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अक्षय तृतीया – महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व 10 मई 2024

Published On : April 23, 2017  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

अक्षय तृतीया है अमिट पुण्यदायक

बढ़ती हुई गर्मी और विविध प्रकार के फल-फूलों से नित नव श्रृंगार करती वसुन्धरा की लहलहाती फसले जब पकने लगती है, तो भारत वर्ष में न केवल कृषक बल्कि आम जन चाहे वह पेशेवार हो या नौकरी करने वाले हो, धरा की इस खूबसूरती को देखकर गद्गद हो जाते है। देश ही नहीं बल्कि विश्व समुदाय भी इसके आकर्षण से खिचा चला आता है। जब व्यक्ति अपने जीवन में शांति व आध्यात्म की तलाश करता है। तो उसे एक प्यासे की तरह हिन्दू धर्म में आकर नाना विधि आत्मसंतोष व आत्मबोध प्राप्त होता है। किन्तु समय के साथ जैसे ही धरा में दुराचार व अधर्म का बोल-बाला होता है। तथा धर्मप्राण भारत में भी यह भावना तेजी से बलवती होती है कि ईश्वर नहीं है। सर्वत्र अन्याय व अधर्म बढ़ने लगता है तब धरा में समय-समय पर श्री हरि नाना रूप में अवतार लेते है। इसी क्रम में नरनारायण, ह्यग्रीव, परशुराम आदि के पवित्र व शुभ अवतार अक्षय तृतीया के दिन भारतवर्ष मे हुए। क्योंकि ईश्वर सर्वत्र है, शाश्वत है। और इस सृष्टि का उत्पादक व संहारक हैं। उनकी लीलाएं ऐसी है। कि खेल-खेल मे संसार को बसा व उजाड़ देते हैं। हिन्दू ग्रंथ में अनेकों ऐसे कथानक हैं जो यह बताते है कि मानव कल्याण के कारण ही भगवान अवतार धारण करते हैं। देव इच्छा से ही अक्ष्य तृतीया का व्रत प्रसिद्ध हुआ है। इस तिथि की प्रसिद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। कि जहाँ धर्म शास्त्र व ज्योतिष के ग्रन्थों मे इसे अक्षय तृतीय के नाम से परिभाषित किया गया है। वहीं ग्रमीण क्षेत्रों में इसे आखा तीज व अक्तिजिया के नाम से जाना जाता है। इसकी शुभता इतनी है कि धर्म व दान के कामों को अक्षय कर देती है।

अक्षय तृतीया का हिन्दू धर्म में महत्व

अक्षय तृतीय अपने आप में स्वतः इस संसार में प्रसिद्ध है। जिससे हिन्दू धर्म में इसका और महत्व बढ़ जाता है। अक्षय तृतीया तिथि में सतयुग किन्तु कल्प के अन्तर से त्रेतायुग इसी तिथि को प्रारम्भ हुआ। इसलिए यह युगादि तिथि से भी विख्यात है। धर्म व दान के लिए इसका अत्यंत महत्व है। क्योंकि इस दिन का दिया गया अन्न, धन, जल, फल, वस्त्राभूषण, द्रव्य घरेलू उपयोग के उपकरण आदि दान करने से उसका पुण्य प्रताप कभी नष्ट नहीं होता है। अतः कल्याण चाहने वाले को इस दिन श्रद्धा विश्वास के साथ नाना विधि वस्तुओं का दान जैसे ताप से राहत देने वाले पंखे आदि फल, वस्त्र, बर्तन, घरेलू उपयोग की वस्तुएं आदि। संकल्प सहित ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। देवताओं के भोग प्रसाद, घी, दूध सहित देवालय व सामूहिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का दान देना चाहिए। धर्म लाभ, कल्याण तथा सुखद दाम्पत्य जीवन हेतु गौरी-शंकर और नरनारायण भगवान की पूजा करना वांछित फल प्रदाता है। उपवास तथा गंगादि तीर्थो में स्नान का जहाँ बहुत महत्व है। वहीं वैदिक रीति से हवन ब्राह्मणों द्धारा यज्ञ, तप, जप पितृ तर्पण जैसे कर्म श्रद्वालु भक्तों के अक्षय फल के खाते खोलते हैं। इस तिथि में सोने के सिक्के तथा आभूषणों की खरीद को अत्यंत शुभप्रद माना जाता है। जिससे आभूषण की दुकानें और उससे संबंधित बाजार में ग्राहकों की चहल-पहल बढ़ जाती है। इस तिथि को स्वर्णकार आदि लोग कारोबार के लिए लाभप्रद मानते हैं। कई बडे़ कारोबारियों का इस तिथि में विक्रय लक्ष्य भी तय होता है।

यह तिथि हिन्दू धर्म के लिए इस कारण भी और महत्वपूर्ण हो जाती है कि जो सब कारणों का कारण परमात्मा है वह इस दिन प्रकट होता है। मोक्ष जो कि पुरूषार्थ का अति महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, इसे प्राप्त करने के लिए हिन्दू धर्म के लोग देश-देशान्तर से श्री बद्रीनाथ के दर्शन के लिए जाते है। जो अति प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हैं। इसी तिथि से श्री हरि श्री बद्रीनारायण के कपाट खुलने से भाग्शाली भक्तों को दर्शन के अवसर सुलभ होते पाते हैं। नाना विधि पूजा अर्चना करते हुए श्रद्धा के साथ मिश्री, भीगे, चने आदि विहित वस्तुओं का भोग उन्हें समर्पित करते हैं। अतः अक्षय तृतीय का महत्व हिन्दू धर्म में अत्याधिक है। क्योंकि इस तिथि में इतनी क्षमता है। कि किए हुए धर्म, दान के फल को अक्षय बना देती हैं। यह तिथि वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है। इस दिन किए गए पुण्यों का अक्षम फल प्राप्त होता है। इस दिन सत्तू खाने का विधान होता है। चने से बने पकवान तथा सत्तू आदि का दान तथा ब्राह्मणों को भोजन कराने से फल प्राप्त होता है।

अक्षय तृतीया पूजन विधि

अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्री हरि नारायण माँ लक्ष्मी, शिव पार्वती सहित इन प्रकट हुए अवतारों की पूजा अर्चना विविध प्रकार से करना चाहिए। भगवान की पूजा पंचोपचार, षोड़शोपचार, से करने का विधान है। जो ऐसी पूजा नहीं कर सकते हैं वह भगवान को पत्र-पुष्प अर्पित करके उनसे प्रार्थना करे। कि प्रभु हमारा कल्याण करें। हमें आर्थिक शक्ति दे। जिससे पूजा, धर्म के कामों को करने की क्षमता बनें। विष्णु भगवान को कमल तथा शिव परिवार को सफेद सुगंधित पुष्पों को अर्पित करना चाहिए। पूजन सामाग्री शुद्ध हो और पुष्पों में खूशबू हो तथा ताजे हो। माली के यहाँ के पुष्प में बाँसी का दोष नहीं होता है।

अक्षय तृतीया सर्वश्रेष्ठ मुहुर्त क्यो?

इसे सर्व श्रेष्ठ मुहुर्त पूजा तथा दान देव कर्म के लिए माना गया है। किए गए पुण्य को और बढ़ाने वाला होता है। जिससे इसे शुभ कहा जाता है। जिसमें किए गए दान पुष्य का अक्षय फल तो प्राप्त होता ही है। किन्तु दान में दी गई वस्तु स्वर्ग या पुनः जन्म में प्राप्त होती है ऐसा कहा जाता है। ध्यान रहे कि शादी, विवाह, गृह प्रवेश में विहित कई पक्षों का विचार करके ही उन्हें सम्पन्न करे। किन्तु इस तिथि में नहीं।

प्रचलित कथाएं

अक्षय तृतीया के बारे में कई कथाएं व्रत व पौराणिक व धार्मिक ग्रंथों में उपलब्ध है। जिसमें धर्मदास नाम के वैश्य की कथा है। जो कि सद्गुणी, ईश्वर भक्त, दानी तथा धार्मिक था। देवता, ब्राह्मण के प्रति उसकी अटूट श्रद्धा थी। किन्तु बढ़ती हुई उम्र के कारण उसे कई तरह की शारीरिक पीड़ाएं व बीमारियों से परेशानी होने के बाद भी उसके श्रद्धा व विश्वास में कमी नहीं हुई और वह अक्षय तृतीया के व्रत, दान में कठिन दिनों में तत्पर रहा। इस तरह से उसके जीवन में कठिनता की स्थिति बनी हुई थी किन्तु वह अक्षय तृतीया के व्रत में उसी श्रद्धा विश्वास से तत्पर रहते हुए तीर्थ स्थान व ब्राह्मणों को नाना प्रकार के दिव्य वस्त्र, सोने का दान दिया। परिणामतः इस व्रत के दान के प्रभाव से दूसरे जन्म में कुशावती का अत्यंत प्रतापी राजा बना। पौराणिक कथानक के अनुसार अक्षय तृतीया के दान ने उसे इस प्रकार महान बना दिया कि ब्रह्म, विष्णु, महेश तक उसके द्वार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके विशाल यज्ञ में भाग लेते थे। कहते कि उसे न धन का और नहीं राजा होने का घमंण्ड कभी नहीं हुआ। इसी राजा को कुछ लोग चंद्रगुप्त के रूप मे अगले जन्म उत्पन्न होने की बात को स्वीकारते हैं। जैन धर्म के लिए भी अक्षय तृतीया का बहुत ही महत्व है। क्योंकि इसी तिथि में श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की तपस्या करने के पश्चात् गन्ने के रस जिसे इक्षु रस भी कहा जाता है। ऋषभ देव ने मानव कल्याण के लिए सत्य अहिंसा का प्रचार किया था। अक्षय तृतीय के अवसर पर देश के विभिन्न भागों में जैसे- उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि सहित अनेक स्थानों में इसे दिन सगुन बाँटने का रिवाज है। कई स्थानों में प्रथाओं के अनुसार प्रचलित गीतों को गाया जाता है। खेती के कामों में लगे किसानों के लिए यह दिन शुभ सूचक होता है। कई किसान व जातियों के लोग आगामी वर्ष फसलों की स्थिति सहित अनेक शुभाशुभ सूचकों को पूर्वानुमान अपने प्रचलित नियमों के अनुसार लगाते हैं। कि इस वर्ष का समय किस प्रकार होगा। वर्षा की स्थिति क्या होगी। तथा उपज किस प्रकार की होगी आदि तथ्यों को खोजते हैं।

अक्षय तृतीया का दिन सौभाग्य और सफलता लाने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है ।  अक्षय तृतीया के शुभ अवसर अपने लिए पूजा बुक कराये एवं निश्चित ही सौभाग्य और सफलता पाए 

इस वर्ष अक्षय तृतीया 10 मई 2024 दिन शुक्रवार वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि  को मनाई जाएगी 

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