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शीतला षष्ठी व्रत

Published On : March 29, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

शीतला षष्ठी व्रत एवं महात्म्य

यह व्रत हमारे व्रतों की श्रृंखला में बढ़ा ही प्रभावशाली एवं पुण्यफल देने वाला है। जिसके प्रभाव से व्यक्ति की बड़ी-बड़ी बाधायें एवं बीमारियां भी ठीक हो जाती है। माँ शीतला की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिये इस व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। यह व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की छठवीं तिथि यानी षष्ठी में किया जाता है। इसके पुण्यप्रभाव से जातक को आयु आरोग्यता तथा पुत्र पौत्र यश कीर्ति एवं धन धान्य आदि की प्राप्ति होती है। भवानी शीतला के इस व्रत का पालन स्त्री पुरूष सभी करते हैं। किन्तु महिलाओं में इसके व्रत के प्रति अधिक श्रद्धा दिखती है। क्योंकि बड़ी संख्या में उनके द्वारा व्रत का पालन किया जाता है। शीतला षष्ठी व्रत की प्रसन्नता से बड़े रोगों से व्यक्ति को छुटकारा प्राप्त होता है। इस दिन व्रती साधन एवं साधिकायें माँ शीतला के मन्दिर में जाकर उनकी पूजा अर्चना बड़े ही भक्ति भाव के साथ करते हैं। तथा उन्हें पुष्प आदि विविध प्रकार के नैवेद्य आदि अर्पित करते है। तथा अपनी कामना माता शीतला के सम्मुख रखते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं। कि हे! माता हमारे परिवार के लोग स्वस्थ्य रहें उन्हें कोई पीड़ा एवं बीमारी न हो। तथा जो पीड़ा एंव बीमारी हो गयी है। वह आपकी कृपा से अति शीघ्र ठीक हो जाये। इस व्रत में कुत्तों के लिये अच्छा भोजन परोसा जाता है। तथा गर्म जल से स्नान वर्जित होता है। इसमें एक दिन पहले अच्छे भोजन एवं पकवान बड़े भक्ति भाव से तैयार किये जाते हैं। तथा उन्हें सुरक्षित रखकर स्नानादिक क्रियाओं से फुरसत होकर शीतला माता मन्दिर षष्ठी तिथि में पहुंच कर उन्हें विविध प्रकार से पूजे और पकवानों को अर्पित करे तथा अपने कल्याण की प्रार्थना करें। इस व्रत में ऐसी मान्यता है कि ताजा पकवानों को न तो माता को अर्पित करना चाहिये और ना ही ताजे पकवानों को खाना चाहिये। यह व्रत उत्तरी भारत सहित बंगाल आदि राज्यों में अधिक प्रचलित है। रोगों के शमन एवं सुख शान्ति एवं चमत्कारिक लाभ के कारण इस व्रत का बहुत ही महत्व है|

शीतला षष्ठी की व्रत एवं पूजा विधि

जैसा व्रतों में शुद्धता का विधान होता है। उसी प्रकार स्नानादिक शुद्धि क्रियाओं को करके माता शीतला की षोड़शोपचार विधि से पूजा अर्चना करें एवं करवायें तथा उन्हें एक दिन पहले जो कि शुद्धता एवं श्रद्धा के साथ बनाये गये तथा शुद्ध स्थान में रखे हुये सभी तरह से पवित्र हो को अर्पित करें। तथा शीतला चालीसा का पाठ करें। और माता को अपनी पूजा अर्पित करके उनसे क्षमा प्रार्थना करें।

शीतला षष्टी व्रत कथा

इस व्रत के संदर्भ में  वैसे कई कथायें उपलब्ध होती है। किन्तु कुछ लोक प्रचलित कथायें है जो इस प्रकार है। प्राचीन समय में एक ब्रह्मण थे। जिनके सात बेटे थे। किन्तु उनके बेटों के विवाह होने के बाद कई वर्षो तक किसी भी संतान का जन्म नहीं हुआ। जिससे वह बहुत ही परेशान थे। इसी समय कोई वृद्ध माता ने उन्हें शीतला षष्ठी के व्रत की सलाह दिया जिससे उस ब्रह्मण की बहुओं को संतान की प्राप्ति हुई तथा उनके घर से बीमारियों का अंत हुआ तभी से आज तक इस व्रत का पालन महिलायें बड़ी श्रद्धा से करती हैं।

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