता है।
कूर्म जयंती की पूजा विधि
भगवान की कूर्म जयंती के शुभ अवसर पर श्रद्धालु भक्तों को पूरी शुचिता का ध्यान देते हुये सभी प्रकार के तामसिक पदार्थों का त्याग व्रत की संध्या में ही कर देना चाहिये। तथा व्रत एवं पूजन के लिये उपयोगी सामाग्री को एकत्रित करके उसे अपने पूजा स्थल पर रख लें। तथा प्रातः काल में सूर्योदय से पहले उठकर शौचादि, स्नान क्रियाओं को सम्पन्न करें। तथा पूर्वाभिमुख एवं उत्तराभिमुख होकर आसन में बैठकर आचमन एवं आत्मशुद्धि की क्रिया को सम्पन्न करें। और भगवान का स्मरण करते हुये अपने व्रत एवं पूजन का संकल्प लें। और पूरे विधि विधान से के साथ षोड़शोपचार विधि से भगवान की पूजा अर्चना करें। और उसे कूर्म अवतार भगवान विष्णू को समर्पित करें दें। तथा अपने किसी भी भूल चूक की उनसे प्रार्थना करें।
कूर्म जयंती कथा
एक बार की बात महर्षि दुर्वासा इन्द्रलोक मे पहुंचकर उनके सम्मान में उन्हें पारिजात पुष्प की माला अर्पित किया। किन्तु दुर्भाग्यवश यानी अपने वैभव के मद में चूर इन्द्र देव ने इसे नहीं स्वीकार किया और अपने हाथी को पहना दिया जिससे हाथी ने उने जमीन में फेंक कर रौंद दिया। इससे क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने उन्हें श्राप दिया। और देवता श्री एवं शक्ति से विहीन हो गये। इस संकट से बचने के लिये देवताओं ने परम पिता ब्रह्मा जी से उपाय पूछा तो उन्होंने उन्हें भगवान विष्णू के पास जाने के लिये कहा तब देवताओं ने श्री हरि से विष्णू से अपनी शक्ति एवं वैभव के छीनने का कारण बताया। जिससे भगवान विूष्णू ने उन्हें समुद्र मंथन का उपाय बताया कहा कि समुद्र मंथन से जो अमृत प्राप्त होगा। उसके पान से पुनः देवताओं में शक्ति का संचार हो जायेगा। तथा लक्ष्मी भी वहीं से प्रकट होगी। इस प्रकार देवताओं ने शक्ति एवं श्री संचय के उद्देश्य से समुद्र मंथन का कार्य प्रारम्भ किया। किन्तु बिना असुरों के सहयोग से यह कार्य सम्भव नहीं था। जिससे उन्हें भी इस कार्य के लिये राजी किया। जिससे कूर्म रूप धारी भगवान को मंदराचल पर्वत को आधार देने के लिये अपनी पीठ पर रखना पड़ा। भगवान कूर्म के ऐसे विशाल रूप ने समुद्र मंथन के महान कार्य को सम्पन्न करवा था। इसी समुद्र मंथन में भगवान को देवताओं एवं दैत्यों के मध्य विवाद को दूर करने के लिये मोहिनी रूप धारण करना पड़ा था। साथ ही भगवान शिव ने संसार की रक्षा हेतु उससे निकले हुये काल कूल हलाहल विष का पान किया था। जिससे संसार सहित देवताओं का कल्याण का मार्ग प्रशस्त हुआ था। हर प्रकार से वंदनीय भगवान कूर्म जयंती पर जो भक्त श्रद्धा विश्वास से उनकी पूजा अर्चना करता है। भगवान विष्णू यानी कूर्म अवतार जिसे कछुआ भी कहा जाता है। सभी प्रकार से उनका कल्याण करते हैं।
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