भौम प्रदोष व्रत
Published On : July 6, 2022 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
भौम प्रदोष व्रत एवं महत्त्व
भौम प्रदोष व्रत भगवान शिव एवं भगवान हनुमान जी की कृपा प्रसाद पाने के लिये किया जाता है। यह व्रत की महत्वपूर्ण श्रृंखला से जुड़ा हुआ अत्यंत पुनीत व्रत है। जिसके पुण्य प्रभाव से व्यक्ति के दुःख दारिद्रों का नाश हो जाता तथा पुण्यों का उदय होता है। वैसे प्रत्येक मास प्रदोष व्रत का क्रम आता रहता है। जिसमें शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की दोनों त्रयोदशियों में इस व्रत का पालन किया जाता है। त्रयोदशी तिथि में सूर्यास्त से दो घटी के समय को प्रदोष के रूप में जाना एवं पूजा जाता है। इस प्रदोष व्रत का संबंध त्रयोदशी तिथि से होने के कारण यह अति महत्वपूर्ण एवं उपयोगी हो जाती है। यह प्रदोष व्रत व्रती स्त्री पुरूष के सभी वांछितों को सिद्ध करने वाला तथा धन एवं धान्य को देने वाला होता है। हिन्दू धर्म एवं वेदों पुराणों में इसके महत्व को सिद्धि करते हुये कहा गया है। कि भौम प्रदोष व्रत व्रती साधकों के समस्त पापों का अंत करने वाला होता है। तथा कर्ज आदि दूर करने की इस व्रत में बड़ी सटीक क्षमता स्थित होती है।
यह व्रत बड़ा ही सरल एवं सीधा है। इसमें भगवान शिव की पूजा अर्चना के बाद एक समय पर भोजन करने का विधान मिलता है। यह व्रत त्रयोदशी व्यापिनी तिथि में किया जाता है। मंगलवार के दिन जो त्रयोदशी तिथि होती है। उसे भौम प्रदोष के नाम से जाना जाता है। चाहे माह कोई भी किन्तु वार के अनुसार भौम आदि प्रदोष व्रतों का व्रत किया जाता है। अलग वारों में इस तिथि के अनुसार उसी प्रकार उसका नाम वार के अनुसार होता है। जैसे मंगलवार में होने वाले व्रत को भौम प्रदोष कहते हैं आदि इसी प्रकार श्रावण व अन्य महीनों में पड़ने वाले वार के अनुसार प्रदोष व्रत का अपना महत्व होता है।
भौम प्रदोष व्रत एवं पूजा विधि
इस व्रत को पूरी तरह नियम एवं विधि विधान से करने का महत्व होता है। अतः व्रत से पूर्व संध्या में पवित्रता का ध्यान देते हुये। तामसिक आहारों यानी मांस, मछली, अंडा, लहसुन, प्याज, शराब आदि का त्याग कर दें। तथा व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठकर अपनी समस्त शौच एवं स्नान की पवित्र क्रियाओं को करते हुये पूजन की सम्पूर्ण सामाग्री को एकत्रित करके रख लें। और शिव एवं श्री हनुमान मंदिर में जाकर विविधि प्रकार से भगवान श्रीगणेश, गौरी, शिव, कार्तिकेय, नन्दी, वीरभद्र, कुबेर और श्रीहनुमान जी की पूजा षोड़शोपचार विधि से करनी चाहिये। यदि देशकाल परिस्थिति वश देव मंदिर नहीं उपलब्ध हो तो ऐसे मे अपने घर में उनकी प्रतिमा या फिर पार्थिव शिव लिंग बनाकर उसी में समस्त विहित देवताओं की पूजा अर्चना करे। और अपने पूजन को भगवान शिव को अर्पित कर दें। तथा हनुमान एवं शिव जी से प्रार्थना करें कि हे प्रभु! जगदीश आप मेरे ऋण रोग को दूर करो तथा शत्रुगणों से जो पीड़ा उत्पन्न हो रही है। उसे भी दूर करों यदि कोई जमीन का विवाद हो और आप उसे नहीं प्राप्त कर पा रहे है। तो हनुमान जी की विशेष पूजा अर्चना इसी तिथि में करवायें। इस व्रत का पालन करने से तीर्थ एवं गोदान के समान फल प्राप्त होता है। भौम प्रदोष में हलुवा पूरी एवं चने तथा हनुमान जी को देशी घी लड्ड़ों को अर्पित करें।
भौम प्रदोष व्रत कथा
इस व्रत के संबंध में कई कथा प्रसंग धर्म शास्त्रों में प्राप्त होते है। किन्तु भौम प्रदोष के संबंध में हनुमान जी की एक अद्भुत कथा है। प्राचीन समय में एक वृद्ध माता भक्ति पूर्वक भौम प्रदोष व्रत का पालन कर रही थी। जिसकी भक्ति से हनुमान जी प्रसन्न थे। और उसके घर पहुचंकर एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धरकर उससे भिक्षा की याचना करें। जिससे बुढ़िया आवाज सुनकर बाहर आई और बोली महाराज मै आपकी क्या सेवा करूँ इतने में ब्राह्मण वेशधारी हनुमान जी कहने लगे कि मुझे भोजन करने की इच्छा है किन्तु पहले जहाँ मुझे बैठना है वहाँ जमीन का भाग खोदकर उसे गोबर से लीप दें। तब वह वृद्ध माता बड़ी ही विस्मित हुई और बोली में आज भौम व्रत में हूँ अतः भूमि खोदना एवं लीपना नहीं कर सकती हूँ, इसके अतिरिक्त कोई सेवा मुझे कहें तो मै जरूरी करूंगी। वृद्ध माता की इस बात से हनुमान जी प्रसन्न हुये तथा उसे वांछित वर देने के बाद वहाँ से अन्तरध्यान हो गये। तब से भौम प्रदोष व्रत को अत्यंत भक्ति भाव के साथ किया जाता है।
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