हिन्दी

हरितालिका तीज व्रत

Published On : July 12, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

हरितालिका तीज व्रत एवं उसका महत्व

यह व्रत हिन्दू धर्म का परम पुनीत एवं सुख सौभाग्य का दाता व्रत है। जो इस धर्म एवं पुण्य भूमि को और ही सुगम बना रहा है। जिसके प्रभाव से व्रती स्त्री पुरूषों को वांछित सुख एवं सौभाग्य का लाभ प्राप्त होता है। यहाँ पतित पावन गंगा एवं यमुना का पवित्र जल प्रत्येक मनुष्य को तृप्त करते हुये अपने पुण्य प्रभाव से उनके दुःख एवं पीड़ाओं को दूर कर रहा है। तथा तीज एवं त्यौहार में व्रती एवं श्रद्धालु साधकों एवं साधिकाओं को स्नान करने में विशाल पुण्य राशि को भी परोस रहा है। प्रत्येक स्त्री एवं पुरूष अपने सुख सौभाग्य को दुरूस्त करने के लिये जहाँ रात दिन मेहनत करते हैं। वहीं व्रत एवं पूजन के द्वारा अपने सौभाग्य की रक्षा करने में भी पीछे नहीं है। इसी क्रम में हरितालितका तीज का व्रत है। जो बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस व्रत में माँ गौरी एवं भगवान शिव की पूजा का विधान होता हैं। इस व्रत की मुख्य  देवी माँ गौरी एवं भगवान शिव हैं। तथा विधि विधान से पूजा के साथ पूरे शिव परिवार की पूजा भी की जाती है। इस व्रत को विशेष रूप से महिलायें करती हैं। क्योंकि प्रत्येक स्त्री अपने अखण्ड सौभाग्य की कामना से इस व्रत का पालन करती है। जिससे एक तो उन्हें मनचाहा वर प्राप्त हो, दूसरा वह दीर्घजीवी हो। ऐसी कामना करते हुये इस प्रत का पालन कुमारी कन्यायें एवं विवाहित महिलायें भी करती है। जिससे उनका जीवन साथ स्वस्थ रहे तथा वह अपने गृहस्थ जीवन के फर्ज को बाखूब ही निभाये तथा धर्म अर्थ काम मोक्ष के पुरूषार्थों को करने में सफल हो। क्योंकि उत्तम व सुयोग्य जीवन साथी का मिलना बिना पुण्य धर्मो के सम्भव ही नही हैं। हरितालिका तीज प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। जो इस वर्ष 21 अगस्त 2020 को दिन शुक्रवार में मनाई जायेगी। यह व्रत सम्पूर्ण भारत एवं विश्व में जहा भी हिन्दू धर्म एवं व्रत त्यौहारों को मानने वाले है मानाया जाता है। यानी सुख सौभाग्य की आकांक्षी महिलायें इस व्रत को निराहार रहकर करती है। पूरे दिन जल भी नहीं ग्रहण करती है। जिससे यह और भी कठिन हो जाता है। क्योंकि यह वैवाहिक संस्कारों की पवित्रता को पुष्ट एव समृद्ध बनाता है।  भारत में संस्कारों की पवित्रता व मधुरता समूचे विश्व में प्रसद्धि है। हमारे धर्म शास्त्रों में त्रिदेव समूहों के विवाह संस्कार की कथाओं का अद्भुत एवं रोचक दृष्टांत प्राप्त होता है। क्योंकि यह हरितालिका के व्रत की कथा भी भगवान शिव  एवं माँ पार्वती के मंगलमय विवाह संस्कारों को जुड़ी हुई है। अतः इस व्रत के प्रभाव से स्त्री पुरूषों के ज्ञात एवं अज्ञात पाप नष्ट हो जाते हैं।

हरितालिका व्रत एवं पूजा की विधि

इस व्रत को जहाँ कुंवारी कन्यायें करती है। वहीं विवाहिता महिलायें भी अपने जीवन साथी की सुरक्षा एवं अपने सौभाग्य की रक्षा हेतु करती है। यानी विवाहित और कुमारी में कोई भी इस व्रत को कर सकती है। इस व्रत में नियम एवं संयम का बहुत ही महत्व होता है। जो इसे और भी कठिन बनाता है। क्योंकि जिसे व्रती महिलायें पूरे श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करती हैं। क्योंकि यह एक प्रकार से त्याग एवं तपस्या का व्रत है। जिसमें द्वितीया की रात को ही स्त्री तामसिक आहारों को त्याग कर तथा पूरे पवित्रता एवं ब्रह्मचर्य का ध्यान रखते हुये। विशेष रूप से महुआ के पेड़ की दातून व मंजन करती है, जिससे यह निश्चिय हो जाय कि कोई भी भोजन का कण मुंह मे न हो नही तो प्रातःकाल यदि कोई अन्न एवं भोजन का कण मुंह में मिले तो उससे व्रत खण्डित हो जाता है। अतः इन सब बातों को निश्चिय करके ही सोती है। तथा सुहागिंने महिलायें नाना प्रकार के मांगलिक सुहाग से लैस होकर एवं अविवाहिता सामान्य आभूषणों को धारण करके जो कि उनके लिये धर्म के अनुसार मान्य है को पहनती है। इस व्रत में किसी प्रकार को कोई अन्न, फल आदि नहीं लिया जाता है। किन्तु जब मा पार्वती एवं भगवान शिव की पूजा विधि विधान के सम्पन्न कर लेती हैं। तो गौ धूल वेला यानी सांय काल तक एक सांस में जितना पानी पी सकती है। एक बार में ही पी लेती हैं। क्योंकि दुबारा पानी पीना वर्जित होता है। इस व्रत में भगवान के नाम का स्मरण करना चाहिये। तथा बिना कुछ खाये पिये ही रहना चाहिये। तथा पूजन की समस्त सामाग्री लेकर पूजा करें। और माता पार्वती को सौभाग्य एवं मांगलिक वस्तुओं फल मिष्ठान, द्रव्य दक्षिणा आदि अर्पित करें। फिर व्रत की कथा सुनें,  आरती करें और अपराध क्षमा प्रार्थना कर भगवान को प्रणाम करें और बड़ों व ब्राह्मणों को प्रणाम कर भोजन व दक्षिणा दे, जिससे व्रत पूर्णतया सफल रहता है। प्रातः काल दूसरे दिन चौथ तिथि में व्रत का पारण करें।

हरितालिका तीज की कथा

इस व्रत के संदर्भ में कथा प्रचलित है। माँ पार्वती ने जब हिमांचल के घर में पुनः जन्म लिया तो वह भगवान शिव को मन से ही पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। किन्तु भगवान शिव को पाना इतना आसान नही था। इसलिये माँ पार्वती ने उन्हें पाने के लिये कठिन नियम एवं संयम तथा व्रत का पालन किया जो कि अत्यंत कठोर हैं। जिससे त्रैलोकी सहित शिव का भी आसान डोलने लगा। जिससे देवताओं ने उनके इस व्रत की कड़ी परीक्षा ली हर परीक्षा में पूरी तरह सफल रही भगवती मा पार्वती ने अपने वांछित को देवताओं से कहा जिससे उन्हें शिव के साथ विवाह करने का वरदान प्राप्त हुआ। तथा उनके पिता ने बडे़ धूम-धाम से पार्वती का विवाह भगवान शिव के साथ कर दिया। अर्थात् हरितालिका तीज व्रत सभी सौभाग्यवती चाहने वाले स्त्रियों को विधि विधान से करना चाहिये।

यह भी अवश्य पढ़ें: संतान सप्‍तमी व्रत और भौम प्रदोष व्रत

Blog Category

Trending Blog

Recent Blog


TRUSTED SINCE 2000

Trusted Since 2000

MILLIONS OF HAPPY CUSTOMERS

Millions Of Happy Customers

USERS FROM WORLDWIDE

Users From Worldwide

EFFECTIVE SOLUTIONS

Effective Solutions

PRIVACY GURANTEED

Privacy Guaranteed

SAFE SECURE

Safe Secure

© Copyright of PavitraJyotish.com (PHS Pvt. Ltd.) 2025