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शरद पूर्णिमा

Published On : September 4, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

कोजगरी या शरद पूर्णिमा

यह पर्व हिन्दू धर्म का बेहद विशिष्ट एवं अमृत्व को प्राप्त कराने वाला सोपान है। जिससे श्रद्धालु भक्तों को शारीरिक एवं मानसिक शान्ति प्राप्त होती है। वर्ष पर्यन्त व्रत पर्वों की बड़ी ही महत्त्वपूर्ण श्रृंखला हमारे मध्य कई प्रकार के दुःख पीड़ाओं से छुटाने के लिये आती रहती है। उसी क्रम में बेहद पवित्र और खास व्रत पर्व कोजगरी पूर्णिमा का व्रत है। जो अश्विनी माह की शुक्ल पूर्णिमा यानी तीसवीं तिथि यानी पूर्णिमा को होता है। इसे शरद पूर्णिमा एवं कोजगरी पूर्णिमा दोनों ही नामों से जाना जाता है। वर्षा ऋतु के पश्चात् शरद ऋतु का आगमन जहाँ ढ़ाबर हुये नदियों के पानी को स्वच्छ बनाता है। वहीं श्री चन्द्रमा अपनी अमृतमयी किरणों से अमृत की वर्षा करते हैं। जिसके पान से व्यक्ति में उमंग, उत्साह, जोश, तथा सद्बुद्धि का संचार होता है। जिससे नाना प्रकार के रोग एवं दुःखों से छुटकारा प्राप्त होता है। पूर्णमासी तिथि अपने आप में बड़ी ही महत्वपूर्ण एवं अद्भुत है। वर्ष भर में प्रत्येक महीने की 12 पूर्णिमासी होती है। जिसमे यह कुछ एक अपना विशेष स्थान रखने वाली होती है। जिस क्रम में शरद पूर्णिमा का स्थान बड़ा ही सुविकसित एवं पावन होता है। क्योंकि चंद्रमा की गति एवं कलाओं की बात करें तो यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। किन्तु चन्द्र के बारे में शास़्त्रों में कथन है कि यह वर्ष भर की पूर्णिमासी में केवल शरद की पूर्णिमा को ही 16 कलाओं के साथ आकाश में दिव्य दर्शन देता है। जिसके दर्शन एवं पूजन से समस्त प्रकार के रोग एवं पापों का अंत हो जाता है। चन्द्रमा की स्वच्छ चाँदनी बिखरने वाली प्रभावशाली किरणें अत्यंत हितकर एवं दिव्य होती है। जो शरद यानी कोजगरी पूर्णिमा के दिन धरती को अमृत से सीचती हैं। इस व्रत पर्व के संदर्भ में हमारे धर्म शास्त्रों में अनेकों स्थानों में बड़ा विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। इस पर्व में समुद्र मंथन के समय संसार को पालने वाली देवी माँ लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी। इसीलिये इस पर्व को प्रतिवर्ष बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

कोजगरी पूर्णिमा के है विविध नाम

इस पूर्णिमा की लोक प्रियता एवं प्रसिद्धि के कारण इसे सम्पूर्ण भारत के अनेक प्रांतों में विविध नामों से जानते है जैसे मथुरा एवं गोकुल में रास वाली पूर्णिमा कहकर पुकारते हैं। क्योकि इसे भगवान श्रीकृष्ण की रास लीलाओं से जोड़कर देखते हैं। जिससे इसे रास वाली पूर्णिमा भी कहा जाता है। क्योंकि श्रीकृष्ण भगवान ने यमुना तट पर जो गोपी एवं ग्वालों को वरदान प्रदान किया था उसे पूर्ण करने के लिये यहाँ रासलीला को शुरू किया था। कहीं-कहीं इसे कौमुदी पूर्णिमा भी कहते है। इसी प्रकार बंगाल एवं महाराष्ट्र में कोजगरी एवं गुजरात में इसे शरद पूर्णिमा इसी प्रकार भारत के अन्य भागों में यह अधिकतर शरद एवं कोजगरी नाम से जानी एवं पूजी जाती है।

कोजगरी पूर्णिमा में औषधीय गुण

इस पर्व के बारे में कथन है कि इस पूर्णिमा में जो भी काम किये जाते है वह शुभ होते है। तथा इस दिन जो भी औषधि ग्रहण की जाती वह और गुणकारी हो जाती है। इसके गुणों में वृद्धि के कारण वह अतिशीघ्र फायदा देने वाली हो जाती है। इस पूर्णिमा के अवसर पर चन्द्रमा की तरफ भक्तिभाव से निहारना चाहिये। जिससे आंखों की रोशनी में बृद्धि होती है। तथा चन्द्रमा की किरणों को शरीर में पड़ने देना चाहियें, इससे मानसिक तनाव समाप्त हो जाता है। तथा मन को शान्ति मिलती है। जो औषधी आपको फायदा नहीं दे रही हो उसे चंद्र किरणों में रखने से उसके गुणों में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं। इस पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से खीर तैयार की जाती है। जिससे में केसर, मेवे आदि मिलाकर बनाया जाता है। तथा उसे शुद्ध गाय के दूध में तैयार किया जाता है। उसे कई बर्तनों में रखे जाने का विधान होता है। तथा उसे माँ लक्ष्मी, चन्द्रमा आदि दवताओं को अर्पित किया जाता है। कुछ पात्रो की खीर को चन्द्रमा की चाँदनी मे रखा जाता है। ध्यान रहें खीर एवं खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखें जिससे कोई जीव उन्हें आकर जूठा न कर दें। और आप उस जीव के जूठे भोजन को कतई न ग्रहण करें। यानी सुरक्षित रखी हुई खीर को प्रातः काल शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर उसे भगवान को अर्पित करें और ब्राह्मणों एवं विद्वानों में उसे बाँटे तथा खुद भी उसे पूरे परिवार के साथ खायें। जिससे उसके औषधीय गुणों के कारण आपको फायदा होगा। तथा नजला, खाँसी, जलन, आंख आदि में लाभकारी होता है।

कोजगरी पूर्णिमा व्रत एवं पूजा नियम

इस पर्व पर व्रत रखने के नियम बड़े ही सीधे-साधे हैं। यानी ब्रह्म मुहुर्त में उठकर पहले अपने हथेली का दर्शन करें। और धरती माता को प्रणाम करें। तथा शौचादि स्नान क्रियाओं को सम्पन्न करके, शुद्ध एवं नये वस्त्रों को धारण करें। तथा पूजन सामाग्री को भक्ति पूर्वक एकत्रित करके पुष्प, फल, जल, धूप दीप आदि को संग्रहित करने के पश्चात् आसन पर पूर्वाभिमुख होकर विराजे और आचमन करके आत्मशुद्धि करें और भगवान का ध्यान करते हुये चंदन लगाये और फिर दीपक का ध्यान करके उसे प्रज्वलित करें। और पूजन का सकाम संकल्प लें जो आपकी कामना हो उसे भगवान को मन ही मन में बता दें। तथा श्री सत्यनारायण आदि देवी देवताओं का ध्यान करके उन्हें षोड़शोपचार विधि से पूजे और भक्ति पूर्वक प्रार्थना करें। तथा अपने पूजा को भगवान को समर्पित कर दें। या फिर किसी पूजा पाठ में पारंगत बह्मण पंड़ितों को बुलाकर पूरी विधि विधान से पूजा करें। इस दिन पूर्णिमा तिथि होने से भगवान विष्णू एवं लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व होता है। अतःउनकी पूजा जरूर करें। घर की साफ-सफाई का विशेष ध्यान दें। तथा घर के बाहर भी दीपक जलायें और पूरी रात्रि जागरण करते हुये भगवान का स्मरण करें। तथा चन्द्रमा भगवान को अर्घ्य अर्पित करें। यदि शुद्ध देशी गाय जो कि पूजनीय है। यदि उसका दूध मिले तो उससे अर्घ्य दें। तथा माँ पार्वती एवं भगवान शिव, कार्तिकेय के पूजन का भी विधान है। इस दिन ब्रह्म कमल के साथ परम पिता ब्रम्हा की पूजा का विधान है। और ऐरावत हाथी में बैठे इन्द्र देवता एवं हाथी की पूजा का भी विधान है।

कोजगरी पूर्णिमा का महत्व

इसी पूर्णिमा तिथि के दिन देवत्व का महत्व बढ़ जाता है। जिससे देवलोक से यानी चन्द्रमा भगवान अपनी किरणों से सुधा रस को बरसाते हैं। इसी पूर्णिमा से  कार्तिक मास का पुण्य स्नान शुरू होता है। पूर्णिमा तिथि को जो भी तीर्थ स्नानादि तथा दान किये जाते है, वह अत्यंत पुण्य के प्रदाता एवं सौभाग्य को बढ़ाने वाले तथा जीवन में सुखों को देने वाले होते हैं। पूर्णिमा तिथि में भगवान श्री सत्यनारायण के पूजन एवं कथा श्रवण का चत्मकारी लाभ होता है। जिससे लोगों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। व्यक्ति जो भी कामना करता उसे भगवान सत्यनाराण आवश्यक पूरा करते हैं। चाहे वह संतान, की कामना हो या फिर धन, ऐश्वर्य एवं विजय लाभ की कामना हो उसके मनोरथों को भगवान पूरा करते है। किन्तु साधक की श्रद्धा भी अड़िग होनी चाहिये। तथा विधि विधान से व्रत एवं पूजा के साथ कथा का श्रवण जरूर करना चाहिये। कोजगरी पूर्णिमा के दिन गाय के शुद्ध दूध से निर्मित केसर एवं मेवों से बनी खीर को चाँदनी में रखने और उसे प्रातः काल भगवान को अर्पित करने का तथा ब्राह्मणों को देने और स्वतः खाने का महत्व होता है।

कोजगरी पूर्णिमा की कथाये

इस पूर्णिमा के संदर्भ में धर्म ग्रंथों में अनेकों कथायें प्रचलित हैं। जिसमें समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी के प्रकट होने की कथा सबसे अधिक प्रमुख एवं प्रचलित है। इस संबंध में ऐसा कथानक प्राप्त होता है। कि देवासुर संग्राम के समय जब बात समुद्र मंथन तक जा पहुंची। तब समुद्र मंथन का कार्य देवताओं एवं राक्षसों ने मिलकर शुरू किया परिणामतः विविध रत्नों के साथ भगवती माँ लक्ष्मी दिव्य रूपों में इस तिथि को प्रकट हुई थी। और वह रात्रि के समय में धरती में रह रहे अपने भक्तों के घरों में जाने के लिये निकलती है। इस अवसर पर जो भक्त माँ के स्वागत एवं पूजन हेतु तत्पर रहते है। तथा रात्रि के समय जागरण करते हैं। माँ लक्ष्मी उसी घर या फिर वही पहुंचकर उन्हें वांछित फल देती हैं। इसी कारण इसे कोजगरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। दूसरी कथा का संबंध एक साहूकार के परिवार की दो बेटियों से जुड़ी हुई है। जो संक्षिप्त रूप में इस प्रकार हैः प्राचीन समय में एक साहूकार की दो पुत्रियों में से एक तो भगवान की भक्ति में विश्वास रखकर पूर्णिमा के व्रत को सदैव विधि पूर्वक पूरा किया करती और अपनी भूल-चूक की प्रार्थना करते हुये उसे भगवान को अर्पित कर देती थी। इस प्रकार उसकी प्रत्येक पूर्णिमा के व्रत एवं पूजन का फल प्राप्त हो जाता था। किन्तु दूसरी बेटी ने बिना मन के सिर्फ औपचारिकता को ध्यान में रखकर व्रत को करती तथा उसे बीच में ही छोड़ देती थी। जिससे उसे वह जितना व्रत करती उसके खाते में उतना ही पुण्य अपने आप ही भगवान की कृपा से जमा हो जाता था। इस प्रकार विवाहोपरान्त जब दोनों के संतान होती तो जो व्रत को पूर्ण भक्ति एवं श्रद्धा के साथ करती थी उसके पुत्र आदि बहुत अच्छे थे। किन्तु दूसरी वाली के जो कि व्रत को बीच में ही छोड़ देती थी उसके पुत्र जन्म लेकर मर जाते थे। इस घटना से दुःखी होकर उसने इसकी जानकारी पण्डितों से लिया तो पता चला कि उसके आधे व्रत का ही यह परिणाम है। अतः पण्ड़ितों ने उसे विधि पूर्वक पुनः पूर्णिमा के व्रत को पूरा करने के लिये कहा कि इससे इसकी संतान जी जायेगी। इस पर उसने पुनः विधि पूर्वक व्रत का किया किन्तु जब संतान हुई तो वह फिर से मर गयी। इससे वह उस बच्चें को पीढे के नीचे रख कर उसमें कपड़ा ढ़क दिया। और अपनी बड़ी बहन को बुला लाई और उसी पीढे़ में उसे बैठने को कहा। जब वह पीढे के पास पहुंची तो उसका अंग बच्चे से छू गया जिससे वह रोने लगा। इससे बड़ी बहन ने छोटी को डाटा कि तू बच्चे को मारने में लगी है और मुझे भी कलंकित करना चाह रही है। क्योंकि जहाँ बच्चें को रखा है उसी के ऊपर मुझे बैठने को कह रही है। जिससे यह बच्चा मर जाता है। तब उसकी बहन ने कहा यह तेरे पुण्यों के कारण जीवित हुआ है। नहीं पहले से तो यह मरा ही था। इस घटना की जानकारी पूरी नगर में आग की तरह फैल गयी। उसके बाद से सम्पूर्ण नगरवासी पूर्णिमा का व्रत पूरा करने लगे। तथा उसकी बहन भी श्रद्धा भाव से सभी पूर्णिमा के व्रतों का पालन करने लगी।

कोजगरी पूर्णिमा के दिन क्या करें क्या न करें

इस दिन सम्पूर्ण घर की साफ-सफाई का विशेष ध्यान दें। नियम संयम से रहे तथा बह्मचर्य का पालन करें। तथा विविध प्रकार के वस्त्राभूषणों से भगवान को सजायें। पूर्णिमा के व्रत का पूरा पालन करें इसे अधूरा न छोड़े। अशुद्धता से व्रत न करें। अविश्वास एवं संदेह को जन्म न दें। श्री लक्ष्मी नारायण का व्रत एवं पूजन करें। किसी नई वस्तु की खरीद एवं विक्री करने से फायदा होता है। स्वर्णमयी एवं ताम्रमयी लक्ष्मी जी की विशेष पूजा अर्चना विविध उपचारों से करें। यदि आर्थिक रूप से कमजोर हैं तो मिट्टी की मूर्ति को पूजे। इस दिन भी चन्द्रमा के दर्शन होने पर उन्हें देशी गाय के शुद्ध दूध से अघ्र्य दें। तथा 101 स्वर्ण या ताम्र या फिर मिट्टी के दीपों को आर्थिक स्थिति के अनुसार प्रज्वलित करें। तथा विधि विधान से तैयार की गयी खीर को माँ लक्ष्मी एवं चद्रमा को अर्पित करें। और आरती एवं पूजन का क्रम सम्पन्न करें। तथा पूरी रात्रि जागरण करते रहे। और प्रातःकाल पूजा को सम्पन्न करने के बाद धातु की प्रतिमा एवं खीर को पण्डित ब्राह्मणों को दान दें।

कोजगरी पूर्णिमा की मान्यतायें

इस पूर्णिमा के संबंध में मान्यतायें है कि चन्द्रमा अमृत वर्षा करते है। जिससे इस पर्व पर कई तरह की औषधियों आदि को रखा जाता है। इस दिन रात्रि जागरण करने की मान्यतायें एवं लक्ष्मी नारायण के पूजन की मान्यतायें चन्द्र दर्शन की मान्यतायें प्रचलित है। इस दिन चन्द्रमा एवं मंगल आदि ग्रहों के द्वारा राशि में संचरण से विशेष योग निर्मित होने की मान्यतायें प्रचलित हैं। ज्योतिष में जिस प्रकार चन्द्रमा एवं गुरू का योग गजकेसरी योग को निर्मित करता है। जो अत्यंत शुभप्रद एवं प्रभावकारी माना जता है। उसी प्रकार चन्द्रमा एवं मंगल आदि ग्रहों के कारण कई प्रकार के शुभ योगों का निर्माण होता है। जो अत्यंत शुभप्रद एवं प्रभावशाली होता है। जिससे इस पर्व को और बेहद पवित्र माना जाता है। जिससे इस पर्व यानी पूर्णिमा में किसी नये पद को ग्रहण करने एवं उसकी शपथ लेने तथा अन्य उत्पादन एवं विक्रय के कामों को शुरू करने की मान्यतायें प्रचलित है। एक प्रहर रात्रि गुजरने पर चन्द्रमा के दर्शन एवं उनकी किरणों में खीर रखने का विधान होता है। वर्ष भर की 24 पूर्णिमाओं से यह अमृत वर्षा के कारण और महत्वपूर्ण हो जाती है। अर्थात् इसे अमृतमयी माना जाता है।

कोजगरी पूर्णिमा के अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

पूर्णिमा तिथि में चन्द्र किरणें बहुत ही प्रभावशाली होती है। जिसके कारण समुद्र में ज्वारा एवं भाटा की स्थिति उत्पन्न होती है। जिस प्रकार समुद्र की विशाल जल राशि चन्द्र किरणों के कारण प्रभावित होती है। और समुद्र का जल ऊपर उठने लगता है। उसी प्रकार जो वस्तुयें तथा मानव आदि जीव अधिक जल से युक्त होते है। उनका मन इस पूर्णिमा में विचिलित होने लगता है। मनुष्यों में लगभग 85 प्रतिशत जल की मात्रा होने का अनुमान है। जिससे मनुष्यों में अनिद्रा और नकारात्मक विचारों के बढ़ जाने की आशंका बनी हुई रहती है। जिससे व्यक्ति कई बार हीन भावना का शिकार होने लगता है। इस प्रकार की स्थिति प्रत्येक पूर्णिमा तिथि में बनती रहती है। इस प्रकार कई ऐसे कारण है। जिससे व्यक्ति सही गलत के निर्णय एवं शुभ में अशुभ में विचार नहीं कर पाता। इस प्रकार कई कारणों को देखते हुये हमारे धार्मिक ऋषियों में व्रत, स्नान, दान एवं ईश्वर स्मरण की बात को स्वीकारा गया था। जिससे आज भी पूर्णिमा तिथि में व्रत एवं नियमों को करने की प्रथा अनवरत रूप से लगातार चल रही है। चूँकि चन्द्र किरणों एवं धरती के गुरूत्व के कारण शरीर में नकारात्मकता बढ़ जाती है। इसी कारण इस दिन नियमित एवं संयमित रहते हुये व्रत का पालन करना चाहिये तथा तामसिक वस्तुओं के प्रयोग से बचना चाहिये। हालांकि चन्द्रमा में अमृत से युक्त किरणें हमे कई प्रकार से लाभ भी पहुंचाती हैं। इस कोजगरी पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा भी कहते हैं। विश्व के दूसरे देशों में इस पूर्णिमा के चांद को नील चन्द्रमा भी कहते हैं। इस पूर्णिमा में हनुमान प्रभु की पूजा करने का विधान होता है। हनुमान जी भगवान की पूजा विधि पूर्वक करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। इस प्रकार इस पूर्णिमा में जो भी दान पुण्य एवं स्नान किये जाते हैं। और सिद्ध पीठों का दर्शन एवं पूजन होता है। वह अत्यंत पुण्यफल देने वाला होता है। इस पूर्णिमा तिथि के अवसर पर अपने कुल एवं इष्ट देव का पूजन भी अत्याधिक पुण्यदायक होता है। अतः इस शरद पूर्णिमा के अवसर पर पूरे भक्ति भाव के साथ पूजन अर्चन करें। और अपने अभीष्ट फल को प्राप्त करें। क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को मन का कारक कहा जाता है। और यह हमारे मन से भी संबंध रखता है। इस प्रकार यह शरद पूर्णिमा जिसे कोजगरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। अत्यंत महत्वपूर्ण एवं फल दायक मानी जाती है।

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