अक्षय तृतीया पूजा व्रत एवं उसका महत्व
Published On : April 4, 2024 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
अक्षय तृतीया व्रत एवं उसका महत्व
इस धर्म धुरी धरा पर ऋतुओं के क्रम के अनुसार अनेक ऐसे व्रतों का आगमन होता है। जो कि व्यक्ति के जीवन से पापों एवं रोगों को दूर करने के लिये औषधी की तरह होते है। इनके पालन एवं नियम करने से व्यक्ति को रोगों एवं पापों के समूहों से छुटकारा प्राप्त होता है। तथा जीवन में आ रही कठिनाइओं को हल करने मे सरलता रहती है। अक्षय तृतीया का व्रत इसी क्रम में गर्मी के मौसम में आता है। अक्षय का शाब्दिक अर्थ कभी नही समाप्त होने वाला होता है अतः इस व्रत के समय जो भी इस दिन दान एवं पुण्य कर्मो को किया जाता है। उसका पुण्य अक्षय बना हुआ रहता है। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया व्रत मनाया जाता है। इस तिथि में जहा श्री हरि विष्णू के अवतारों की गाथायें भरी पड़ी हैं, वहीं इस तिथि को युगादि तिथि भी कहा जाता है। यानी इस तिथि का अपने आप में बड़ा ही महत्व है। क्योंकि धरती पर बढ़ते हुये पापों को मिटाने के लिये भगवान ने कई रूपों को धारण किया था। जिससे धरती में धर्म की स्थापना हो पायी थी। और सभी सज्जनों एवं साधुओं ने राहत की सांस ली थी। क्योंकि इस तिथि में भगवान विष्णू ने नरनारायण, परशुराम, ह्यग्रीव जैसे तीन पवित्र अवतारों को धारण किया था। इस तिथि को स्वयं सिद्ध मुहूर्त के नाम से भी जाना जाता है। इसी अक्षय तृतीया में सतयुग की शुरूआत होने की बात कही जाती है। तथा कल्पभेद से त्रेतायुग की उत्पत्ति यानी शुरूआत की बात कही जाती है। यानी नये युग की शुरूआत यानी बिल्कुल नये युग की शुरूआत होने से इसका अधिक महत्व होता है। साथ ही में भगवान विष्णू के अवतारों के कारण इसका और भी महत्व बढ़ जाता है।
अक्षय तृतीया व्रत एवं पूजा विधि
स तिथि मे व्रत रखने के लिये एक दिन पहले से ही भगवान का स्मरण करते हुये उनसे प्रार्थना करे कि हे प्रभु! मै आपके व्रत को करने जा रहा ,रही हूँ। मुझे इतनी शक्ति एवं क्षमता देना जिससे मै भक्ति पूर्वक आपके व्रत का पालन कर सकू। और भगवान के पूजन की सम्पूर्ण सामाग्री एकत्रित करके रख लें और उनकी षोड़शोपचार विधि से पूजा अर्चना करें। ध्यान रहे इस पूजा में सात्विकता का अधिक महत्व होता है। अतः स्नानादि शुद्धि क्रियाओं को पूर्णतः करने के बाद भगवान की पूजा पूरी भक्ति भाव के साथ करें। और अपने पूजन को भगवान को अर्पित कर दें। क्षमा प्रार्थना आदि कर्म को पूरा करें।
अक्षय तृतीया व्रत एवं अन्य तथ्य
इस तिथि में तेज धूप के कारण गर्मी का स्तर अधिक बढ़ जाने के कारण जीव जगत व्यास से अकुलाने लगता है। अतः लोक कल्याण एवं परोपकार की भावना से इस तिथि में ठण्ढ़े जल, चावल, चने, कलश, दूध, दही, मिष्ठान आदि भोग धर्म स्थलों में देना चाहिये। तथा राह में एवं जंगल आदि मे जीवों हेतु पानी की व्यवस्था करनी चाहिये। इस तिथि में गंगादि तीर्थ में स्नान दान का भी बड़ा महत्व होता है। अतः सौभाग्य एवं शान्ति हेतु इस तिथि में स्नान दान एवं परोपकार के कामों को करना चाहिये। अनेक धर्म स्थलों में इस तिथि में जल एवं अन्न दान एवं भण्ड़ारों का आयोजन किया जाता है। ब्रह्मणों को इस अवसर पर विविध प्रकार के दान एवं वस्त्राभूषण देने का भी विधान शास्त्रों में प्राप्त होता है। जिसके करने से पुण्य प्रभाव उत्पन्न होता है। इस अक्षय तृतीया के अवसर पर भगवान विष्णू के मंन्दिरों एवं परशुराम जयंती के अवसर पर तथा ह्यग्रीव जयंती के अवसर पर नरनारायण के अवतरण के अवसर पर भगवान विष्णू या फिर उनके विभिन्न अवतारों की पूजा अर्चना करनी चाहिये। इस अवसर पर भगवान उमामहेश्वर की पूजा अर्चना करने का विधान प्राप्त होता है। क्योंकि तृतीया तिथि भगवती पार्वती है। इस अवसर पर पितृ तर्पण एवं श्राद्ध एवं जप हवन पूजन करना भी शुभप्रद होता है। अतः अक्षय तृतीया मानव जीवन के लिये अत्यंत शुभप्रद तिथि होती है। इस अवसर का लाभ लेते हुये भगवान की पूजा अर्चना बड़े ही विधान के साथ किया जाता है। इस इस अति पुनीत व्रत को करते हुये व्यक्ति को अपने जीवन को और पुण्यकारी बनाने के लिये सतत् प्रयास करना चाहिये। क्योंकि यह मनुष्य जीवन बड़ा ही दुर्लभ होता है। यह व्रत अमिट पुण्यफल को देने वाला होता है।
यह भी पढ़ें:
सती अनुसूया जयन्ती और श्री वल्लभाचार्य जयंती