हिन्दी

आषाढ़ी पूर्णिमा व्रत

Published On : May 7, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

आषाढ़ी पूर्णिमा व्रत का महत्त्व

सत्य सनातन धर्म में व्रतों का अपना महत्व है। किन्तु पूर्णिमा का व्रत अपने आप में बहुत ही खास एवं पुण्यफल प्रदान करने वाला होता है। वर्ष भर में बारह पूर्णिमाओं के व्रत होते है। अधिक मास होने से इनकी संख्या बढ़ जाती है। यहा आषाढ़ी पूर्णिमा की बात करे तो यह कई मायनों में बहुत ही महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। इसका जहा धार्मिक दृष्टि से महत्व वही आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्व है। पूर्णिमा तिथि के स्वामी देवता होते है। किन्तु ज्योतिष के अनुसार पूर्णिमा तिथि के स्वामी चन्द्रमा को माना गया है। और चन्द्रमा को हमारे शरीर में मन का कारक एवं माता का कारक भी कहा जाता है। यह शरीर में रक्त एवं जल का भी संलाचक माना जाता है। अतः शारीरिक एवं मानसिक पवित्रता को हासिल करने के लिये इस आषाढ़ी पूर्णिमा में व्रत रखने और पवित्रता से भगवान की पूजा अर्चना करने से नाना प्रकार के पापों का अंत हो जाता है। तथा शरीर में हो रही रक्त की कमी एवं मनोविकारों से भी छुटकारा प्राप्त होता है। जिससे व्रती साधक स्वस्थ्य जीवन की राह पर दौड़ने लगता है। अतः इस आषाढ़ी पूर्णिमा के अवसर पर साधकों को भगवान श्री गणेश सहित श्री हरि विष्णू एवं चन्द्रमा की पूजा अर्चना पूरे विधि विधान से करने का महत्व होता है। इस आषाढ़ी पूर्णिमा के अवसर पर मन्दिरों एवं धर्म स्थलों तथा प्रसिद्ध तीर्थो मे भक्तों की भारी भीड़ उपस्थिति रहती है। क्योंकि इस अवसर पर जहा भगवान सत्यनारायण यानी भगवान विष्णू की पूजा अर्चना की जाती है। वहीं इस अषाढ़ी पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि गुरू ही इस संसार के अज्ञानता से व्यक्ति को दूर करने की क्षमता रखते है। किन्तु आध्यात्मिक गुरू की तो बात ही क्या यदि सच्चा गुरू हो तो उसकी कृपा से व्यक्ति भव बंधनों से छूटकर परम पद एवं कैवल्य पद को प्राप्त कर लेता है। इसी महत्व एवं सारभौमिकता के कारण आषाढ़ी पूर्णिमा का व्रत बड़ा ही महत्वपूर्ण एवं वांछित फलों को देने वाला होता है। इस व्रत के दिन चन्द्रमा की पूर्णता चन्द्र बल को बढ़ाने वाला होता जिससे वांछित कामों की सि़द्ध व्रती साधक को उपलब्ध होती है। इसे व्यास पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन भगवान वेद व्यास का जन्म हुआ था। आषाढ़ी पूर्णिमा एक साथ व्यक्ति के लिये अनेकों पुण्यफलों को समाहित किये हुये है। जिससे व्यक्ति को रोग एवं पीड़ाओं से मुक्ति प्राप्त होती है। आषाढ़ी पूर्णिमा में गुरू पूर्णिमा होने से इसके महत्व यानी सद्गुरू के महत्व के विषय में कहा गया है कि – गुरू बिन भव निधि तरी न कोई। जो बिरंच शंकर सम होई। अर्थात् इस संसार सागर में ज्ञान, ध्यान, पराक्रम और सम्पन्नता तभी फलीभूत होगी जब उसे आषाढ़ी पूर्णिमा के अवसर पर व्रत एवं भगवान के पूजन से तथा सद्गुरू की कृपा से सदमार्ग प्राप्त होगा। नहीं तो ज्ञान एवं धन होने पर वह चाहे भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान हो पर उसे इस संसार के बंधनों से छुटकारा नही मिल सकता है। यानी आषाढ़ी पूर्णिमा ही व्यक्ति के लिये पुष्यप्रद मार्ग को बनाती है।

आषाढ़ी पूर्णिमा का व्रत एवं उसकी विधि

आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन व्यक्ति को व्रत की संध्या में ही यानी चौदश तिथि में ही एक दिन पहले सम्पूर्ण भगवान सत्यनारायण की पूजन की सामाग्री एवं यदि आपने गुरू बना रखा हो तो गुरू पूजन की सामाग्री को संग्रहित करके रख लें। और आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौचादिक एवं स्नानादि क्रियाओं को करते हुये शुद्ध धुले हुये वस्त्र धारण करें। ध्यान रहे माला एवं पुष्प आदि उसी दिन ताजे लें। तथा षोड़शोपचार विधि से भगवान श्री हरि विष्णू की पूजा अर्चना करें। या फिर किसी ब्राह्मण जो कि कर्म काण्ड में निपुण हो से करायें। और अपने पूजन को क्षमा प्रार्थना करते हुये भगवान को अर्पित कर दें।

आषाढ़ी पूर्णिमा व्रत एवं कथा

आषाढ़ी पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण का व्रत एवं पूजन विधि पूर्वक करें तथा भगवान सत्यनारायण की कथा सुने। और भगवान वेद व्यास की भी कथा सुनें। विस्तार भय की वजह से यहा कथानक नहीं दिया जा रहा है। अतः कथा हेतु कथा संबंधित पुस्तक का अवलोकन करें। तथा अपने व्रत एवं पूजन और कथा श्रवण कर्म को भगवान श्री हरि विष्णू को अर्पित कर दें।

पढ़ना न भूलें:
शरद पूर्णिमा और माघी पूर्णिमा

Blog Category

Trending Blog

Recent Blog


TRUSTED SINCE 2000

Trusted Since 2000

MILLIONS OF HAPPY CUSTOMERS

Millions Of Happy Customers

USERS FROM WORLDWIDE

Users From Worldwide

EFFECTIVE SOLUTIONS

Effective Solutions

PRIVACY GURANTEED

Privacy Guaranteed

SAFE SECURE

Safe Secure

© Copyright of PavitraJyotish.com (PHS Pvt. Ltd.) 2025