अक्षय नवमी या आंवला नवमी
Published On : October 6, 2022 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
अक्षय नवमी एवं आंवला नवमी का महत्व
यह व्रत हिन्दू धर्म का अति महत्वपूर्ण एवं उपयोगी व्रत है। जो कार्तिक माह के अति पवित्र महीने में आता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को ही अक्षय नवमी और कहीं-कहीं आंवले के महत्व के कारण इसे आंवला नवमी एवं धात्री तथा कूष्माण्ड नवमी भी कहा जाता है। मतान्तर के कारण कुछ लोग यह कहते हैं। इसी दिन आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी। यह हमारे सबसे प्रमुख एवं विशिष्ट पर्व दीपावली से नवीं तिथि में होती है। कई बार तिथि की वृद्धि एवं क्षय के कारण यह आठवें या फिर दसवे दिन होती है। इस तिथि में जो भी भगवान विष्णू के निमित्त दान पुण्य पूजा-पाठ एवं ब्राह्मणों को भोजन करया जाता है। उसका अक्षय फल प्राप्त होता है। अक्षय का अर्थ कभी नहीं मिटने वाला पुण्य होता है। यह नवमी का व्रत अत्यंत शुभफल देने वाला होता है। इस नवमी के बारे में मान्यता है। कि जिस प्रकार वैशाख माह की अक्षय तृतीया का शुभ पुण्यफल प्राप्त होता है। उसी प्रकार इसका भी शुभ एवं पुण्यफल इस नवमी में व्रत करने वाले या फिर आंवला की पूजा करने वाले को होता है। यानी इसका जहाँ महत्व पेड़ पौधों को बचाने तथा वातावरण को सुरक्षित रखने से हैं। वहीं धार्मिक महत्व को लेकर कई स्थानों में पौराणिक ग्रंथों में इसकी व्याख्या प्राप्त होती है। कार्तिक महीने में विशेष रूप से भगवान विष्णू का आंवले के वृक्ष में निवास होता है। जिससे गंगादि तीर्थों के स्थान एवं दान का फल इस वृक्ष की पूजा एवं परिक्रमा से प्राप्त हो जाता है। जिससे आंवले के वृक्ष के साथ ही भगवान विष्णू की भी यहाँ पूजा एवं परिक्रमा की जाती है। इस नवमी में लोग आंवले के वृक्ष की पूजा करते हैं। तथा अपने घरों से जाकर वही या फिर घर से बने हुये शुद्ध देशी घी की पूड़ी एवं अन्य भगवान को प्रिय दूध, दही, फल आदि ले जाकर वहाँ विधि-विधान से आंवले के वृक्ष एवं भगवान विष्णू की पूजा करते हैं। जिससे लोगों की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
अक्षय नवमी पूजा विधि
इस तिथि में एक दिन पूर्व ही पूजन में प्रयोग होने वाली वस्तुओं को जोड़कर रख लें, तथा व्रत वाले दिन यानी नवमी तिथि में सूर्योदय से पूर्व उठकर भगवान का स्मरण करते हुये अपने हथेलियों का दर्शन करें। तथा धरती माता को प्रणाम करें। फिर शौचादिक स्नान एवं शुद्धि क्रियाओं को करते हुये स्वच्छ या फिर नये वस्त्रों को धारण करें। तथा अपने नित्य संध्या वंदन को भी जल्द ही सम्पन्न कर लें। तथा जहाँ आंवला का वृक्ष हो वहाँ जाकर पूजन की सभी सामाग्री को रख लें। और आसन आदि को पूर्वा या उत्तराभिमुख होकर रख लें। तथा आत्म शुद्धि एवं आचमन करते हुये भगवान का स्मरण करें और अपने आंवला एवं श्री हरि विष्णू के पूजन का भी संकल्प लें। तथा आंवले के वृक्ष को जल एवं दूध से स्नान करायें और कच्चे सूत को भक्ति पूर्वक उसमें लपेटे आंवले के तने में तथा फिर सुगन्धित चंदन एवं सिंदूर का टीका आंवले में लगाये और धूप दीप आदि पूजन के क्रम को करें। और जो भी पकवान आपने शुद्ध रूप से तैयार किये हो उन्हें भगवान एवं आंवले के वृक्ष को अर्पित करें। तथा विधि पूर्वक भगवान विष्णू की पूजा प्रतिष्ठा करें। तथा आंवले वृक्ष की पूजा एवं परिक्रमा करने के बाद अपनी शक्ति के अनुसार एक या फिर अधिक संख्या में ब्राह्मणों को निमंत्रित करें। और उन्हें पूरी श्रद्धा विश्वास के साथ खिलायें और जो भी बन पड़े दक्षिणा दें। तथा प्रणाम करें। और खुद भी परिवार के साथ आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करें। तथा भगवान विष्णू के नाम एवं गुणों का गान करते रहे जिससे आपका यह आंवला पूजन बड़ा पुण्यफल देने वाला होगा। इस व्रत में आंवले के फलों का दान तथा कोंहडे का दान तथा स्वर्ण, चांदी और रूपयों का दान अति कल्याणकारी होता है। क्योंकि इस माह में आंवलें को गंगा एवं तीर्थो की तरह पवित्र माना जाता है। अतः पितरों के मोक्ष हेतु भी आंवले के वृक्ष के नीचे वस्त्राभूषण एवं दान दक्षिण ब्राह्मणों को देना चाहिये। जिससे पितरों का एवं दान दाता का कल्याण होता है। तथा विष्णू भगवान को आंवला अर्पित करना चाहिये। क्योंकि कार्तिक माह को पुरूषोत्तम माह कहा जाता है। इस महीनें में भगवान आंवले के वृक्ष में ही निवास करते हैं।
अक्षय नवमी कथा
प्राचीन काल की बात है। एक बनिया की धर्म पत्नी को आसाध्य रोग हो गया। जिससे उसके पति ने उसे गंगा की शरण में जाकर भगवान का पूजन उवं अर्चन करने की सलाह दी। जिसके पुण्य प्रभाव से तुम्हें इस रोग से मुक्ति होगी। किन्तु तभी गंगा ने किसी रूप में उससे कहा कि तुम जाकर कार्तिक माह में आंवला की नवमी तिथि में आंवला की पूजा करों। जिससे वह इस महीनें की शुक्ल नवमी में आंवला की पूजा किया जिसके पुण्य प्रभाव से उसे संतान लाभ प्राप्त हुआ तथा उसे रोग से मुक्ति मिली। जिससे लोगों में यह खबर बड़ी तेजी के साथ फैल गयी और सम्पूर्ण हिन्दू जन मानस इस पुण्य के प्रताप को प्राप्त करने के लिये प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवला की पूजा करने लगा।
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