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मां चंद्रघंटा के बारे मे

Published On : March 31, 2025  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

मां चंद्रघंटा की पूजा: नवरात्रि के तीसरे दिन का महत्व

नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप, मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। यह देवी सौम्यता और शौर्य की अद्भुत प्रतीक हैं। एक ओर जहां इनका स्वरूप अत्यंत शांत और सौम्य है, वहीं दूसरी ओर वे राक्षसों का विनाश करने वाली योद्धा देवी भी हैं। मां चंद्रघंटा की आराधना साधक को भय, संकट और दोषों से मुक्ति दिलाती है। आइए जानें इस देवी के अद्भुत स्वरूप और कथा के बारे में…

मां चंद्रघंटा का परिचय

मां चंद्रघंटा, देवी दुर्गा का तीसरा रूप हैं। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, जिससे इनका नाम ‘चंद्रघंटा’ पड़ा। इनका यह स्वरूप अति आकर्षक, सौम्य किंतु युद्ध के समय विकराल होता है।

मां चंद्रघंटा दस भुजाओं वाली देवी हैं। उनके हाथों में कमल, धनुष, बाण, त्रिशूल, तलवार, गदा, कमंडल, जपमाला, और आशीर्वाद की मुद्रा होती है। यह देवी सिंह पर सवार रहती हैं और उनके घंटे की ध्वनि से असुरों का संहार होता है।

पौराणिक कथा: विवाह से पहले युद्ध की तैयारी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब मां पार्वती और भगवान शंकर के विवाह की तैयारी हो रही थी, तब भगवान शिव अनेक भूत-प्रेत, योगियों और साधुओं के साथ विवाह मंडप में पहुंचे। यह दृश्य देखकर पार्वती की माता बहुत भयभीत हो गईं।

तब पार्वती ने अपने तेज से स्वयं को एक अत्यंत दिव्य रूप में परिवर्तित कर लिया — यही रूप चंद्रघंटा कहलाया। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का चंद्र और सिंह पर उनकी सवारी ने समस्त देवी-देवताओं को चमत्कृत कर दिया।

विवाह के उपरांत भी, जब-जब कोई दैत्य या राक्षस त्रिलोक में आतंक फैलाता, तब मां चंद्रघंटा अपने इस रूप में रक्षक बनकर प्रकट होतीं।

मां चंद्रघंटा का स्वरूप

1. दस भुजाएं और सभी में अस्त्र-शस्त्र।
2. मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र।
3. सिंह पर सवार होकर युद्ध की मुद्रा में।
4. स्वरूप में सौम्यता और भीषणता दोनों का अद्भुत समन्वय।
5. घंटे की ध्वनि से राक्षस भयभीत होकर भाग खड़े होते हैं।

मां चंद्रघंटा की उपासना का महत्व

मां चंद्रघंटा की पूजा से साधक को अदम्य साहस, आत्मविश्वास और बल की प्राप्ति होती है। यह देवी साधक के हृदय से डर और दुर्बलता को दूर करती हैं। भूत-प्रेत बाधा, नकारात्मक ऊर्जा और तांत्रिक प्रभाव इनकी उपासना से समाप्त हो जाते हैं।
जो व्यक्ति जीवन में आत्मरक्षा, साहस, शौर्य और रक्षात्मक शक्ति की प्राप्ति करना चाहता है, उसके लिए यह देवी अत्यंत कल्याणकारी हैं।

मां चंद्रघंटा का मंत्र

ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः।
पिंगलाक्षी चंद्रघंटा महाबला महातपा।
सर्वशत्रु विनाशाय युध्दकाले प्रकट्यते॥

FAQs – मां चंद्रघंटा की पूजा से जुड़ी जानकारियां

नवरात्रि के तीसरे दिन किस देवी की पूजा की जाती है?
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।

मां चंद्रघंटा का नाम कैसे पड़ा?
इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र होने के कारण इन्हें ‘चंद्रघंटा’ कहा जाता है।

मां चंद्रघंटा के स्वरूप की विशेषता क्या है?
यह देवी सौम्यता और शौर्य का अद्भुत समन्वय हैं, जिनके दस हाथ और सिंह की सवारी होती है।

मां चंद्रघंटा की पूजा करने से क्या लाभ होते हैं?
साधक को साहस, आत्मविश्वास, बल और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा मिलती है।

मां चंद्रघंटा का पौराणिक प्रसंग क्या है?
विवाह के समय पार्वती ने स्वयं को दिव्य योद्धा रूप में बदलकर चंद्रघंटा स्वरूप धारण किया।

मां चंद्रघंटा किस पर सवार रहती हैं?
मां चंद्रघंटा सिंह पर सवार रहती हैं।

मां चंद्रघंटा की आराधना किनके लिए फलदायी है?
जो व्यक्ति आत्मरक्षा, साहस और शौर्य की प्राप्ति चाहता है, उसके लिए यह पूजा विशेष लाभकारी है।

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