शनि जयंती
Published On : April 20, 2024 | Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant
शनि जयंती एवं उसका महत्व
हिन्दू धर्म में सूर्य एवं चन्द्रमा को वेदों में देवता कहा गया है। तथा सूर्य पंचदेवों में शामिल है। वहीं भगवान शनि नवग्रह मण्डल के बड़े ही प्रभावशाली देवता है। इनकी जन्म जयन्ती प्रतिवर्ष वैशाख मास की अमावस्या को मनाई जाती है। भगवान सूर्य के सुत एवं भगवती छाया देवी के लाड़ले शनि यानी सूर्य इनके पिता एवं माता छाया देवी हैं। की जन्म जयंती प्रतिवर्ष वैशाख मास की अमावस्या को बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती है। इस अवसर पर भगवान शनि के मन्दिरों में उनकी पूजा एवं अर्चना हेतु विविध प्रकार के स्त्रोतों एवं अनुष्ठानों का वैदिक एवं तात्रिक विधान किया जाता है। कहते है कि इनका जन्म अमावस्या को ठीक 12 बजे दोपहर में हुआ था। वैसे ज्योतिष के मतानुसार शनि नवग्रह मण्डल में बडे़ ही तेजस्वी एवं ओजस्वी तथा प्रभावशाली है। यदि कुण्डली में यह शुभ होकर बैठे हैं, तो जातक एवं जातिकाओं को माला माल कर देते हैं। किन्तु इनकी दृष्टि एवं दुर्बलता कुण्डली में यदि प्रभावी हो तो जातक एवं जातिकाओं को उस दौरान जितने समय तक यह संबंधित भावों में बने रहते है। उसकी हानि होती है। तथा जातक को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जिससे उसका स्वास्थ्य खराब होने लगता है। तथा उसकी सूझबूझ समाप्त होने लगती है। उसे अपने घर में लोगों के साथ कई तरह के झगड़े एवं झंझटों का सामना करना पड़ता है। हालांकि ज्योतिष में इन्हें कई स्थानों में पाप एवं कू्र ग्रह की संज्ञा इसलिये प्राप्त है। क्योंकि यह अपने रूप एवं स्वभाव के कारण कुछ उग्र एवं तामसिक वृत्ति वाले हैं। जिससे व्यक्ति को नाना प्रकार की कठिनायों एवं संघर्षों का सामना करना पड़ता है। यदि शनि शुभ हो तो उसे न्यायाधीश एवं एवं बड़े पदो पर आसीन कर देते हैं। स्थान लाभ, भूमि लाभ, पुत्र एवं कलत्र आदि लाभ प्राप्त होते हैं। यानी जीवन में आगे बढ़ने तथा प्रत्येक पहलू को सुधारने के लिये विशेष रूप से जिस भाव से उनका संबंध हो उसके लिये अत्याधिक महत्वपूर्ण हैं। इस प्रकार शनि जयंती दुःखों से दूर करने का एक सुनहरा अवसर होता है।
शनि जयंती एवं उसकी पूजन विधि
भगवान शनि की जन्म जयन्ती पर श्रद्धालु भक्तों को अपने कल्याण हेतु भगवान शनि की जयन्ती पूर्व संध्या पर ही ब्रह्मचर्य एवं आचारों विचारों की शुद्धता को बनाना चाहिये। तामसिक आहारों के सेवन को छोड़ देना चाहिये। तथा शनि की संबंधित पूजन सामाग्री जैसे माला, फल, धूप दीप नैवेद्य एवं सरसों का तेल और काले उड़द एवं काले कम्बल, काला कपड़ा नारियल, कलश के लिये पात्र आदि शनि देव की पूजा में विहित सम्पूर्ण पूजन की सामाग्री को एकत्रित करके रखे लें। तथा किसी शनि मन्दिर या फिर अपने ही घर में शनि की किसी लौह प्रतिमा को स्थापित करके उनकी पूजा अर्चना विधि विधान से करें या करवायें। तथा उनके निमित्त दान एवं पुण्यादि करें। शनि भगवान को तेल अर्पित करना विशेष रूप से कल्याणप्रद होता है। इस प्रकार भगवान शनि की पूजा आराधना करें। तथा अपने पूजन को उन्हें अर्पित करें दें। अपनी किसी भी जाने अनजाने मे भूल के लिये क्षमा प्रार्थना विनम्र भाव से करें। कि हे! प्रभु मेरे जीवन से दुःख एवं संकट एवं रोगादि दूर रहे। मेरा और परिवार का कल्याण हो यदि आपकी पूजा में कोई कमी एवं .त्रुटि हुई हो तो उसे क्षमा करें आदि।
शनि जयंती की कथाः
भगवान शनि के संबंध में पौराणिक ग्रन्थों में अनेकों कथा प्रसंग प्राप्त होते है। किन्तु कुछ प्रचलित कथानक इस प्रकार है। भगवान सूर्य देव का विवाह दक्ष प्रजापति की कन्या संज्ञा से सम्पन्न हुआ था। तथा उन्हें मनु, यम और यमुना जैसे दिव्य संसति की प्राप्ति हुई थी। किन्तु भगवान सूर्य के महान तेज को नहीं सहन कर पाने के कारण वह संज्ञा ने सूर्य की सेवा में अपनी छाया को नियुक्त किया। इस छाया एवं भगवान सूर्य से शनि देव की उत्पत्ति हुयी है। मत्स्यपुराण में इसका वर्णन हैं। हालांकि शनि के दृष्टि दोष एवं तेल को चढ़ाने एवं तेल विशेष प्रिय होने की भी कथायें काफी रोचक एवं लोक प्रिय है। यानी शनि को श्राप के कारण ही दृष्टि दोष एवं पैर में चोट एवं पीड़ा उत्पन्न हुई थी। तब से शनि भगवान जिस भी व्यक्ति पर यानी ज्योतिष में जिस भाव में दृष्टि संबंध रखते हैं। वहा पीड़ा एवं परेशानी की स्थिति उत्पन्न होने लगती है। जिससे जन मानस में इस संबंध को लेकर काफी कहावतें एवं कवि की कविताओं में उल्लेख प्राप्त होता है। कि अमुक व्यक्ति को शनि जैसा प्रभाव लग रहा है।
शनि जयंती एवं उससे जुड़े अन्य तथ्य
भगवान शनि की पूजा में काले कपड़े काले उड़द एवं सरसों के तेल आदि का बहुत ही महत्व है। असली काले घोड़े की नाल भी शनि के दुष्प्रभावों को दूर करती है। ऐसा कहते है कि शनि की साढ़े साती एवं ढ़ैया के कारण व्यक्ति चाहे वह कोई भी किसी ओहदे एवं पद प्रतिष्ठा में हो कोई राजा क्यों न हो तथा भगवान राम एवं राजा दशरथ तथा महाभारत काल से लेकर रामायण काल तक शनि के संबंध में एवं उसकी साढ़े साती के प्रभाव के संबंध में कथानक प्राप्त होते हैं। भगवान राम को शनि के कारण ही वन-वन भटकना पड़ा, महाराज दशरथ जी के राज महल में पारिवारिक कलह ने डेरा डाल दिया था। तथा महाभारत का युद्ध आदि अनेको वैदिक एवं पौराणिक काल की घटनायें जिसका कारण कई स्थानों पर शनि की साढ़े साती एवं ढै़या आदि को ज्योतिष विदों एवं कथाकारों एवं कवियों ने अपने लेख में प्रमुख रूप से स्थान दिया हुआ है। इस प्रकार शनि से संबंधित दुष्प्रभावों से बचने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को इनकी जन्म जयंती पर अवश्यक पूजा अर्चना करना चाहिये। इनकी महादशा का समय 19 वर्ष का होता है। यह मकर एवं कुम्भ राशि के स्वामी है। इन्हें गिद्ध पर आसीन बताया गया है। यह कृष्ण वर्ण के हैं आदि।
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