हिन्दी

स्कन्द षष्ठी व्रत

Published On : June 28, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

स्कन्द षष्ठी व्रत एवं महात्म्य

यह व्रत भगवान कार्तिकेय की प्रसन्नता एवं भक्ति को प्राप्त करने के लिये किया जाता है। भगवान कार्तिकेय का एक और नाम जिसे स्कंद भी कहा जाता है। उसी नाम से यह व्रत प्रसिद्ध है। क्योंकि स्कंद पुराण में इस व्रत के महात्म्य को बताया गया है। इसके अतिरिक्त शिव और अन्य पुराणों में भगवान स्कन्द के व्रत की महिमा और उनकी भक्ति के अनेकों संदर्भ प्राप्त होते हैं। हालांकि मतान्तर एवं स्थान भेद के कारण लोग इनके व्रत को चैत्र शुक्ल पक्ष एवं आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि में करते है। तथा कुछ लोग कार्तिक कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि में स्कंद षष्ठी का व्रत एवं पूजन करते हैं। इन महीनों की जो भी तिथियां है, उन्हें स्कन्द षष्ठी व्रत हेतु प्रशस्त एवं शुभ माना जाता है। इस व्रत के विषय में भगवान श्री हरि नारायण नारद जी के पूछने पर बताते हैं। कि यह व्रत व्यक्ति के पापों को शमन करने वाला तथा व्रती को सुख एवं संतान देने वाला होता है। देवताओं के सेनापति भगवान का व्रत अत्यंत पुण्यप्रद एवं शुभफल देने वाला होता है। तथा निः संतान को संतान देने वाला तथा जिसकी संतान दुःखों से पीड़ित हो इस व्रत का श्रद्धा भाव से पालन करे तो उसके संतान एवं उसकी पीड़ाओं का अंत हो जाता है। व्रत के एक दिन पहले नियम एवं संयम का पालन करना चाहिये। यह व्रत दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है। इस व्रत को शुरू करने के लिये चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को अधिक प्रशस्त माना जाता है। किन्तु स्थान भेद एवं मान्यताओं के चलते लोग इसे आश्विनी एवं कार्तिक मास की षष्ठी तिथि में भी शुरू करते है। भगवान कार्तिकेय को कुमार, स्कन्द, षड़ानन तथा मुरूगन के नाम से लोग पूजते एवं जानते हैं। जिससे लोगों को सद्बुद्धि एवं ज्ञान मिलता है। इस व्रत के पालन करने पर लोगों में पुण्यों का उदय होता है। यह पूजा एवं व्रत प्रत्येक घर की सुख एवं शांति के लिये अत्यंत आवश्यक होता है। क्योंकि जिस घर में आपसी बैर भाव बढ़ गया हो तथा नित्यप्रति झगड़े हो रहे हो उन्हें इसका पालन जरूर करना चाहिये।

स्कन्द षष्ठी पूजा विधान

इस व्रत के एक दिन पहले व्रती साधक को खुद को नियमित एवं संयमित करने की जरूरत रहती है। जिससे में ब्रह्मचर्य की रक्षा एवं पवित्रता का ध्यान देना बहुत ही जरूरी होता है। यदि किसी प्रकार के तामसिक आहारों का सेवन करते हैं। तो उन्हें त्यागकर व्रत के लिये तैयार होना होगा। व्रत वाले दिन में ब्रह्म मुहुर्त में जल्दी उठकर सम्पूर्ण शौचादिक तथा शुद्धि क्रियाओं को करते हुये पूजन की समस्त सामाग्री जैसे नये कपड़े, खिलौने और दियों तथा पुष्पों एवं मालाओं सहित काजू एवं बदाम तथा नारियल से बनी मिठाइयां। बरगद की टहनी एवं नीले रंग के पुष्पों को एकत्रित करके एक शुद्ध आसन में बैठकर भगवान का ध्यान करते हुये आत्म शुद्धि करें तथा दीपक आदि जला लें। या फिर विधि विधान से षोड़शोपचार विधि से किसी ब्रह्मण द्वारा पूजा करवायें। तथा अपने पूजा को भगवान स्कन्द को अर्पित कर दें। तथा आपनी वांछित कामना की पूर्ति की प्रार्थना करें।

 स्कन्द षष्ठी की कथा

स्कन्द षष्ठी के संदर्भ में कई कथानक प्राप्त होते हैं। जिसमें कुछ इस प्रकार है। एक बार की बात है कि च्यवन ऋषि की नेत्रों की पीड़ा अचानक ही बढ़ गयी। जिसका उन्होनें बहुत इलाज किया। किन्तु उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ और धीरे-धीरे उनके आंखों की रोशनी ही कहीं गायब हो गयी। तब उन्हें किसी ने स्कन्द षष्ठी के व्रत की महिमा को बताया और उन्होनें व्रत का पालन एवं नियम से पूजन किया जिससे  उन्हें पुनः आंखो की रोशनी प्राप्त हुई। इसी प्रकार एक और महत्वपूर्ण कथा है। जिसमें भगवान स्कन्द की कृपा से प्रियव्रत के मृत शिशु को पुनः जीवनदान मिला था। यह कथा ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित है। शिव के तेज से उत्पन्न भगवान कार्तिकेय को 6 कृतिकाओं ने पाला था। क्योंकि जब तारकासुर का उपद्रव धरती पर बढ़ा तो देवताओं की कई मुश्किलें बढ़ी हुई थी। जिससे कार्तिकेय ने बड़े होकर उस तारकासुर का अंत कर दिया था। और उन्हें देव सेनापति के रूप में नियुक्ति किया गया था। 6 कृतिकाओं के पालन पोषण के कारण ही भगवान कार्तिकेय छः मुखों से युक्त हैं। तथा देव समाज को राक्षसों से अभय प्रदान करा रहें हैं।

यह भी पढ़ना न भूलें: श्री राम नवमी

Blog Category

Trending Blog

Recent Blog


TRUSTED SINCE 2000

Trusted Since 2000

MILLIONS OF HAPPY CUSTOMERS

Millions Of Happy Customers

USERS FROM WORLDWIDE

Users From Worldwide

EFFECTIVE SOLUTIONS

Effective Solutions

PRIVACY GURANTEED

Privacy Guaranteed

SAFE SECURE

Safe Secure

© Copyright of PavitraJyotish.com (PHS Pvt. Ltd.) 2025