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रवीन्द्रनाथ टैगोर जयंती

Published On : April 9, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

रवीन्द्रनाथ टैगोर जयंती

साहित्य एवं संगीत तथा नाटक में महारथ हासिल करने वाले तथा अनेकों ऐसे निबंध तथा रचनाओं को रचने वाले पहुंचे हुये कलाकार राष्ट्रगान के रचयिता रवीन्द्र नाथ टैगोर की जयंती को प्रतिवर्ष बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इनका जन्म 07 मई 1861 में जोड़ासांको में हुआ था। अनूठी प्रतिभा के धनी तथा उदारवादी एवं कल्याणवादी दृष्टि कोण के समर्थक टैगोर जी को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह अपनी कविताओं एवं संगीत में जहाँ तत्कालिन समाज का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश की है। वहीं प्रकृति के संरक्षण पर बल देते हुये प्रकृति के पे्रम को अधिक महत्व देते हैं। शांति एवं आध्यात्म की चाहत रखने वाले रवीन्द्र नाथ टैगोर ने शांति निकेतन की स्थापना की थी। अपने बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी टैगोर जी की रचनाओं के कारण उनकी जन्म जयन्ती को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस संसार के यह बडे ही अनूठे कवि है। इनकी रचनाओं को रष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था। यह न केवल धर्म के उपासक थे। बल्कि मानव जीवन के कल्याण से प्रेरित अनेको रचनाओं की रचना करते है। जिसकी बानगी इनके कविताओं में साफ तौर पर झलकी है। बचपन से ही कवि हृदय एवं माता सरस्वती की कृपा से अभिभूत बालक रवीन्द्र नाथ टैगोर मात्र अपनी आठ वर्ष की बहुत की कम उम्र में कविता को लिख दिया था। इसी प्रकार उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में अपनी प्रथम लघु कथा लिखा जो उस समय प्रकाशित किया था। तथा भारतीय संस्कृति में पुनः चेतना डालने वाले तथा ओजस्वी कवि टैगोर ने इनता ही विज्ञान, खगोल शास्त्र एवं इतिहास भूगोल, संस्कृत आदि के क्षेत्रों में महारथ हासिल कर रखी थी। इन्होंने अपनी रचनाओं में उपन्यास, यात्रा वृन्तात, नाकट आदि को महत्व दिया था। तथा अनेक गीत एवं संगीतों की रचना अपने ग्रन्थ मे थी।

रवीन्द्र नाथ टैगोर एवं देश भक्ति

राष्ट्र कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर के अन्दर देश भक्ति का बड़ा ही जनून था। जिससे अपनी रचनाओं एवं कृतिओं में उन्हें उभारते है। क्योंकि जब भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना हुई थी। तो उस समय में उन्होंने अपने प्रसिद्ध उपन्यास गोरा के माध्यम से मानवता और हिन्दू समाज की बढ़ती हुई समस्याओं में प्रकाश डाला था। तथा ब्रह्म समाज एवं अन्य तरह की व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के लिये उन्होंने अपने इस उपन्यास में बड़ी ही सुगम चर्चाओं को प्रस्तुत किया था। क्योंकि उस समय अंग्रेज यानी गोरे काले का भेद तथा हिंदू, सिख, ईसाई जैसे मामलों में वह भेदभाव नहीं करने की सलाह देते है। तथा मानवीय मूल्यों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ने की सलाह अपने लेख एवं कविताओं के माध्यम से वह लोगों को देते है। तथा आपसी भाईचारे एवं सौहार्द को बनाने की बात कहते हैं। तथा ईश्वर को सत्य मानकर वह अपने रचनाओं में प्रमुखता से उन्हें स्थान देते हैं। तथा जीव एवं ईश्वर का बड़ा ही घनिष्ठ रिश्ता है। जिसे किसी भी सूरत में नकारा नहीं जा सकता है। रवीन्द्र नाथ टैगोर की रचना साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र में उपलब्ध होती हैं। जो बड़ी ही अद्वितीय एवं उपयोगी हैं।

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