दीप पर्व दिवाली मे कैसे करे माँ लक्ष्मी की पूजा अर्चना
Published On : October 24, 2016 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
कैसे करे दिवाली मे माँ लक्ष्मी की पूजा
दीपावली का शुभ मुहूर्त आ रहा है और हर कोई चाहता है उसके पास प्रचुर मात्र मे धन हो, जिससे वह अपने और अपने परिवार के सभी सपने सहजतापूर्वक पूरे कर सके । दीपावली के दिन की जाने वाली धन लक्ष्मी साधना आज के युग में कल्पवृक्ष के समान फल देने वाली साधना है । जब सारे रास्ते बंद हो जाएँ तो प्रत्येक ब्यक्ति को लक्ष्मी माँ जो की अद्वितीय शक्ति है, की शरण लेनी ही चाहिए । यदि आप स्वयं प्रयत्न करे तो, आप क्या नहीं पा सकते? इसलिए माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति हेतु एकाग्रचित्त हो, यत्नपूर्वक बताई गयी विधि अनुसार, पूजन-अर्चन करे तो निश्चित ही आपको चमत्कार मिलेगा । शुद्ध एवं अभिमंत्रित दीपावली पूजन सामग्री हेतु यहाँ पर क्लिक कर प्राप्त करे | इसमें आपको मिलेगा सम्पूर्ण श्रीयंत्र, कमल गट्टे की माला, कौड़ी, गोमती चक्र एवं स्फटिक गणेश
लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए, जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और शास्त्रानुसार लगभग 1 घण्टे 29 मिनट तक रहता है । कुछ लक्ष्मी स्त्रोतो मे लक्ष्मी पूजा को करने के लिए महानिशीथ काल भी बताया गया हैं। शास्त्रानुसार महानिशीथ काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानकारी रखते हैं, उनके लिए यह समय अत्यंत उपयुक्त बताया गया है। सामान्य लोगों के लिए प्रदोष काल मुहूर्त ही पूर्णतः उपयुक्त हैं, जब स्थिर लग्न होता है। स्थिर लग्न मे धन संपत्ति की देवी माँ लक्ष्मी एवं बुद्धि प्रदाता व विघ्नहर्ता गणेश जी का पूजन करने से लक्ष्मी व बुद्धि की स्थिरता मिलती है | दीवाली मे लक्ष्मी-गणेश पूजा को कैसे करना चाहिए, आइये जानते है।
लक्ष्मी पूजा की सामग्री
रोली, अक्षत, फल, फूल, माला, मिठाई, धुप, इत्र (खुशबू), लकड़ी की चौकी, लाल वस्त्र (कपड़ा) चौकी पर बिछाने के लिए, घी, दीया, अगरबत्ती, कमल का फूल, चांदी का सिक्का या अगर यह उपलब्ध ना हो तो कुछ पैसे रखे
लक्ष्मी पूजन मुहूर्त
लक्ष्मी पूजन मुहूर्त : 18:41 Hrs to 20:11 Hrs
अवधि = 01 hrs 29 Min
प्रदोष काल = 17:36 Hrs to 20:11 Hrs
वृषभ काल = 18:41 Hrs to 20:37 Hrs
महानिशीथ काल मुहूर्त:
महानिशीथ काल = 23:39 Hrs to 24:31 Hrs
सिंह काल = 25:12 Hrs to 27:29 Hrs
चौघड़िया पूजा मुहूर्त:
दीवाली लक्ष्मी पूजा के लिये शुभ चौघड़िया मुहूर्त
प्रातःकाल मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) = 17:36 Hrs to 22:28 Hrs
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) = 13:28 Hrs to 14:51 Hrs
सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) = 28:57 Hrs to 30:33 Hrs
माँ लक्ष्मी पूजा की विधि
प्रथमतः श्री गणेश जी का ध्यान, आवाहन, पूजन करें। ध्यान मंत्र: ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ। निर्विध्नं कुरू मे देव सर्वकायेषु सर्वदा।।
षोड़षोपचार पूजन
निम्न मंत्रों से तीन बार आचमन करें।
मंत्र- ऊँ केशवाय नमः, ऊँ नारायणाय नमः, ऊँ माधवाय नमः
तथा हृषिकेषाय नमः बोलते हुए हाथ धो लें।
आसन धारण के मंत्र– ऊँ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरू चासनम्।।
पवित्रीकरण हेतु मंत्र – मंत्र- ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षंतद्बाह्याभ्यन्तरं शुचि।।
चंदन लगाने का मंत्रः- मंत्र- ऊँ आदित्या वसवो रूद्रा विष्वेदेवा मरूद्गणाः। तिलकं ते प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थसिद्धये।।
रक्षा सूत्र मंत्र – (पुरूष को दाएं तथा स्त्री को बांए हाथ में बांधे)
मंत्रः- ऊँ येनबद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेनत्वाम्अनुबध्नामि रक्षे माचल माचल ।।
दीप जलाने का मंत्रः- मंत्र- ऊँ ज्योतिस्त्वं देवि लोकानां तमसो हारिणी त्वया। पन्थाः बुद्धिष्च द्योतेताम् ममैतौ तमसावृतौ।।
संकल्प की विधिः- ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः, ऊँ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरूषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपराद्र्धे श्रीष्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे- ऽष्टाविंषतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे ………………..श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकषर्मा अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीगणेशलक्ष्मीनुग्रहतो……………….. आदि मंत्रो को शुद्धता से बोलते हुए शास्त्र सम्मत विधि से पूजा पाठ का संकल्प लें।
श्री गणश मंत्रः- ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ। निर्विध्नं कुरू मे देव सर्वकायेषु सर्वदा।। कलश स्थापना के नियम:- पूजा हेतु कलश सोने, चाँदी, तांबे की धातु से निर्मित होते हैं, असमर्थ व्यक्ति मिट्टी के कलश का प्रयोग करत सकते हैं। ऐसे कलश जो अच्छी तरह पक चुके हों जिनका रंग लाल हो वह कहीं से टूटे-फूटे या टेढ़े न हो, दोष रहित कलश को पवित्र जल से धुल कर उसे पवित्र जल गंगा जल आदि से पूरित करें। कलश के नीचे पूजागृह में रेत से वेदी बनाकर जौ या गेहूं को बौयें और उसी में कलश कुम्भ के स्थापना के मंत्र बोलते हुए उसे स्थाति करें। कलश कुम्भ को विभिन्न प्रकार के सुगंधित द्रव्य व वस्त्राभूषण अंकर सहित पंचपल्लव से आच्छादित करें और पुष्प, हल्दी, सर्वोषधी अक्षत कलश के जल में छोड़ दें। कुम्भ के मुख पर चावलों से भरा पूर्णपात्र तथा नारियल को स्थापित करें। सभी तीर्थो के जल का आवाहन कुम्भ कलश में करें।
आवाहन मंत्र करें: –ऊँ कलषस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रूद्रः समाश्रितः। मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू ।।
षोडषोपचार पूजन प्रयोग विधि –
(1) आसन (पुष्पासनादि)-
ऊँ अनेकरत्न-संयुक्तं नानामणिसमन्वितम्। कात्र्तस्वरमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
(2) पाद्य (पादप्रक्षालनार्थ जल)
ऊँ तीर्थोदकं निर्मलऽच सर्वसौगन्ध्यसंयुतम्। पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगृह्यताम्।।
(3) अघ्र्य (गंध पुष्प्युक्त जल)
ऊँ गन्ध-पुष्पाक्षतैर्युक्तं अध्र्यंसम्मपादितं मया। गृह्णात्वेतत्प्रसादेन अनुगृह्णातुनिर्भरम्।।
(4) आचमन (सुगन्धित पेय जल)
ऊँ कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु षीतलम्। तोयमाचमनायेदं पीयूषसदृषं पिब।।
(5) स्नानं (चन्दनादि मिश्रित जल)
ऊँ मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागरूवासितैः।पयोभिर्निर्मलैरेभिःदिव्यःकायो हि षोध्यताम्।।
(6) वस्त्र (धोती-कुर्ता आदि)
ऊँ सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे। मया सम्पादिते तुभ्यं गृह्येतां वाससी षुभे।।
(7) आभूषण (अलंकरण)
ऊँ अलंकारान् महादिव्यान् नानारत्नैर्विनिर्मितान्। धारयैतान् स्वकीयेऽस्मिन् षरीरे दिव्यतेजसि।।
(8) गन्ध (चन्दनादि)
ऊँ श्रीकरं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। वपुषे सुफलं ह्येतत् षीतलं प्रतिगृह्यताम्।।
(9) पुष्प (फूल)
ऊँ माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्त्तितः।मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि पादयोरर्पितानि ते।।
(10) धूप (धूप)
ऊँ वनस्पतिरसोद्भूतः सुगन्धिः घ्राणतर्पणः।सर्वैर्देवैः ष्लाघितोऽयं सुधूपः प्रतिगृह्यताम्।।
(11) दीप (गोघृत)
ऊँ साज्यः सुवर्तिसंयुक्तो वह्निना द्योतितो मया।गृह्यतां दीपकोह्येष त्रैलोक्य-तिमिरापहः।।
(12) नैवेद्य (भोज्य)
ऊँ षर्कराखण्डखाद्यानि दधि-क्षीर घृतानि च। रसनाकर्षणान्येतत् नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।
(13) आचमन (जल)
ऊँ गंगाजलं समानीतं सुवर्णकलषस्थितम्। सुस्वादु पावनं ह्येतदाचम मुख-षुद्धये।।
(14) दक्षिणायुक्त ताम्बूल (द्रव्य पानपत्ता)
ऊँ लवंगैलादि-संयुक्तं ताम्बूलं दक्षिणां तथा। पत्र-पुष्पस्वरूपां हि गृहाणानुगृहाण माम्।।
(15) आरती (दीप से)
ऊँ चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निस्तथैव च। त्वमेव सर्व-ज्योतींषि आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम्।।
(16) परिक्रमा
ऊँ यानि कानि च पापानि जन्मांतर-कृतानि च। प्रदक्षिणायाः नष्यन्तु सर्वाणीह पदे पदे।।
गणेश जी एवं लक्ष्मी माँ की एक परिक्रमा करनी चाहिए। यदि चारों ओर परिक्रमा का स्थान न हो तो आसन पर खड़े होकर दाएं घूमना चाहिए एवं दण्डवत प्रणाम करे |
क्षमा प्रार्थना
ऊँ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि भक्त एष हि क्षम्यताम्।। अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम। तस्मात्कारूण्यभावेन भक्तोऽयमर्हति क्षमाम्।। मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं तथैव च। यत्पूजितं मया ह्यत्र परिपूर्ण तदस्तु मे।।
ऊँ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पष्यन्तु मा कष्चिद् दुःख-भाग्भवेत् ।।
(सभी सुखी हों, सभी निरोग हों, सभी सर्वत्र कल्याण ही कल्याण देखें एवं कोई भी कहीं दुख का भागी न हो।)
आप सभी लोगो को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये | माँ लक्ष्मी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे |
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