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श्री महावीर जयंती

Published On : April 1, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

श्री महावीर भगवान (जयंती जैन)

इस धर्मप्राण धरा में भगवान विविध रूपों में मानव जीवन के कल्याण एवं आत्मबोध के लिये अवतार धारण करते है। जिससे काम, क्रोध एवं मद, मोह, लोभ की आंधी के थेपेड़ो से घायल व्यक्ति को बड़ी ही राहत मिलती है। और कई आकुल एवं व्याकुल हुये लोगों को इस संसार के महाअंधकार से पार होने का मार्ग भी बनता है। इसी क्रम में भगवान महावीर जैन धर्म के चैबिसवें तीर्थकार का जन्म हुआ था। इनके जन्म के संबंध में कहा जाता है। कि यह परम पवित्र वंश इच्छाकु वंश जो कि कई बार भगवान को अवतरित करने का गौरव हासिल किये हुये है में ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। राज घराने में सभी उत्तम किस्म की सुविधाओं के होने के बाद भी बालक का मन राजकीय कार्यो के संचालन में नहीं लग रहा था। किन्तु जब से बालक महाबीर ने जन्म लिया उस राज्य में दिन दूनी चार चौगुनी उन्नति होने लगी। जिससे प्रसन्न होकर उनका एक और नाम रखा गया जिसे वर्धमान भी कहते है। जन्म से पहले महावीर की माता त्रिशला ने 16 प्रकार के शुभ स्वप्नों को देखा था। जो अत्यंत पुनीत और पवित्र माने जाते हैं। अर्थात् भगवान महावीर ने अपने अवतरण के पहले माता-पिता को सचेत किया था। कि इस धरती में हिंसा, झूठ और कू्ररता के वातावरण को समाप्त करने हेतु वह अवतार धारण कर रहे हैं। ऐसे कल्याणमयी संकेतों का स्वप्न देकर वह धरती में अवतरित हुये। तथा उनका लालन पालन बड़े ही उत्साह के साथ हुआ। माता पिता की जिद् तथा उनका सम्मान रखते हुये उन्होनें अपना विवाह किया, किन्तु उनका लक्ष्य भोग न होकर सत्य की खोज था और आत्मसाक्षात्कार के पथ पर लोगों को अग्रसर करना था।

भगवान महावीर की तपस्या

भगवान महावीर में अपने जन्म के समय से ही अपने संसार से विरक्त रहने का संकेत किया था। जिससे वह अपने तीस वर्ष की आयु में ही सम्पूर्ण राज भोग एवं वैभव को छोड़कर ईश्वर से अपने तार जोड़ने के लिये निरन्तर 12 वर्षो तक अति कठोर तपस्या की थी। जिससे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था।

भगवान महावीर की शिक्षायें एवं उपदेश

भगवान महावीर ने देश ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में शांति, अहिंसा, सत्य, दया, क्षमा का संदेश एवं उपदेश किया था। अस्तेय चोरी न करना बिना दिये हुये किसी का कुछ नहीं लेना और दूसरों से साथ अच्छा व्यवहार करना तथा जियों और जीने दो की राह पर चलना। तथा सत्य की ओर उन्मुख होना आदि अत्यंत कल्याणप्रद शिक्षायें एवं उपदेश दिये थे। प्रतिवर्ष भगवान महावीर की जन्म जयन्ती बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। देश एवं प्रदेशों में शोभा यात्रायें एवं उनकी बड़ी मनोरम झांकिया निकलती है। जिसमें जैन धर्म ही नहीं बल्कि हिन्दू सहित अन्य धर्मो के लोग जो भी शांति अहिंसा की तरफ अपना रूख किये हुये हैं। तथा आत्मकल्याण की भावना से जुड़े हैं। ऐसे सभी लोग भगवान महावीर जयंती को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

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