जानकी भगवती जयंती
Published On : April 12, 2024 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
जानकी भगवती जयंती और इसका महत्व
भारत की धरती को पवित्र करने एवं अधर्म तथा पाप के विनाश के लिये हिन्दू धर्म में देवी देवताओं के परम अवतारों की गाथायें धर्म ग्रन्थों में प्राप्त होती है। भगवती जानकी के जन्म से जुड़ी धर्म शास्त्रों में अनेकों घटनायें है। महाराज जनक जो कि संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ करवाने की तैयारी कर रहे थे। इसी उद्देश्य को लेकर महाराजा जनक जी महारानी के साथ मिलकर यज्ञ भूमि को तैयार करने के लिये हल जोत रहे थे। तभी वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को उनके हल से टकराकर एक कन्या प्रकट हुई। जिसे राजा जनक जी ने अपनी पुत्री माना जिससे उन्हें जानकी कहा जाने लगा उनका एक नाम और था। जिसे सीता कहा जाता था। जिस भूमि को जनक जी ने जोता था उसे और हल की नोक को भी सीता कहा जाता है। सम्पूर्ण भारतवर्ष और अन्य देशों में जहा हिन्दू धर्म का मानने वाले है। वहा भी बड़े हर्षोल्लास के साथ जानकी जयन्ती के अवसर पर व्रत एवं उत्सवों का आयोजन किया जाता है। भगवती जानकी का व्रत व्रती साधक को वांछित फलों को देने वाला होता है। इस दिन भगवती जानकी एवं भगवान श्रीराम तथा लक्ष्मण के मन्दिरों को भव्य रूप से सजाया एवं संवारा जाता है। तथा उनकी विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। जिससे भक्तों की मनो कामनायें पूर्ण होती है। इस अवसर पर सीताराम के दरबार की पूजा भक्ति पूर्वक करने से जो फल पृथ्वी का दान देने से होता है। और जो फल तीर्थों के स्नान एवं दान से होता है, वहीं पुण्य फल जानकी भगवती जयंती के अवसर पर व्रत एवं पूजन से प्राप्त होता है। इस अवसर पर श्रद्धालु भक्तों को सीताराम सीताराम जो कि महामंत्र है यह नाम सभी पापों से तारने वाला तथा व्यक्ति को सद्गति देने वाला परम कल्याणप्रद है।
जानकी भगवती जयंती की पूजा विधि
व्रत की संध्या पर ही पूजन की सम्पूर्ण सामाग्री को एकत्रित कर लें। इस अवसर पर शौचादि स्नान क्रियाओं को सम्पन्न करने के बाद शुद्ध धूले हुये कपड़ों को धारण करें या फिर नूतन वस्त्र धारण करके भगवान राम एवं भगवती जानकी की षोड़शोपचार विधि से पूजा अर्चना करें। तथा अपने पूजन कर्म को भगवती जानकी को अर्पित कर दें। और सीताराम एवं भगवती जानकी को प्रणाम करें। तथा उनसे क्षमा प्रार्थना करें।
जानकी भगवती जयंती एवं पौराणिक कथा
प्रचलित कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र के एक ब्राह्मण की पत्नी के बुरे कर्मो के कारण उसे चाण्डाल योनि में जन्म लेना पड़ा तथा पूर्व के जन्म के पापों के कारण उसने इस जन्म में भी अपने पति का त्याग कर दिया था। पूर्व जन्म के घृणित एवं निदिंत आचरण के कारण उसे कुष्ठ एवं अंधापन प्राप्त हो गया था। जिससे उसे नाना प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक कष्टों को सहना पड़ा था। वह अपने अपराधों के कारण दर-दर भटकने लगी है। एक दिन वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को उसे कुछ खाने को नहीं मिला और वह जानकी मन्दिर में जाकर अपने क्षुधा को शांत करने के लिये भिक्षा मांगने लगी तो वहा बैठे हुये धर्म निष्ठ ब्राह्मणों ने उसे अन्न देने के से मनाकर दिया और कहा कि आज जानकी नवमी व्रत है। कल आना तो भरपेट भगवान की कृपा से भोजन प्राप्त होगा। किन्तु उसने कहा कि मुझे भूखा एक पल भी नहीं रहा जाता है। जिससे पंड़ित जी ने उसे तुलसी दल और भगवान के चरणों का चरणामृत दे दिया। इस प्रकार जानकी नवमी का व्रत उससे अनजाने में हो गया और उसके प्राण पखेरू भी उड़ गये जिससे उसके समस्त पापों का नाश हो गया। और उसे स्वर्ग एवं सद्गति प्राप्त हुई। अर्थात् जानकी यानी सीता भगवती के व्रत एवं पूजन से प्राणियों को वांछित फलों का प्राप्ति होती और उसका कल्याण होता है।
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