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गौरी तृतीया व्रत

Published On : June 27, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

गौरी तृतीया व्रत एवं पूजा (Gauri Tritiya Vrat Ewam Puja)

यह व्रत हमारे व्रत एवं त्यौहारों को खास पर्व है। जो अपने आप में परम पुनीत एवं शुभ एवं पुण्यफल प्रदाता भी है। इस व्रत में माँ गौरी की आराधना की जाती है। तृतीया तिथि का व्रत माँ भगवती गौरी को समर्पित है। संसार को मातृत्व भाव से पालने वाली देवी गौरी ही अनेक रूपों में पूजी जाती है। वही दुर्गा एवं काली आदि रूपों में भक्तों के कल्याण हेतु अवतारों को धारण करती हैं। जिससे भक्त जनों के सुख एवं सौभाग्य की रक्षा हो पाती है। इस व्रत में सुहागिनें स्त्रियां मंगल एवं सौभाग्य शुभ सूचक सामग्री वस्त्राभूषणो से मां पार्वती सहित भगवान शिव एवं उनके परिवार की पूजा करती हैं। जिससे मा भगवती की कृपा से उन्हें सहज ही सुख सम्पत्ति होती है। पूजन एवं दान दक्षिणा ब्राह्मणों को देकर अपने व्रत को सफल बनाती है। गौरी तृतीया व्रत के दिन प्रत्येक महिलाये इसका पालन करती हैं। यह व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में किया जाता है। यानी चैत्र शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि में होने वाले व्रत को गौरी तृतीया के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को भी नियम एवं संयम एवं शुद्धता के साथ करने का विधान होता है।

गौरी तृतीया व्रत पूजा विधि

इस व्रत में एक दिन पहले से ही निमय एवं संयम यानी शुद्धता का पालन करते हुये सूर्योदय से पहले उठकर शौच एवं शुद्धि क्रिया करने के पश्चात् सम्पूर्ण पूजन की सामाग्री को एकत्रित करते हुये विधि विधान से शिव एवं गौरी सहित उनके सम्पूर्ण परिवार की पूजा बड़े ही श्रद्धा विश्वास के साथ करें। या फिर किसी कर्मकाण्डी ब्रह्मण द्वारा पूजा कार्य सम्पन्न करवायें और दानादि देकर उन्हें खुश करके प्रणाम करें और अशीर्वाद लें तथा अपने पूजा को माता को भक्ति पूर्वक अर्पित करके क्षमा प्रार्थना करें।

गौरी तृतीया व्रत कथा

प्राचीन समय में जब भगवान शिव माँ भगवती पार्वती के साथ धरती में घूमने के लिये निकले तो रास्ते में उन्हें नारद जी मिले तो उन्होंने देखा कि कुछ महिलायें भक्ति पूर्वक गौरी तृतीया का व्रत कर रही है। तथा सौभाग्य प्राप्त का आशीर्वाद भी दे रही हैं। तथा इस व्रत के प्रभाव से माता प्रसन्न होकर उन्हें सौभाग्य प्राप्ति का वरदान दिया था। इस कारण वह कुछ देर हो गयी जिससे भगवान शिव समझ गये कि यह अतिगोपनीय व्रत है। अतः जो भी स्त्री विषेषतः गुप्त रूप से इस व्रत का अनुष्ठान एवं पूजन करती है वह सौभाग्यवती और दीर्घायु वाला पति प्राप्त करती है। इस व्रत को चिर काल से अखण्ड सौभाग्य के रक्षा में जाना एवं पूजा जाता है। जिससे यह आज भी उतना ही लोकप्रिय बना हुआ है।

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