वसंत पंचमी, श्री पंचमी या सरस्वती जयंती दिनांक 26 जनवरी 2023
Published On : January 4, 2017 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
वसंत पंचमी, श्री पंचमी या सरस्वती जयंती
प्रकृति के प्रति अगाध प्रेम भावना रखने वाली सनातन धर्मी भारत भूमि मे युगों से प्रकृति प्रेम व सौदर्यं की गाथाएं किसी न किसी रूप में गाई जाती रही हैं। वसंत पंचमी भी इसी का प्रतीक है। इसे श्री पंचमी या सरस्वती जयंती के नाम से भी जाना जाता है। विविध ऋतुओ से सजी हुई, भारतीय भूमि में वसंत पंचमी को ऋतुराज अर्थात् ऋतुओं के राजा के नाम से जाना जाता है। यद्यपि प्रत्येक ऋतु 2 महीने की होती है, जिसमें एक वर्ष में 6 ऋतुओं की आवृत्ति होती है। सभी का अपना-अपना महत्व है। किन्तु जो मोहकता, सजीवता, सौंदर्य, कला, साहित्य, कविता, सरलता, सहजता, मधुरता व सुहावने पुष्पों की खुशबू इसमें है, वह शायद ही कहीं इतनी मात्रा मे प्राप्त हो। इस समय धरा का कोना-कोना ऐसे सजा रहता है। जैसे मानों कोई उत्कृष्ट राज दरबार किसी उत्सव को मनाने हेतु दुल्हन की तरह सजा हुआ हो। इस वसंत (ऋतुराज) के आते ही खेतों में पीले-पीले सरसों के फूल, बाग-बगीचों में इसे देख बौराएं आम के वृक्ष, गेंहू, जौ, चना, मटर, दलहन, सहित नाना विधि सफलों की उपज, पुष्पों पर गुंजार करते भंवर समूह, नाना विधि उड़ती हुई रंग-विरंगी तितलियां ऐसा प्रतीक हैं, जो मानों प्रकृति के समृद्ध होने का राग छेड़े हुए हैं। बसंत पंचमी के दिन अपने लिए सरस्वती पूजा हेतु स्थान आरक्षित करे |
वसंत पंचमी का महत्व
वसंत पंचमी समृद्धि का संकेत करते हुए बौद्धिकता को उत्कृष्ट करने का शुभ अवसर है। इस दिन शैक्षिक क्षेत्रों में प्रथम अध्ययन हेतु बालक व बालिकाओं को स्कूल भेजा जाता है। इस दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती का पूजन होता है। विभिन्न कला, संगीत, फिल्म, सौंदर्य के क्षेत्रों में दक्षता को हासिल करने हेतु सभी लोग विद्या की देवी माँ सरस्वती का पूजन अर्चन करते है। यह प्रथा भारत सहित नेपाल व अन्य देशों में प्राचीन समय से प्रचलित है। वंसत का त्यौहार विद्या व वाणी की देवी माँ सरस्वती के उत्पत्ति के कारण तो महत्वपूर्ण है, ऐसा पौराणिक कथानक है। किन्तु भगवान राम सहित अन्य कथाएं हैं, जिसके कारण वसंत पंचमी का आज भी पूरे विश्व में महत्व बना हुआ है। बौद्धिक कुशाग्रता को बढ़ाने हेतु माँ सरस्वती की आराधना भारत सहित सम्पूर्ण जगत मे किए जाने का विधान है। वसंत पंचमी के दिन वाणी की देवी की पूजा हेतु स्त्री व पुरूषों द्वारा पीले रंग के परिधानों को पहनने का रिवाज है। आज के दिन वाद्य यंत्रों का पूजन व दान बौद्धिक कुशाग्रता व स्मृति को बढ़ाने वाला रहता है।
वसंत पंचमी का पौराणिक महत्व
इस मन मोहक त्यौहार वसंत पंचमी के आते ही बागों में बहार आने लगती है, कल-कल करती नदियों का जल पेड़ पौधो में नव जीवन का संचार करते हुए मधुर राग सुनाता है। धीरे-धीरे सर-सर करती हवाएं, शीत व ताप का संतुलन प्रत्येक व्यक्ति का मन मुग्ध कर लेता है। इतना ही नहीं कोकिला भी मधुर धुन सुनाता हुआ श्रवण रंध्रों को आनन्द देता है। इस मधुर ऋतु की आहट पाकर कई कवियों का मन ललचा उठता है, और अपनी कविताओं से प्रकृति सौंदर्य को उकेरने लगते है। वसंत पंचमी का बड़ा ही पौराणिक महत्व है। हमारे पौराणिक ग्रंथो के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म भी वसंत ऋतु में हुआ था। इसके अतिरिक्त अनेकों पौराणिक कथानक वसंत ऋतु व वसंत पंचमी से जुड़े हुए हैं। भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान वसंत पंचमी के दिन शबरी के आश्रम में पहुंचे थे। जिससे गरीब व वनवासी भीलनी के यहां खुशियों का वसंत झूम उठा। आज के दिन भगवान श्रीराम, श्री राधाकृष्ण, श्री हरि विष्णु, कामदेव का पूजन भी होता है। माँ सरस्वती का पूजन बुद्धि व ज्ञान को बढ़ाने वाला है, वहीं श्रीहरि, श्रीराम, श्रीराधा कृष्ण व मदन पूजन सर्वविधि कल्याण दायक होता है।
वसंत पंचमी का ऐतिहासिक महत्व
वसंत पंचमी का पौराणिक महत्व तो है ही साथ ही इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। इतिहास के पन्नों में देंखे तो महान वीर योद्धा, आत्मविश्वास से परिपूर्ण पृथ्वीराज चैहान का नाम आता है। उन्होने विदेशी आक्रमणकारी दुष्ट, दुर्जन, कुटिल, मोहम्मद गौरी को उसके दुस्साहस का 16 बार जवाब दे उसे पराजित कर उदारता दिखाते हुए छोड़ दिया था। किन्तु मो0 गौरी द्वारा पुनः 17वीं बार दुस्साहस करके आक्रमण कर उन्हें अपने देश अफगानिस्तान ले जाकर उनकी आंखेँ फोड़ दिया। किन्तु महान योद्धा पृथ्वीराज चैहान ने अपने कवि चंदबरदाई के संकेत को सुनकर उस दुष्ट को शब्द भेदी वाण चलाकर उसी के राजदरबार में उसको मार गिराया था। और अपने देश के लोगों को संदेश दिया कि वह फूटी आंखें होने पर भी उस दुष्ट के मार देंगे। देश व सेना का साथ होने पर वह उसके ही स्थान देश से उसे मिटा देंगे और आत्म बलिदान देकर आत्म सम्मान व वीरता की रक्षा करेंगे। इसी प्रकार अनेको ऐतिहासिक घटनाएं हैं, लौहार के वीर हकीकत की घटना, रामसिंह कूका आदि की घटनाएं जो इसी दिन वसंत पंचमी के दिन घटित हुए थी। इसलिए इसका ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
वसंत पंचमी की कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार परम पिता ब्रह्मा जी ने आदि काल में सृष्टि की रचना की थी। जिसमें सम्पूर्ण जीव जगत सहित मानव भी शामिल है। किन्तु चहु ओर सन्नाटा होने से ब्रह्मा जी अपनी रचना में कहीं कमी का एहसास करने लगे और श्री हरि से चर्चा कर सृष्टि को वाणी देने के उद्देश्य से वाग्यशक्ति माँ सरस्वती को अभिमंत्रित किया। माँ सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक वरमुद्रा धारण किए हुए ब्रह्मा के सन्मुख प्रकट हुई। और आज्ञा पाकर देवी ने उस वातावरण में वीणा वादन कर सम्पूर्ण सृष्टि में वाणी शक्ति को भर दिया। जिससे सम्पूर्ण सृष्टि में प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया में शब्दों की आवृत्ति होने लगी। मानव शब्दों से युक्त हो वाक्यों की रचना करने लगा। माँ वागीश्वरी ने गीत, संगीत की रचना कर भ्रमरों को गुंजार शक्ति, चिड़ियों को चहचहाने व विभिन्न पशु पक्षियों में वाणी का सृजन कर दिया। इतना ही नहीं पवन के चलने मे भी आवाज आने लगी और अविरल जल धाराओं में भी कल-कल व छल-छल की ध्वनि सुनाई देने लगी। आज के ही दिन वाणी की देवी सरस्वती का प्रकाट्य दिवस भी है। ऋग्वेद सहित कई स्थानों में माँ के पूजन अर्चन का विधान बताया गया है। बसंत पंचमी के दिन अपने लिए सरस्वती पूजा हेतु स्थान आरक्षित करे |
कैसे करे वसंत पंचमी पर माँ सरस्वती का पूजन
माँ सरस्वती हमारी चेतना शक्ति हैं, इन्हीं की कृपा से बौद्धिक कुशाग्रता प्राप्त होती है, बिना माँ के शक्ति के व्यक्ति में वाणी का संचार नहीं हो सकता है। आदि काल में मूक हुए संसार को बोलने, सोचने, समझने, गाने, संगीत करने की शक्ति माँ के द्वारा ही प्राप्त हुई थी। जिससे इन्हें विद्या व बुद्धि की देवी भी कहा जाता है और आज भी प्रबुद्ध वर्ग बड़ी उत्सुकता के साथ विद्याओं में पारंगत होने के लिए विविध क्षेत्रों के विद्वान माँ की पूजा सुख, शांति, यश, कीर्ति, धन, विद्या लाभ हेतु माँ सरस्वती की पूजा बड़े ही भक्ति भाव से करते हैं। आज वसंत पंचमी के दिन माँ की पूजा षोड़षोपचार विधि द्वारा पीत वस्त्राभूषणों को धारण करके शाकाहारी व सात्त्विक आहार और जल, दूध, दही, शुद्ध देशी घी, पीले वस़्त्राभूषण, मीठा, फल, फूल, धूप, दीप, पंचमेवा के साथ विधि-विधान से माँ की पूजा वीणा पुस्तक आदि के साथ करना चाहिए। यथा शक्ति, वाद्य यंत्रों का दान व अध्ययन की पुस्तकें संबंधित विद्यार्थियों, पुरोहितों, पंड़ितों ब्रह्मणों को भी देना चाहिए। सरस्वती की पूजा ज्ञानार्जन हेतु बौद्धिक परिपक्वता हेतु, भगवान विष्णु की सुखद जीवन हेतु, कामदेव की पूजा रूप लावण्य प्राप्त करने हेतु करना चाहिए। बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर पवित्र ज्योतिष केंद्र भी आपके लिए विधि विधान से सरस्वती पूजन का आयोजन करेगा । यदि आप भी विद्या प्रदायनी माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त करना चाहते है तो अपने लिए 26 जनवरी 2023 को सरस्वती पूजा हेतु अपनी पूजा की बुकिंग कर सकते है | पूजा उपरांत आपको दिया जाएगा शास्त्रोक्त विधि से अभिमंत्रित सिद्ध सरस्वती यन्त्र एवं पूजन विधि |
सरस्वती व्रत विधान एवं फल
माँ की कृपा प्राप्त करने हेतु श्रद्धालुओं को वसंत पंचमी के दिन विधि-विधान से व्रत करना चाहिए। व्रत का विधान यह है कि शौचादि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर धुले हुए स्वच्छ या नूतन वस्त्रों को धारण करना चाहिए। यदि पीले वस्त्र न हो तो ऊपर से पीत रंग के अंगौछे व ओढ़नी को ओढ़ लेना चाहिए तथा पवित्र स्थान मे आसान पर बैठकर तीन बार आचमन करें। अपने उपर जल छिड़के। गणेश जी का ध्यान करें, स्नान कराएं तथा माता सरस्वती का ध्यान कर उन्हें प्रणाम करें। फिर हाथ में जल दक्षिणा आदि लेकर संकल्प लें। कि आज आपकी कृपा पाने के लिए मै अमुक नाम ——-के स्त्री/पुरूष इस व्रत का पालन कर रहें है, माँ हमें शक्ति देना। पूजन सम्पन्न होने के उपरान्त कुछ हल्के प्रसाद को ग्रहण करें। और फिर सायंकाल माँ की आरती पूंजा कर उन्हें नाना विधि फल मिष्ठान आदि अर्पित कर स्वयं फलहार करें। माँ से क्षमा प्रार्थना करते हुए षष्ठी के दिन अपने व्रत को नित्यादि शौच क्रियाओं को सम्पन्न कर के पुनः पूजन अर्चन करें यथा शक्ति लोगों में प्रसाद बांटे व ब्राह्मणों को दान दक्षिणा दें। ऐसा करने से मां की कृपा से व्रती को संबंधित विद्याओं में महारथ हासिल होती है वह यश, कीर्ति का भागी हो माँ के प्रसाद से अपने अभीष्ट फल को प्राप्त कर लेता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से वसंत पंचमी
ज्योतिषीय दृष्टि से वसंत पंचमी का बड़ा ही महत्व है। क्योंकि ज्योतिषीय गणनाओं में जहां ऋतुओं का वर्णन है, वहीं तिथियों का भी वर्णन है। अतः चाहे वसंत ऋतु की बात हो या फिर वसंत पंचमी की बात हो बिना ज्योतिष उसकी कल्पना तक सम्भव नहीं है। ज्योतिष ही उस तिथि व ऋतु को पहचानने में हमारी मद्द करता है। यदि ज्यातिष व ज्योतिषी अपनी गणनाओं को पुष्ट नहीं करेंगे तो, वसंत सहित अनेक तिथियों को जन समूह नहीं पहचान सकेगा और उनसे होने वाले लाभ से वांचित सा रह जाएगा।
वसंत महोत्सव
वसंत महोत्सव न केवल भारत में बल्कि विश्व के कई देशों में मनाया जाता है। यद्यपि इसके समझने का अंदाज कुछ और हो सकता है। किन्तु सम्पूर्ण विश्व कहीं न कहीं इससे अवश्य जुड़ा हुआ है। बात करें कृषि प्रधान देश भारत की तो यहाँ पूर्वी उत्तर-प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार, राजस्थान, दिल्ली सहित अनेक स्थानों पर बड़े हर्षोंल्लास के साथ वसंत महोत्सव को मनाया जाता है। वसंत पंचमी या वसंतोत्सव का आरम्भ प्रतिवर्ष माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी से होता है। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी 26 जनवरी 2023 को माघ मास के शुक्ल पक्ष, पंचमी के दिन बुधवार को मनाया जाएगा। जो ऋतु परिवर्तन के प्रति सजग करते हुए शैक्षिक दक्षताओं को बढ़ाने के संकेत देता है। किसान अपनी फसल को पकने के बहुत करीब पाकर सजग रहता है। बसंत पंचमी के दिन अपने लिए सरस्वती पूजा हेतु स्थान आरक्षित करे |
विद्यार्थियों के लिए सुनहरा अवसर सरस्वती जयंती 26 जनवरी 2023
प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी 26 जनवरी 2023 को वसंत पंचमी या सरस्वती जयंती माघ मास के शुक्ल पक्ष, पंचमी के दिन बुधवार को मनाई जायेगी । शुक्ल पक्ष, पंचमी के दिन को सरस्वती माँ के पूजन का विशेष विधान है। आप भी अपनी एवं अपने परिवार की विद्या, बुद्धि, शिक्षा हेतु पवित्र ज्योतिष केन्द्र से सरस्वती पूजा इस विशेष काल मे (विशेष पूजा अर्चना) करवा सकते है, जिससे कि आपको माँ सरस्वती की असीम कृपा वर्ष पर्यत्न प्राप्त होती रहे | बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर पवित्र ज्योतिष केंद्र आपके लिए विधि विधान से सरस्वती पूजन का आयोजन करेगा । यदि आप भी विद्या प्रदायनी माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त करना चाहते है तो अपने लिए 26 जनवरी 2023 को अपने लिए सरस्वती पूजा पूजा की बुकिंग कर सकते है |
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